सहारनपुर: एक ओर जहां केंद्र की मोदी सरकार साक्षरता मिशन अभियान चलाकर "पढ़ेगा इंडिया, बढ़ेगा इंडिया" की मुहिम छेड़े हुए है तो वहीं दूसरी तरफ जिले के सैद मोहमदपुर गांव में खुले आसमान के नीचे पढ़ रहे प्राइमरी स्कूल के बच्चे केंद्र और राज्य सरकार के दावों की पोल खोल रहे हैं. समाज कल्याण विभाग की ओर से संचालित स्कूल भवन न सिर्फ पूरी तरह जर्जर हो चुका है बल्कि इसकी छतें और दीवारें भी गिरने लगी हैं. बता दें कि प्रशासन यह जानते हुए भी कुम्भकरण की नींद सो रही है.
प्राथमिक स्कूलों के हालात हैं बदतर
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और महंगी फीस ने अभिभावकों की नींद उड़ाए है. वहीं ग्रामीण आंचल में चल रहे समाज कल्याण विभाग के संचालित प्राइमरी स्कूल की हालत खस्ताहाल बनी हुई है. आपको बता दें कि सहारनपुर जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर तहसील बेहट इलाके के घाड़ क्षेत्र में बसे गांव सैद मोहमदपुर में कई दशक पहले एक सोसाइटी ने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल का निर्माण कराया था. समाज कल्याण विभाग ने स्कूल में पाठन और अन्य सुविधाओं की जिम्मेदारी उठाई थी.
खुले आसमान के नीचे बच्चे पढ़ने को हैं मजबूर
जिले भर में समाज कल्याण विभाग के कुल 7 स्कूल हैं लेकिन मोहमदपुर के इस स्कूल की हालत खस्ताहाल हो चुकी है. पिछले करीब 10 सालों से स्कूल भवन जर्जर हालत में पड़ा हुआ है. भवन की छतें, दीवारें और फर्श सब टूटकर खंडहर हो चुका है. जिसके चलते ग्रामीणों ने सभी स्कूली बच्चों को पढ़ाई के लिये गांव के मंदिर में शिफ्ट कर दिया है. जहां ये मासूम छात्र छात्राएं तपाती धूप, ठिठुरती सर्दी और बरसात का मौसम में खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने में मजबूर हैं.
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जीवों से हो सकता है बच्चों को खतरा
बच्चों ने इटीवी भारत को बताया कि बरसात के दिनों में मंदिर के बराबर में खेतों से सांप, बिच्छू जैसे जहरीले जीव भी आ जाते हैं. जिनसे हमेशा उन्हें जान का खतरा भी सताता रहता है. बच्चों की मानें तो उन्हें इस स्तर की किताबें तो मिल गई है लेकिन स्कूल ड्रेस, जूते, बस्ते अभी तक भी नहीं मिले हैं.
स्कूल में एक ही अध्यापक की है तैनाती
ग्रामीणों का कहना है कि यह स्कूल समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है और पांचवी कक्षा तक चल रहा है. गांव के सैकड़ों बच्चे मंदिर प्रांगण में पढ़ाई कर देश का भविष्य बनने का सपना संजो रहे हैं. बता दें कि स्कूल में बड़ी संख्या में बच्चों को पढ़ाने के लिये महज एक ही अध्यापक की तैनाती की गई है. वहीं किसान शिवचरण खेतीबाड़ी करने के साथ ही स्कलू में बच्चों को पढ़ाकर अध्यापकों की मदद कर देते हैं.
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जर्जर छत के नीचे पल रहे बच्चों के सपने
जर्जर स्कूल में पढ़ाई कर चुकी एक युवती ने बताया कि यदि उनके गांव में अच्छा स्कूल बन जाये तो गांव के बच्चे भी डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बन सकते हैं. वहीं अभिभावकों ने बताया कि खुले आसमान के नीचे मंदिर प्रांगण में बच्चों को पढ़ाना सिर्फ उनकी मजबूरी है क्योंकि गांव में दूसरा कोई स्कूल नहीं है. नियानुसार 80 बच्चो की संख्या हो तो गांव में सरकारी स्कूल खोला जा सकता है, लेकिन लगता है कि जिला प्रशासन केवल समाज कल्याण के संचालित बिना भवन के चल रहे स्कूल के भरोसे किसी बड़े हादसे का इन्तजार कर रहा है.
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समय के साथ स्कूल भवन खंडहर में तब्दील होता गया
जानकारों के मुताबिक गांव मोहमदपुर में समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक पाठशाला और भीम राव अम्बेडकर मेमोरियल एकेडमी के नाम से स्कूल की स्थापना 1950 में की गई थी. 70 साल पहले ही एक समिति ने स्कूल की बिल्डिंग का निर्माण कराया था. काफी पुराना होने के कारण स्कूल भवन जर्जर होकर टूटने लगा.
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प्रशासन को स्कूल की कोई सुध नहीं
स्कूल के जर्जर होने की शिकायत अधिकारियों को की गई लेकिन किसी ने कोई सुनवाई नहीं की. ग्रामीणों ने अधिकारियों के साथ मंत्रियों, सांसद, विधायकों से स्कूल की मरम्मत कराने की मांग की, लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. धीरे-धीरे स्कूल भवन खंडहर में तब्दील होता गया. आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने इन मासूम छात्रों की पढ़ाई की कोई सुध नहीं ली कि आखिर कैसे मासूम बच्चों का भविष्य इस खंडहर के नीचे पल रहा है.
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