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बुलंदशहर में राइट-टू-एजुकेशन अभियान फेल, अब तक सिर्फ 555 आवेदन

बुलंदशहर जिले में राइट-टू-एजुकेशन अभियान सफल होता नजर नहीं आ रहा है. राइज-टू-एजुकेशन के तहत निजी स्कूल में जिन परिवारों ने अपने बच्चों के एडमिशन के लिए अप्लाई किया है. उसमें भी यहां के जिम्मेदार अधिकारियों ने 100 के फॉर्म रिजेक्ट कर दिए हैं. वहीं लगभग 400 छात्रों के एडमिशन ही अब तक एक तरह से हुए बताए जा रहे हैं.

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Published : Jul 17, 2019, 11:38 AM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

निजी स्कूल्स में नहीं दिख रही बच्चों की रुचि.

बुलंदशहर: सरकार ने राइट-टू-एजुकेशन कानून के तहत निजी स्कूल बनाकर गरीब परिवारों के बच्चों के निजी स्कूल में दाखिले का सपना भले ही साकार कर दिया है. इसके बाद भी जिले में यह अभियान पूरा होता नजर नहीं आ रहा है. यही वजह है कि विद्यालय खुले करीब एक पखवाड़े से भी ज्यादा हो चुका है, लेकिन जिले में इतनी भारी-भरकम सरकारी मशीनरी होने के बाद भी सिर्फ और सिर्फ 555 आवेदन ही किए गए हैं.

आखिर कैसे पढ़ेगा इंडिया और बढ़ेगा इंडिया.

इन 555 आवेदन में भी करीब 100 आवेदन नियम के अनुसार नहीं पाए गए हैं. राइट-टू-एजुकेशन अभियान का प्रचार-प्रसार भी जिले में नजर नहीं आ रहा है. पर्याप्त प्रचार-प्रसार न होने की वजह से लोगों को राइट-टू-एजुकेशन कानून की जानकारी भी नहीं है.

विद्यालयों में गरीब और निर्धन असहाय परिवार के बच्चों को पढ़ाने का सपना देखकर सरकार ने राइट-टू-एजुकेशन कानून के तहत निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ने की व्यवस्था की है, लेकिन यह अभियान सिर्फ दफ्तरों की फाइलों और अफसरों के टेबलों के इर्द गिर्द ही परिक्रमा करके सार्थकता दर्शाता नजर आ रहा है.

  • जिए में कुल 555 आवेदन अब तक जमा हुए, इनमें से 493 ही वास्तविक पात्र पाये गए.
  • कुल 395 बच्चों का नजदीकी निजी स्कूलों में प्रवेश कराया गया है.
  • वहीं 98 बच्चों के प्रवेश की प्रक्रिया अभी चल रही है.
  • 20 जुलाई तक पात्र परिवार अपने नोनिहालों का दाखिले के लिए आवेदन कर सकते हैं.

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अम्बरीष यादव का कहना है कि जिन परिवारों की आय एक लाख से कम होती है और जिनके परिवार का मुखिया गंभीर बीमारी से ग्रसित होता है, जैसे कि कैंसर और एड्स व अन्य कोई गम्भीर बीमारी ऐसे परिवार के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए निजी विद्यालयों में 25% कोटा निर्धारित है.

बुलंदशहर जिले में राइट-टू-एजुकेशन अभियान सफल होता नजर नहीं आ रहा है. कहने को तो यह वेस्टर्न यूपी का सबसे बड़ा जिला भी है. यहां हर साल हजारों की तादाद में ऐसे बच्चे चिन्हित किए जाते हैं जो विद्यालय तक नहीं जाते हैं. जिले में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है फिर भी यहां इस अभियान में बच्चों का दाखिला नहीं हो रहा है.

राइज-टू-एजुकेशन के तहत निजी स्कूल में जिन परिवारों ने अपने बच्चों के एडमिशन के लिए अप्लाई किया है. उसमें भी यहां के जिम्मेदार अधिकारियों ने 100 के फॉर्म रिजेक्ट कर दिए हैं. वहीं लगभग 400 छात्रों के एडमिशन ही अब तक एक तरह से हुए बताए जा रहे हैं.

बुलंदशहर: सरकार ने राइट-टू-एजुकेशन कानून के तहत निजी स्कूल बनाकर गरीब परिवारों के बच्चों के निजी स्कूल में दाखिले का सपना भले ही साकार कर दिया है. इसके बाद भी जिले में यह अभियान पूरा होता नजर नहीं आ रहा है. यही वजह है कि विद्यालय खुले करीब एक पखवाड़े से भी ज्यादा हो चुका है, लेकिन जिले में इतनी भारी-भरकम सरकारी मशीनरी होने के बाद भी सिर्फ और सिर्फ 555 आवेदन ही किए गए हैं.

