सहारनपुर: तकदीर के खेल से कभी निराश नहीं होते, जिंदगी में ऐसे कभी उदास नहीं होते. हाथों की लकीरों पर क्यों भरोसा करते हो, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते. यह कहावत सहारनपुर के बंसीलाल पर सटीक बैठती है.
बचपन में हुए हादसे में गवां दिया था हाथ:
बचपन में हादसे का शिकार हुए बंसीलाल ने अपना एक हाथ भले ही गंवा दिया हो, लेकिन हौंसला और हिम्मत कभी नहीं हारी. यही वजह है कि बंसीलाल अपने एक हाथ से भारी-भरकम रेहड़े में कई क्विंटल वजन खींचकर दो जून की रोटी कमा रहा है. कंधे से हाथ कटा होने पर भी उसका हौंसला सलामत है, जिसके बलबूते वह रस्सी को दूसरा हाथ बनाकर रेहड़ा खींचता है, लेकिन किसी के आगे हाथ फैलाना उसे कतई मंजूर नहीं.
अपने बच्चों को बनाउंगा अच्छा इंसान:
बंसीलाल ने बताया कि उसके मां बाप का देहांत हो चुका है. परिवार में एक छोटा भाई और उसके बच्चे हैं. जिनके लिए ही वह जी तोड़ मेहनत कर रहा है. बंसीलाल का कहना है कि वह मेहनत और ईमानदारी की कमाई खिलाकर अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनाना चाहता है.