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कहां है शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के सपनों का भारत...

यूपी के सहारनपुर जिले में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का परिवार रहता है. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर शहीद भगत सिंह के भतीजे से बात की गई. इस दौरान उन्होंने कहा कि आज का भारत सेनानियों के सपनों जैसा नहीं है.

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Published : Aug 15, 2020, 12:11 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST

कहां है शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के सपनों का भारत
कहां है शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के सपनों का भारत

सहारनपुर: आज पूरा देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस दिन देश भक्ति के गीतों के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद किया जाता है, लेकिन शहीदों के परिजन पूछते हैं कि 'कहां है स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत'. सहारनपुर में रहने वाले शहीद भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह संधू ने उनकी याद में उनके जीवन से जुड़े अनेक दस्‍तावेज संजो रखे हैं, जो गुजरे जमाने की याद ताजा कराते हैं. पढ़िए ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत...

'दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी.’ ये पंक्‍तियां जब भी हमारे कानों तक पहुंचती हैं तो जेहन में महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की यादें ताजा हो जाती हैं. यह वही अमर गीत हैं, जो 23 मार्च 1931 को फांसी के तख्‍ते पर लटकने से पहले इन वीर सपूतों के होठों पर सजे थे.

एक्सक्लूसिव बातचीत.

बता दें कि शहीद भगत सिंह के छोटे भाई स्व. कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत सिंह संधू सहारनपुर में निवास करते हैं. यहां पर आवास-विकास से थोड़ा आगे उनका घर है. उनके घर में कदम रखते ही शहीद भगत सिंह की यादों को ताजा करने वाले अनेक चित्र दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें बेहद संजोकर रखा गया है. शहीद भगत सिंह के भतीजे ने देश के लिए जान कुर्बान करने वाले अपने चाचा की तमाम यादों को बेहद सुरक्षित तरीके से संजो रखा है.

शहीद-ए-आज़म भगत के भतीजे सरदार किरणजीत सिंह ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के परिजनों के लिए 15 अगस्त का दिन एक पुनीत पर्व है. स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए इस दिन से बड़ा कोई पर्व नहीं है. उनका कहना है कि जिस सपने को लेकर स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिए, वो सपनों का भारत कहीं खो सा गया है. भारत अभी भी पूरी तरह आजाद नहीं हुआ है, अभी भी आर्थिक तौर पर गुलामों की जिंदगी जी रहा है. देश में अभी गरीबी बाकी है, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और जातिवाद का जहर पूरे समाज मे फैला हुआ है.

शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह के भतीजे का कहना है कि आजादी के साल बीतने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों का सम्मान करना सरकार के लिए महज एक औपचारिकता रह गया है. जब तक स्वतंत्रता सेनानी जीवित रहे, उन्हें सम्मान पेंशन और थोड़ी बहुत अन्य सुविधाएं भी दी गईं, लेकिन बाद में उनके अनुजों को नजर अंदाज किया जा रहा है.

स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों की मांग है कि जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान किया है, उनके परिवार को प्रथम राष्ट्रीय परिवार की उपाधि दी जाए. साथ ही शहीद के जो परिवार गरीब गुरबत में है, उनकी आर्थिक मदद भी की जाए.

किरणजीत सिंह ने बताया कि सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती, लेकिन युवाओं ने यह मांग की है कि शहीद ए आज़म सरदार भगत को शहीद का दर्जा दिया जाए. वहीं सरकार का कहना है कि आजादी के बाद सिर्फ सीमाओं पर शहीद हुए जवानों को ही शहीद का दर्जा दिया जाता है. सरदार किरण जीत सिंह ने सरकार से मांग की है कि ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को सवैधानिक तौर पर शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए. शहीदों के परिवार को आर्थिक मदद नहीं, बल्कि सम्मान चाहिए.

सहारनपुर: आज पूरा देश 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस दिन देश भक्ति के गीतों के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद किया जाता है, लेकिन शहीदों के परिजन पूछते हैं कि 'कहां है स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत'. सहारनपुर में रहने वाले शहीद भगत सिंह के भतीजे किरणजीत सिंह संधू ने उनकी याद में उनके जीवन से जुड़े अनेक दस्‍तावेज संजो रखे हैं, जो गुजरे जमाने की याद ताजा कराते हैं. पढ़िए ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत...

'दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी.’ ये पंक्‍तियां जब भी हमारे कानों तक पहुंचती हैं तो जेहन में महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की यादें ताजा हो जाती हैं. यह वही अमर गीत हैं, जो 23 मार्च 1931 को फांसी के तख्‍ते पर लटकने से पहले इन वीर सपूतों के होठों पर सजे थे.

एक्सक्लूसिव बातचीत.

बता दें कि शहीद भगत सिंह के छोटे भाई स्व. कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत सिंह संधू सहारनपुर में निवास करते हैं. यहां पर आवास-विकास से थोड़ा आगे उनका घर है. उनके घर में कदम रखते ही शहीद भगत सिंह की यादों को ताजा करने वाले अनेक चित्र दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें बेहद संजोकर रखा गया है. शहीद भगत सिंह के भतीजे ने देश के लिए जान कुर्बान करने वाले अपने चाचा की तमाम यादों को बेहद सुरक्षित तरीके से संजो रखा है.

शहीद-ए-आज़म भगत के भतीजे सरदार किरणजीत सिंह ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के परिजनों के लिए 15 अगस्त का दिन एक पुनीत पर्व है. स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए इस दिन से बड़ा कोई पर्व नहीं है. उनका कहना है कि जिस सपने को लेकर स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिए, वो सपनों का भारत कहीं खो सा गया है. भारत अभी भी पूरी तरह आजाद नहीं हुआ है, अभी भी आर्थिक तौर पर गुलामों की जिंदगी जी रहा है. देश में अभी गरीबी बाकी है, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और जातिवाद का जहर पूरे समाज मे फैला हुआ है.

शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह के भतीजे का कहना है कि आजादी के साल बीतने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों का सम्मान करना सरकार के लिए महज एक औपचारिकता रह गया है. जब तक स्वतंत्रता सेनानी जीवित रहे, उन्हें सम्मान पेंशन और थोड़ी बहुत अन्य सुविधाएं भी दी गईं, लेकिन बाद में उनके अनुजों को नजर अंदाज किया जा रहा है.

स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों की मांग है कि जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान किया है, उनके परिवार को प्रथम राष्ट्रीय परिवार की उपाधि दी जाए. साथ ही शहीद के जो परिवार गरीब गुरबत में है, उनकी आर्थिक मदद भी की जाए.

किरणजीत सिंह ने बताया कि सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती, लेकिन युवाओं ने यह मांग की है कि शहीद ए आज़म सरदार भगत को शहीद का दर्जा दिया जाए. वहीं सरकार का कहना है कि आजादी के बाद सिर्फ सीमाओं पर शहीद हुए जवानों को ही शहीद का दर्जा दिया जाता है. सरदार किरण जीत सिंह ने सरकार से मांग की है कि ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को सवैधानिक तौर पर शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए. शहीदों के परिवार को आर्थिक मदद नहीं, बल्कि सम्मान चाहिए.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST
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