आखिर कैसे पढ़ेगा इंडिया और बढ़ेगा इंडिया.

इन 555 आवेदन में भी करीब 100 आवेदन नियम के अनुसार नहीं पाए गए हैं. राइट-टू-एजुकेशन अभियान का प्रचार-प्रसार भी जिले में नजर नहीं आ रहा है. पर्याप्त प्रचार-प्रसार न होने की वजह से लोगों को राइट-टू-एजुकेशन कानून की जानकारी भी नहीं है.

विद्यालयों में गरीब और निर्धन असहाय परिवार के बच्चों को पढ़ाने का सपना देखकर सरकार ने राइट-टू-एजुकेशन कानून के तहत निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ने की व्यवस्था की है, लेकिन यह अभियान सिर्फ दफ्तरों की फाइलों और अफसरों के टेबलों के इर्द गिर्द ही परिक्रमा करके सार्थकता दर्शाता नजर आ रहा है.

  • जिए में कुल 555 आवेदन अब तक जमा हुए, इनमें से 493 ही वास्तविक पात्र पाये गए.
  • कुल 395 बच्चों का नजदीकी निजी स्कूलों में प्रवेश कराया गया है.
  • वहीं 98 बच्चों के प्रवेश की प्रक्रिया अभी चल रही है.
  • 20 जुलाई तक पात्र परिवार अपने नोनिहालों का दाखिले के लिए आवेदन कर सकते हैं.

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अम्बरीष यादव का कहना है कि जिन परिवारों की आय एक लाख से कम होती है और जिनके परिवार का मुखिया गंभीर बीमारी से ग्रसित होता है, जैसे कि कैंसर और एड्स व अन्य कोई गम्भीर बीमारी ऐसे परिवार के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए निजी विद्यालयों में 25% कोटा निर्धारित है.

बुलंदशहर जिले में राइट-टू-एजुकेशन अभियान सफल होता नजर नहीं आ रहा है. कहने को तो यह वेस्टर्न यूपी का सबसे बड़ा जिला भी है. यहां हर साल हजारों की तादाद में ऐसे बच्चे चिन्हित किए जाते हैं जो विद्यालय तक नहीं जाते हैं. जिले में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है फिर भी यहां इस अभियान में बच्चों का दाखिला नहीं हो रहा है.

राइज-टू-एजुकेशन के तहत निजी स्कूल में जिन परिवारों ने अपने बच्चों के एडमिशन के लिए अप्लाई किया है. उसमें भी यहां के जिम्मेदार अधिकारियों ने 100 के फॉर्म रिजेक्ट कर दिए हैं. वहीं लगभग 400 छात्रों के एडमिशन ही अब तक एक तरह से हुए बताए जा रहे हैं.

Intro:राइट टू एजुकेशन कानून के तहत निजी स्कूल्स में दाखिले के लिए सरकार के द्वारा भले ही कानून बनाकर दिया गया हो,लेकिन अपर्याप्त प्रचार प्रसार और सुस्त सरकारी मशीनरी व लोगों के इस तरफ रुचि न लेने के चलते पश्चिमी यूपी के सबसे बड़े जिले बुलन्दशहर में मात्र अब तक 555 छात्रों के दाखिले के लिए ही आवेदन किया गया है,देखिये ईटीवी भारत की ये पूरी पडतालपूर्ण एक्सक्लुसिव खबर।


