सहारनपुर/वाराणसी/मेरठ/कानपुर/प्रयागराज/संभल: नवरात्र के पहले दिन भोर से ही भक्त माता रानी का पूजन-अर्चन शुरू हो गया. भक्त मातारानी के दर्शन के लिए दरबार में पहुंचे और विधि-विधान से मां का पूजन किया. पहले दिन मां शैलपुत्री का पूजन किया गया. यूपी के सभी जिलों में दर्शन पूजन का सिलसिला देर रात तक जारी रहा.
सहारनपुर में चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन सिद्धपीठ श्री मां शाकंभरी देवी मेले में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा. श्रद्धालुओं ने घंटों लाइनों में लगकर मां शाकंभरी देवी के दर्शन कर प्रसाद चढ़ाया.इस दौरान पुलिस व प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहे. तहसीलदार प्रकाश सिंह, नायाब तहसीलदार संजय कुमार के साथ ही पुलिस अधिकारी मेले की व्यवस्था में जुटे रहे. मेला एवं मंदिर परिक्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से भारी पुलिस बल तैनात रहा. मंदिर व्यवस्थापक अतुल्य प्रताप सिंह राणा ने मंदिर की व्यवस्थाओं को संभाला.
मां शाकंभरी देवी नाम क्यों पड़ा: मान्यता है कि प्राचीन काल में दुर्गम नामक दैत्य ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करने के बाद वरदान में चारों वेद मांग लिए थे. दैत्यों के हाथ चारों वेद लग जाने से सभी वैदिक क्रियाएं लुप्त हो गई थी, जिसके परिणामस्वरूप 100 वर्षों तक वर्षा नहीं होने के कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई. चारों ओर त्राहि त्राहि मच गई जिसके चलते सभी देवताओं ने शिवालिक पर्वतों की प्रथम शिखा पर मां जगदंबा की घोर तपस्या की. देवताओं की करूणा मयी पुकार सुनकर करूणामयी मां भगवती देवताओं के समक्ष प्रकट हुईं. इस पर मां जगदंबा ने अपने सत नेत्रों से नौ दिनों तक अश्रुवृष्टि की. नदियां जल से भर गईं. इसके बाद मां का नाम शाकांभरी पड़ गया. वेदों में मान्यता है कि सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी का मुख्य प्रसाद शिवालिक पहाड़ियों पर उगने वाली सराल हैं.
यह भी मान्यता है कि देवताओं व दैत्यों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान धर्म की रक्षा के लिए मां भगवती का परम भक्त भूरादेव अपने साथियों के साथ युद्ध में उतरा था. युद्ध के दौरान भूरादेव को घायल देखकर करूणामयी माता ने भूरादेव को वचन दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शन करने आएगा. उसको पहले तुम्हारे दर्शन करने होंगे तभी उसकी यात्रा पूर्ण होगी. यहीं कारण है कि श्रद्धालु सर्वप्रथम बाबा भूरादेव की पूजा अर्चना करने के बाद ही मां श्री शाकंभरी देवी के दर्शन करते हैं.
मंत्री ने किए मां बाला सुंदरी के दर्शन
सहारनपुर के कस्बा देवबंद स्थित सिध्दपीठ श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ मां के दर्शन को पहुंची. इस मौके पर लोक निर्माण राज्य मंत्री कुंवर बृजेश सिंह ने भी मां बाला सुंदरी देवी के दर्शन किए. इस मौके पर उन्होंने देश और प्रदेशवासियों को हिंदू नववर्ष की शुभकामना दी. इस मौके पर एसडीएम संजीव कुमार, ब्लॉक प्रमुख विजय त्यागी, देवबंद नगर अध्यक्ष विपिन गर्ग, देवबंद देहात अध्यक्ष सोनित कश्यप, नगर पालिका कर्मचारी विकास चौधरी आदि मौजूद थे.
वाराणसी में प्रथम दिन अलीपुर क्षेत्र वरुणा नदी के किनारे स्थित शैलपुत्री के मंदिर में भक्त मां के दर्शन करने पहुंचे. मान्यता है कि मां शैलपुत्री उत्साह वाली देवी हैं. वह भय का नाश करती है. उनकी कृपा से यश, कीर्ति, धन और विद्या की प्राप्ति होती है. गजेंद्र गोस्वामी ने बताया कि आज माता शैलपुत्री का दर्शन होता है. यह हिमालय राज की पुत्री है. इनको सलजा कहा जाता है. मां का वाहन वृषभ है. एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल पुष्प है. मां अमृत वर्षा करती है और भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करती है. जिन्हें संपत्ति संबंधी समस्या हो या फिर विवाह न होना की समस्या है वे मां को सफेद फूल व मिष्ठान अर्पित करें. सभी मनोकामना पूर्ण होंगी.
