सहारनपुर : जिले में अधिकारियों का बड़ा कारनामा सामने आया है. बेहट तहसील प्रशासन और खनन विभाग ने बिना जांच किए यमुना नदी की जमीन पर खनन पट्टा जारी कर दिए. मामला जब सीएम हाउस पहुंचा तो स्थानीय स्तर से लेकर जिला प्रशासन तक हड़कम्प मच गया. अब अधिकारी एक दूसरे पर टालकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. हालांकि अफसर मामले की जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी बात कह रहे हैं.
यमुना नदी को बता दिया कृषि भूमि
आप को बता दें कि खनन विभाग और तहसील बेहट प्रशासन ने बिना जांच किए धारा 132 की भूमि, यानि नदी की भूमि को निजी दर्शाते हुए खनन का पट्टा आवंटित कर दिया. मामले का खुलासा तब हुआ जब तहसील बेहट इलाके के गांव लतीफपुर भुड़ निवासी बिरमपाल ने सूबे के मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र भेजा. जिसके बाद तहसील प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक हड़कंप मच गया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की हुई अवहेलना
शिकायकर्ता बिरमपाल ने बताया कि यमुना नदी के गांव रसूलपुर उर्फ रसुली, धौलरा व आलमगीरपुर गुर्जर आदि गांव में स्थित धारा 132 की भूमि को किसानों की भूमि बताकर तहसील प्रशासन ने खनन पट्टे के लिए रिपोर्ट लगा दी, जबकि उक्त भूमि नदी की भूमि है. शिकायकर्ता का कहना है कि यह वर्ष 2001 व 2005 में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों की अवहेलना की गई है. सीएम को भेजे गए शिकायत पत्र में मांग की गई है कि शासन स्तर से गोपनीय टीम गठित कर अवैध तरीके से जारी किए गए खनन परमिट की जांच और इस मामले में शामिल अधिकारियों पर कार्रवाई हो.
शिकायतकर्ता ने बेहट तहसील के एसडीएम, तहसीलदार व लेखपाल सहित खनन विभाग के अधिकारियों पर मिलीभगत कर अवैध तरीके से पट्टा जारी करने के आरोप लगाए हैं. हालांकि मामले को लेकर एसडीएम बेहट दीप्ति देव ने बताया कि उनका इस मामले में कोई रोल नहीं है. पूरे मामले की जांच कराई जा रही है. जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी जाएगी, जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
सालों होता रहा यमुना नदी का दोहन
दरअसल, जनपद सहारनपुर की तहसील बेहट के इलाके से यमुना नदी होकर गुजरती है. कई वर्षों तक यमुना नदी में दिन-रात खनन की आवाजें गूंजती रहीं. कभी वैध तो कभी अवैध तरीके से खनन कारोबारियों और माफियाओं द्वारा यमुना नदी का सीना छलनी किया गया. यमुना नदी में हुए अवैध खनन की गूंज ने सहारनपुर से लखनऊ तक को हिला दिया था. जिसके बाद वैध खनन पर रोक लगा दी गई थी. लेकिन कुछ माफिया अवैध तरीके से खनन में जुटे रहे. जिससे राजस्व को भी नुकसान पहुंचता रहा. माफियाओं के साथ-साथ अब खनन विभाग और बेहट तहसील प्रशासन ने भी उच्चाधिकारियों की आंखों में धूल झोंक राजस्व को हानि पहुंचाने या फिर यू कहें कि सरकार को चुना लगाने का कारनामा कर डाला है.