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नहीं पता था जिंदगी हो जाएगी वीरान, NTPC ब्लास्ट के 3 साल - रायबरेली की कहानी

1 नवंबर 2017 को एनटीपीसी ऊंचाहार के बॉयलर ब्लास्ट की भयानक घटना में महज 29 वर्षीय बाल कृष्ण शुक्ल की मौत हो गई. उनके दो छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गए. उनकी विधवा पत्नी का जीवन भी बर्बाद हो गया. ETV भारत ने उस हादसे के तीसरी बरसी पर उनसे मिलकर उस घटना और उसके बाद के हालातों पर चर्चा की. पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट.

NTPC ब्लास्ट के पीड़ित.
NTPC ब्लास्ट के पीड़ित.
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Published : Nov 1, 2020, 12:52 AM IST

रायबरेलीः ऊंचाहार एनटीपीसी हादसे के 3 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी उस हादसे के पीड़ितों के आंसू नहीं सूखे. जीवन भर सालने वाले गम की सौगात देकर वह घटना आज भी उन पीडितों के जेहन में ताजी है. 3 साल गुजर जाने के बाद भी हादसे के दिए हुए जख्म भरे नहीं हैं. बीतते समय के साथ और भी गहरे छाप छोड़ते जा रहे हैं.

एनटीपीसी ऊंचाहार में हुए धमाके की कहानी.

आंसू कम पड़ गए पर गम नहीं हुआ कम
हादसे में मरने वाले दिवंगत बाल कृष्ण शुक्ल की पत्नी मंजू बताती हैं कि दुख की कोई सीमा नहीं है. कष्टों का कोई अंत नहीं है. बतौर टेक्नीशियन उनके पति की एनटीपीसी में तैनाती थी. वह प्रतिदिन जाते थे पर उस दिन न जाने क्या था? उस मनहूस घड़ी में कि जब वो गए तो फिर दोबारा नहीं आए. उनके जाने के 10 मिनट बाद ही ब्लास्ट की खबर आ पहुंची.

नहीं पता था जिंदगी हो जाएगी वीरान
मंजू का कहना है कि पति के न रहने पर ससुरालीजनों ने घर से निकाल दिया. यही कारण है कि दो नन्हें बच्चों के साथ अब वह अपने मायके में गुजर बसर कर रही हैं. एक दिन अचानक से जिंदगी ऐसी वीरान हो जाएगी कभी सोचा ही नहीं था. 3 साल कैसे कटे पता ही नहीं चला. हालांकि सहायता राशि के रूप मे करीब 20 लाख मिले हैं और उसी से खर्चा चलता है. बच्चों का भविष्य अभी भी अधर में दिखता है. हर ओर अंधकार और निराशा ही है.

बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था और घर की दरकार
पति के मौत के समय छोटा बेटा महज 1 महीने का था, अबोध बेटी करीब 3 साल की थी. अब दोनों बच्चे बड़े हो रहे हैं. उनके भविष्य की चिंता रहती है. बेटी की पढ़ाई-लिखाई करवाकर उसकी शादी भी करनी है. दोनों बच्चों के जीवन-यापन के लिए अभी कोई ठोस व्यवस्था नजर नहीं आती. बच्चों की पढ़ाई का भी कोई ठिकाना नहीं है. बहुत सी चीजों की अभी भी दरकार है. बच्चों की पढ़ाई की ठोस व्यवस्था और रहने के लिए कोई मकान हो जाए तो दर-दर भटकने से छुटकारा मिल सकता है.