वहीं, वाराणसी में ही हिन्दू विक्रम संवत 2080 नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के पुण्य अवसर पर नमामि गंगे व 137 सीईटीएफ बटालियन (प्रादेशिक सेना) 39 गोरखा राइफल्स गंगा टास्क फोर्स ने भगवान सूर्य की आरती उतारकर विधिविधानपूर्वक अर्घ्य देकर हिंदू नववर्ष का भव्य स्वागत किया. नमामि गंगे के सदस्यों ने 22 मार्च विश्व जल दिवस के अवसर पर भारतीय संस्कृति के अनादि काल से अनंतकाल तक के प्रवाह की साक्षी गंगा को फिर से अविरल निर्मल और सतत प्रवाह का लक्ष्य निर्धारित कर गंगा तलहटी की सफाई की. इस दौरान नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला, गंगा टास्क फोर्स के कंपनी कमांडेंट सुशील गुहानी, सूबेदार शिवेंद सिंह, नमामि गंगे महानगर सह संयोजक बीना गुप्ता, वाराणसी मंडल प्रभारी पुष्पलता वर्मा एवं गंगा टास्क फोर्स की टीम मौजूद रही.
काशी में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के मौके पर काशी के केदार घाट पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुगुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने देशवासियों को हिंदू नववर्ष की बधाई दी. इस मौके पर विद्याश्री धर्मार्थ न्यास द्वारा शंकराचार्य घाट पर वार्षिकोत्सव मनाया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ जगदगुरुकुलम् के छात्रों द्वारा वैदिक मंगलाचरण से किया गया. इसके बाद प्रसिद्ध गायक कृष्ण कुमार तिवारी ने गणेश वंदना प्रस्तुत की. कार्यक्रम का संयोजन साध्वी शारदाम्बा व संचालन साध्वी पूर्णाम्बा ने किया. कार्यक्रम में सत्यनारायण दास, ऋषि गिरी, दीपेन्द्र रघुवंशी, रमेश उपाध्याय, रामसागर दुबे, श्रीप्रकाश पाण्डेय, सुनील उपाध्याय, सतीश अग्रहरी, डॉ. अभय शंकर तिवारी, राजकुमार शर्मा, भार्गव भुवा, अमित पाण्डेय, रविन्द्र मिश्रा, सावित्री पाण्डेय, लता पाण्डेय, माधुरी पाण्डेय, चांदनी चौबे, अमित तिवारी, शिवाकान्त मिश्रा, आर्यन सुमन, मनीषमणि त्रिपाठी आदि मौजूद थे.
मेरठ में नव संवत्सर के अवसर पर मेरठ के जिमखाना मैदान में जनचेतना महायज्ञ का आयोजन किया गया. महायज्ञ में शहर की तमाम सामाजिक, धार्मिक संगठनों के अलावा कई शिक्षण संस्थाओं ने भी भाग लिया. 521 कुंडीय जनचेतना महायज्ञ में हजारों लोग शामिल हुए. 2084 जोड़ों ने वेद मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ में आहुति दी. मुख्य संयोजक राजेश सेठी ने बताया कि पिछले 26 वर्षों से गुरुकुल प्रभात आश्रम टीकरी के कुलाधिपति स्वामी विवेकानंद सरस्वती के ब्रह्मत्व में यह कार्यक्रम जन सामान्य को वैदिक संस्कृति व भारतीय नववर्ष के स्वागत में आयोजित किया जाता है. कार्यक्रम के प्रभारी अशोक सुधाकर ने बताया कि जनचेतना महायज्ञ में वैदिक मंत्रों के साथ शुद्ध गोघृत व औषधियों से आहुति प्रदान की गई. उन्होंने बताया कि युवा पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जाेड़ने के लिए विभिन्न स्कूलों के विद्यार्थियों ने इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
कानपुर के बाराह देवी मंदिर का इतिहास 600 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. नवरात्र के पहले दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ माता रानी के दर्शन को उमड़ी. भोर से ही माता रानी की जयकारों के साथ भक्त पहुंचने लगे. इस मौके पर यहां मेले का भी आयोजन किया गया. भक्तों की सुरक्षा के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मी और सीसीटीवी कैमरे लगाए गए. बता दें कि कानपुर शहर के बाराह देवी मंदिर का इतिहास 600 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. माता रानी भक्तों के हर संकट को दूर करती हैं.
प्रयागराज में आलोपी बाग स्थित अलोप शंकरी देवी के मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त मां के दर्शन को पहुंचे. पुराणों में वर्णन है कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा मंदिर के स्थान पर ही गिरा था. इस वजह से यह स्थान सिद्ध पीठ भी है. इस मंदिर में श्रद्धालु पालने की पूजा करते हैं. श्रद्धालु कुंड से जल लेकर पालने पर चढ़ाते हैं और चबूतरे की परिक्रमा कर मां सती का आशीर्वाद लेते है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. नवरात्र के पहले दिन ही यहां भोर से दर्शन-पूजन का सिलसिला जारी रहा.
संभल में देवी मंदिरों में भोर से ही जय माता दी के जयघोष गूंजने लगे. यहां भक्तों की सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात रहा. संभल सदर के मोहल्ला हल्लू सराय स्थित सिद्ध पीठ मां चामुंडा देवी मंदिर पर तड़के से ही श्रद्धालु दर्शन को पहुंचने लगे. मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया गया. चारों ओर सजावट की गई. वहीं, नवरात्र के पहले दिन भक्तों ने घरों पर मां की विधि-विधान से पूजन-अर्चन कर परिवार की सुख समृद्धि के लिए मंगल कामना की.
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