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सहारनपुर : फ्रिज और एक्वागार्ड ने खत्म कर दिए मिट्टी के देसी फ्रिज, आर्थिक संकट में कुम्हार

पल पल बदलती तकनीक से व्यवसायों पर खतरा मंडरा रहा है. कुछ व्यवसाय दम तोड़ते नजर आ रहे हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने का काम भी इन्हीं डूबते व्यवसायों में से एक है. आजकल मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल शायद ही किया जा रहा है. इससे कुम्हारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

आर्थिक संकट में कुम्हार.
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Published : May 18, 2019, 10:10 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर : आधुनिकता के इस दौर में जहां लोग एक्वागार्ड और फ्रिज को अपना फैशन बना चुके हैं. इनके प्रचलन से मिट्टी के बने बर्तन ही नहीं देसी फ्रिज माना जाने वाले घड़े का अस्तित्व भी खत्म होता जा रहा है. मिट्टी की हांडी, कुल्हड़, कसोरे, सुराही और घड़े समेत तमाम बर्तन बाजारों से विलुप्त होते जा रहे हैं. इसके चलते कुम्हारों के सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा है.

आर्थिक संकट में कुम्हार.
कूलर फ्रिज के जमाने में पुराने प्रथा तो समाप्त हो ही रही है साथ ही आज की पीढ़ी मिट्टी के घड़े, सुराही, कुल्हड़ आदि को भी भूलते जा रहे हैं. कुम्हारों की माने तो मिट्टी के बर्तनों को खरीदने के लिए इक्का दुक्का ग्राहक ही आते हैं. कई बार तो ग्राहक इन बर्तनों को देखकर ही वापस चले जाते हैं. ऐसे में वे अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई कराना तो दूर दो जून की रोटी भी नहीं कमा पा रहे हैं.

एक जमाना था जब देसी फ्रिज यानी घड़े के पानी के लिए प्यासा व्यक्ति दूर-दूर से चला आता था. घड़े का पानी न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद रहता था बल्कि प्यास बुझाने के साथ साथ स्वाद को भी बढ़ा देता था. इतना ही नहीं मिट्टी के बर्तन में रखा गया पानी शुद्ध भी माना जाता था लेकिन आधुनिकता के दौर में जैसे जैसे बिजली के फ्रिज और एक्वागार्ड आये तो मिट्टी के सुराही और घड़े बेगाने लगने लगे. धीरे धीरे घड़े और सुराही समेत तमाम मिट्टी के बर्तनों की मांग कम हो गई. रही सही कसर प्लास्टिक के कैम्परों ने आकर पूरी कर दी. हालांकि, कुम्हारों ने लोगों की सुविधा के मुताबिक टोंटी लगे मिट्टी के कैम्पर भी बनाने शुरू कर दिए लेकिन लोगों का रुझान फैंसी और महंगे उपकरणों की ओर चला गया.

ईटीवी भारत ने दो जून की रोटी के लिए दुकान लगाए बैठे कुम्हारों से इस बाबत बातचीत की तो उनका दर्द छलक उठा. मिट्टी के बर्तन बेच रही बिमला देवी ने बताया कि हम सुबह से ही धूप में दुकान लगाकर बैठ जाते हैं. दिन भर में बहुत कम ग्राहक मिट्टी के घड़े और अन्य पानी के बर्तन खरीदने आते हैं. बर्तनों की कम बिक्री से उनके घर परिवार का खर्चा नहीं चल पाता है.

राजकुमार बताते हैं कि 40 सालों से वह अपनी दुकान लगाते आ रहे हैं. करीब 10 साल पहले तो कुछ ग्राहक मिट्टी के घड़े, सुराही, हांडी आदि बर्तन खरीदकर ले जाते थे लेकिन जब से फ्रिज और बिजली के अन्य उपकरणों का प्रचलन हुआ है तब से मिट्टी की घड़ों की मांग कम हो गयी है.

सहारनपुर : आधुनिकता के इस दौर में जहां लोग एक्वागार्ड और फ्रिज को अपना फैशन बना चुके हैं. इनके प्रचलन से मिट्टी के बने बर्तन ही नहीं देसी फ्रिज माना जाने वाले घड़े का अस्तित्व भी खत्म होता जा रहा है. मिट्टी की हांडी, कुल्हड़, कसोरे, सुराही और घड़े समेत तमाम बर्तन बाजारों से विलुप्त होते जा रहे हैं. इसके चलते कुम्हारों के सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा है.

आर्थिक संकट में कुम्हार.
कूलर फ्रिज के जमाने में पुराने प्रथा तो समाप्त हो ही रही है साथ ही आज की पीढ़ी मिट्टी के घड़े, सुराही, कुल्हड़ आदि को भी भूलते जा रहे हैं. कुम्हारों की माने तो मिट्टी के बर्तनों को खरीदने के लिए इक्का दुक्का ग्राहक ही आते हैं. कई बार तो ग्राहक इन बर्तनों को देखकर ही वापस चले जाते हैं. ऐसे में वे अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई कराना तो दूर दो जून की रोटी भी नहीं कमा पा रहे हैं.