खौफनाक था मंजर, क्षत-विक्षत जले शव से पटे थे अस्पताल
घटना के दिन का खौफनाक मंजर याद करते हुए मंजू के बड़े भाई मनोज तिवारी बताते हैं कि हादसे के बाद जब वो ऊंचाहार के जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचे तब लोगों के क्षत-विक्षत जले शव पड़े थे. उनके बहनोई बाल कृष्ण शुक्ल का शव भी पहचानना मुश्किल हो रहा था. उनकी मौत संभवतः घटनास्थल पर ही हो गई थी. एनटीपीसी से अपेक्षा थी कि जिन लोगों ने प्लांट के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी कम से कम उनके परिजनों को रोजगार के लिए नौकरी और मृतकों के बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था कराएं. एनटीपीसी सीएसआर के तहत ऐसे कई कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है. जिन्होंने उस हादसे में अपनों को खोया है, उनको जरूर प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

रायबरेलीः ऊंचाहार एनटीपीसी हादसे के 3 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी उस हादसे के पीड़ितों के आंसू नहीं सूखे. जीवन भर सालने वाले गम की सौगात देकर वह घटना आज भी उन पीडितों के जेहन में ताजी है. 3 साल गुजर जाने के बाद भी हादसे के दिए हुए जख्म भरे नहीं हैं. बीतते समय के साथ और भी गहरे छाप छोड़ते जा रहे हैं.

एनटीपीसी ऊंचाहार में हुए धमाके की कहानी.

आंसू कम पड़ गए पर गम नहीं हुआ कम
हादसे में मरने वाले दिवंगत बाल कृष्ण शुक्ल की पत्नी मंजू बताती हैं कि दुख की कोई सीमा नहीं है. कष्टों का कोई अंत नहीं है. बतौर टेक्नीशियन उनके पति की एनटीपीसी में तैनाती थी. वह प्रतिदिन जाते थे पर उस दिन न जाने क्या था? उस मनहूस घड़ी में कि जब वो गए तो फिर दोबारा नहीं आए. उनके जाने के 10 मिनट बाद ही ब्लास्ट की खबर आ पहुंची.

नहीं पता था जिंदगी हो जाएगी वीरान
मंजू का कहना है कि पति के न रहने पर ससुरालीजनों ने घर से निकाल दिया. यही कारण है कि दो नन्हें बच्चों के साथ अब वह अपने मायके में गुजर बसर कर रही हैं. एक दिन अचानक से जिंदगी ऐसी वीरान हो जाएगी कभी सोचा ही नहीं था. 3 साल कैसे कटे पता ही नहीं चला. हालांकि सहायता राशि के रूप मे करीब 20 लाख मिले हैं और उसी से खर्चा चलता है. बच्चों का भविष्य अभी भी अधर में दिखता है. हर ओर अंधकार और निराशा ही है.

बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था और घर की दरकार
पति के मौत के समय छोटा बेटा महज 1 महीने का था, अबोध बेटी करीब 3 साल की थी. अब दोनों बच्चे बड़े हो रहे हैं. उनके भविष्य की चिंता रहती है. बेटी की पढ़ाई-लिखाई करवाकर उसकी शादी भी करनी है. दोनों बच्चों के जीवन-यापन के लिए अभी कोई ठोस व्यवस्था नजर नहीं आती. बच्चों की पढ़ाई का भी कोई ठिकाना नहीं है. बहुत सी चीजों की अभी भी दरकार है. बच्चों की पढ़ाई की ठोस व्यवस्था और रहने के लिए कोई मकान हो जाए तो दर-दर भटकने से छुटकारा मिल सकता है.

खौफनाक था मंजर, क्षत-विक्षत जले शव से पटे थे अस्पताल
घटना के दिन का खौफनाक मंजर याद करते हुए मंजू के बड़े भाई मनोज तिवारी बताते हैं कि हादसे के बाद जब वो ऊंचाहार के जीवन ज्योति अस्पताल पहुंचे तब लोगों के क्षत-विक्षत जले शव पड़े थे. उनके बहनोई बाल कृष्ण शुक्ल का शव भी पहचानना मुश्किल हो रहा था. उनकी मौत संभवतः घटनास्थल पर ही हो गई थी. एनटीपीसी से अपेक्षा थी कि जिन लोगों ने प्लांट के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी कम से कम उनके परिजनों को रोजगार के लिए नौकरी और मृतकों के बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था कराएं. एनटीपीसी सीएसआर के तहत ऐसे कई कार्यक्रमों का आयोजन करता रहा है. जिन्होंने उस हादसे में अपनों को खोया है, उनको जरूर प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

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