सहारनपुर: कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है. उलेमा का कहना है कि लगातार लोगों की मौत हो रही है और हजारों लाखों लोग जिंदगी-मौत से जूझ रहे हैं. बावजूद इसके सरकार शराब की दुकानें खुलवाकर राजस्व बढ़ाने में लगी है. देवबंदी उलेमाओं ने सरकार के इस फैसले का न सिर्फ विरोध किया है बल्कि ठेके खोलने की कड़े शब्दों में निंदा की है.
उलेमाओं का कहना है कि शराब एक समाजिक बुराई है और शराब खरीदने के लिए पास जारी किया जा रहा है. वहीं सब्जी, फल, दवाइयां खरीदने वालों को रोका जा रहा है. शासन प्रशासन का यह दोहरा व्यवहार पूरी तरह गलत है. शराब के ठेके खोले जाने के फैसले पर देवबंदी उलेमा मुफ्ती अहमद गौड़ ने कहा कि कोरोना काल में शराब की दुकान खोलना किसी घटना से कम नहीं है.
देश के लिए बताया दुर्भाग्यपूर्ण
उन्होंने कहा कि सरकार का यह फैसला देशवासियों के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं बदकिस्मती का सबब है. शराब को समाज में सामाजिक बुराई समझा जाता है. शराब पीने वालों के घरों में विवाद पैदा होता है. ऐसे हालात में जब पूरी दुनिया ही नहीं हमारा देश भी कोरोना से जूझ रहा है तो मुश्किल की इस घड़ी में सरकार ने शराब की दुकानें खोलने का फैसला किया है, यह फैसला बहुत ही निंदनीय है. इस फैसले की जितनी भी निंदा की जाए वह कम है.
सोशल डिस्टेंसिंग का खुलेआम उल्लंघन
उलेमा ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था पहले ही चरमराई हुई थी. ऐसे में कोरोना जैसी बीमारी के चलते लॉकडाउन लागू करना पड़ गया, लोगों के पास पैसा नहीं है. हमारे देश में 60% लोग दिन में कमाकर रात में खाते हैं. ऐसे हालात में उन लोगों पर यह बहुत बड़ा जुर्म है. जब सरकार ने सोशल डिस्टेंस का नारा लगा रखा है और वास्तव में सोशल डिस्टेंस की जरूरत भी है तो सरकार ने अचानक शराब की दुकानें खोल दी हैं, जहां सोशल डिस्टेंसिंग का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है.
शराब लेने के लिए अफरा-तफरी
उन्होंने कहा कि लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़कर शराब खरीद रहे हैं. माहमारी के दौर में शराब लेने के लिए अफरा-तफरी मची हुई है. खाने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है, पहनने के लिए कपड़ों की जरूरत है, लोगों को दवाइयां नहीं मिल पा रही हैं और अगर कोई दवाई लेने के लिए निकलता है तो उस पर सख्ती की जाती है. अगर शराब के लिए जाएंगे तो अनुमति है.
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