Body:राइट टू एजुकेशन कानून बनाकर निर्धन गरीब बेसहारा परिवारों के बच्चों को भले ही निजी स्कूल में दाखिले का सपना सरकार ने दिखा दिया हो, लेकिन बुलंदशहर जिले में यह सरकार का अभियान और सरकार की अभिलाषा पूरी होती नजर नहीं आ रही है, यही वजह है कि अब विद्यालय खुले करीब एक पखवाड़े से भी ज्यादा हो चुका है ,लेकिन जिले में इतनी भारी-भरकम सरकारी मशीनरी होने के बावजूद भी सिर्फ और सिर्फ 555 आवेदन ही जिले में किए गए हैं और उनमें भी करीब 100 आवेदन नियम के अनुसार नहीं पाए गए हैं, ऐसे में इसकी वजह चाहे जो हो लेकिन प्रचार-प्रसार भी इस तरफ कहीं नजर नहीं आता ,और पर्याप्त प्रचार-प्रसार ना होने की वजह से लोगों को इसकी जानकारी तक भी शायद नहीं है ,इस बारे में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अम्बरीष यादव का कहना है कि जिन परिवारों की आय एक लाख से कम होती है और जिनके परिवार का मुखिया गंभीर बीमारी से ग्रसित होता है, जैसे कि कैंसर और एड्स व अन्य कोई गम्भीर बीमारी ऐसे परिवार के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए निजी विद्यालयों में 25% कोटा निर्धारित है,हालांकि जिले में हजारों निजी स्कूल्स में ऐसे छात्रों की जिन्दगी सँवर सकती है, लेकिन व्यापक प्रचार प्रसार न होने की वजह से ये अभियान सिर्फ और सिर्फ दफ्तरों की फाइलों और अफसरों के टेबलों के इर्द गिर्द ही परिक्रमा करके सार्थकता दर्शाता नजर आ रहा है।
निजी विद्यालयों पर अक्सर भारी-भरकम फीस लेने के आरोप अक्सर लगा कर्तव्य हैं , ऐसे विद्यालयों में गरीब और निर्धन असहाय परिवार के बच्चों को पढ़ाने का सपना देख कर सरकार ने राइट टू एजुकेशन कानून के तहत यह व्यवस्था की थी, बुलंदशहर जिले में यह अभियान सफल होता नजर नहीं आ रहा है, आलम यह है कि कहने को तो यह वेस्टर्न यूपी का सबसे बड़ा जिला भी है और यहां हर साल हजारों की तादाद में ऐसे बच्चे भी चिन्हित किए जाते हैं जो किसी विद्यालय तक में नहीं जाते हैं या यूं कहिए जिन्होंने स्कूल की शक्ल तक नहीं देखी होती है,तो वही यहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है, लेकिन उसके बावजूद भी जिले में जिन परिवारों के द्वारा अपने बच्चों के लिए इन स्कूलों में एडमिशन के लिए अप्लाई किया गया है ,उसमें भी यहां के जिम्मेदार अधिकारियों ने 100 के फॉर्म रिजेक्ट कर दिए हैं, तो वही लगभग 400 छात्रों के एडमिशन ही अब तक एक तरह से हुए बताए जा रहे हैं,

जिए में कुल 555 आवेदन अब तक जमा हुए ,
जिनमे 493 ही वास्तविक पात्र पाए गए,

जबकि कुल 395 का ऐसे नजदीकी निजी स्कूलों में प्रवेश कराया गया है,
जबकि 98 बच्चों के प्रवेश की प्रक्रिया अभी चल रही है,



इतना ही नहीं बुलन्दशहर के दो नामचीन स्कूल ने तो अपने यहां ऐसे परिवार के बच्चों को पढ़ाने में भी ऐतराज़ तक भी जताया है,

अब इनके खिलाफ कार्रवाई की बात भी बीएसए कर रहे हैं ,
आखिर क्यों निर्धन और असहाय परिवार के बच्चों को निजी स्कूल में दाखिला नहीं मिल पा रहा,

इसके लिए जिले की मशीनरी भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है,
20 जुलाई तक अभी भी पात्र परिवार अपने नोनिहालों का दाखिले के लिए आवेदन कर सकते हैं ,

जो विद्यालय नहीं पढ़ाना चाहते ऐसे पात्र विद्यार्थियों को उनके खिला सख्त एक्शन की भी जरूरत है।

बाइट....अम्बरीष कुमार यादव,बेसिक शिक्षा अधिकारी,बुलन्दशहर ।




Conclusion:हालांकि प्रचार प्रसार अगर होता तो तश्वीर बदली हो सकती थी,लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर अगर सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार ही नहीं किया जाएगा तो फिर इन योजनाओं का फायदा आखिर कैसे और किस को मिलेगा।
शिक्षा का अधिकार कानून बना कर निर्धन गरीब बेसहारा परिवारों के बच्चों को भले ही निजी स्कूल में झांकने और पढ़ने का सपना सरकार ने दिखा दिया हो , लेकिन बुलंदशहर जिले में सरकार की अभिलाषा पूरी होती नजर नहीं आ रही है,
तो व्हीनेक सवाल सरकार से ये भी है कि क्या न नुकुर कर गार्जियन को टरकाने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाही होनी चाहिए कि नहीं,

लेकिन जब जानकारी ही किसी को नहीं है तो फिर आखिर कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे बढेगा इंडिया।


पीटीसी....श्रीपाल तेवतिया, बुलन्दशहर,9213400888.





Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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