एक जमाना था जब देसी फ्रिज यानी घड़े के पानी के लिए प्यासा व्यक्ति दूर-दूर से चला आता था. घड़े का पानी न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद रहता था बल्कि प्यास बुझाने के साथ साथ स्वाद को भी बढ़ा देता था. इतना ही नहीं मिट्टी के बर्तन में रखा गया पानी शुद्ध भी माना जाता था लेकिन आधुनिकता के दौर में जैसे जैसे बिजली के फ्रिज और एक्वागार्ड आये तो मिट्टी के सुराही और घड़े बेगाने लगने लगे. धीरे धीरे घड़े और सुराही समेत तमाम मिट्टी के बर्तनों की मांग कम हो गई. रही सही कसर प्लास्टिक के कैम्परों ने आकर पूरी कर दी. हालांकि, कुम्हारों ने लोगों की सुविधा के मुताबिक टोंटी लगे मिट्टी के कैम्पर भी बनाने शुरू कर दिए लेकिन लोगों का रुझान फैंसी और महंगे उपकरणों की ओर चला गया.

ईटीवी भारत ने दो जून की रोटी के लिए दुकान लगाए बैठे कुम्हारों से इस बाबत बातचीत की तो उनका दर्द छलक उठा. मिट्टी के बर्तन बेच रही बिमला देवी ने बताया कि हम सुबह से ही धूप में दुकान लगाकर बैठ जाते हैं. दिन भर में बहुत कम ग्राहक मिट्टी के घड़े और अन्य पानी के बर्तन खरीदने आते हैं. बर्तनों की कम बिक्री से उनके घर परिवार का खर्चा नहीं चल पाता है.

राजकुमार बताते हैं कि 40 सालों से वह अपनी दुकान लगाते आ रहे हैं. करीब 10 साल पहले तो कुछ ग्राहक मिट्टी के घड़े, सुराही, हांडी आदि बर्तन खरीदकर ले जाते थे लेकिन जब से फ्रिज और बिजली के अन्य उपकरणों का प्रचलन हुआ है तब से मिट्टी की घड़ों की मांग कम हो गयी है.

Intro:सहारनपुर : आधुनिकता के इस दौर में जहां लोग एक्वागार्ड और फ्रिज को अपना फैशन बना चुके है वहीं इनके प्रचलन से मिट्टी के बने बर्तन ही नही देसी फ्रिज घड़े का अस्तित्व भी खत्म होता जा रहा है। मिट्टी की हांडी, कुल्हड़, कसोरे, सुराही एवं घड़े समेत तमाम बर्तन बाजारों से विलुप्त होते जा रहे है। जिससे कुम्हारों के सामने आर्थिक संकट मंडराने लगा है। कूलर फ्रिज के जमाने मे पुराने प्रथा तो समाप्त हो ही रही है साथ ही आज की पीढ़ी मिट्टी के घड़े, सुराही, कुल्हड़ आदि को भी भूलते जा रहे है। कुम्हारों की माने तो मिट्टी के बर्तनों को खरीदने के लिए इक्का दुक्का ग्राहक ही आते है। कई बार तो ग्राहक इन बर्तनों को देखकर ही वापस चले जाते है। ऐसे में ये अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई करना तो दूर दो जून की रोटी भी नही कमा पा रहे है।


Body:VO 1 - एक जमाना था जब देसी फ्रिज यानि घड़े के पानी के लिए प्यासा दूर दूर से चला आता था। घड़े का पानी न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद रहता बल्कि प्यास बुझाने के साथ साथ स्वाद को भी बढ़ा देता था। इतना ही नही मिट्टी के बर्तन में रखा गया पानी शुध्द भी माना जाता था। घड़े से ज्यादा मिट्टी की सुराही का पानी इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन आधुनिकता के दौर में जैसे जैसे बिजली के फ्रिज और एक्वागार्ड आये तो मिट्टी के सुराही और घड़े बेगाने लगने लगे। धीरे धीरे घड़े और सुराही समेत तमाम मिट्टी के बर्तनों की मांग कम हो गई। रही सही कसर प्लास्टिक के कैम्परो ने आकर पूरी कर दी। जबकि कुम्हारों ने लोगो की सुविधा के मुताबिक मिट्टी टोंटी लगे कैम्पर भी बनाने शुरू कर दिए। लेकिन लोगो का रुझान फैंसी और महंगे उपकरणों की ओर चला गया। ईटीवी ने दो जून की रोटी के लिए दुकान लगाए बैठे कुम्हारों से इस बाबत बातचीत की तो उनका दर्द छलक उठा। मिट्टी के बर्तन बेच रही बिमला देवी ने बताया कि ये सुबह से ही धूप में दुकान लगाकर बैठ जाते हैं। दिन भर में बहुत कम ग्राहक मिट्टी के घड़े और अन्य पानी के बर्तन खरीदने आते है। लेकिन कम बर्तनों की सेल से उनके घर परिवार का खर्चा नही चल पाता। वही ईटीवी से बातचीत में राजकुमार ने बताया कि 40 सालो से ये अपनी दुकान लगाते आ रहे है। करीब 10 साल पहले तो कुछ ग्राहक मिट्टी के घड़े, सुराही, हांडी आदि बर्तन खरीदकर ले जाते थे लेकिन जब से फ्रिज और बिजली के अन्य उपकरणों का प्रचलन हुआ है तब से मिट्टी की घड़ों की मांग कम हो गयी है।

बाईट - बिमला देवी ( महिला कुम्हार )
बाईट - राजकुमार ( कुम्हार )


Conclusion:रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
9121293042
9759945153
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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