रायबरेली: पालतू जानवरों से प्रेम करने वाले लोगों के बारे में तो बहुत सुना होगा, लेकिन जिले के एक ऐसे भी सज्जन हैं जिनका वानर प्रेम देखकर हर कोई चकित रह जाता है. इनका नाम है श्याम साधु. जब यह खाना लेकर बंदरों के बीच पहुंचते हैं तो सैकड़ों की संख्या में बंदर इनकी तरफ खाना लेने के लिए दौड़ पड़ते हैं और उनके हाथों से खाना लेकर भागने लगते हैं. सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि बंदरों के ज्यादा चहलकदमी करने पर श्याम साधु उन्हें डांटते भी हैं, लेकिन कोई भी बंदर उन्हें कोई हानि नहीं पहुंचाता.
बचपन में ही जागा पशु प्रेम
श्याम साधु का कहना है कि मन में सच्चाई हो और सत्कर्म का लक्ष्य हो, तो कोई भी कार्य अधूरा नहीं रह जाता. बजरंगबली से प्रेरणा लेकर श्याम साधु पशु सेवा जैसा महान काम बचपन से ही करते आ रहे हैं. मात्र सात साल की उम्र से ही श्याम साधु पशु सेवा का काम कर रहे हैं. हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था. शुरुआती दौर में काफी परेशानी आई परिवार वालों ने इसका विरोध किया, लेकिन अपने दृढ़ संकल्प की बदौलत श्याम साधु ने अपना काम जारी रखा और यही वजह है कि बचपन से लेकर बुढ़ापे के इस पड़ाव में भी पशुओं के प्रति प्रेम और एक पिता की भांति पशुओं की देखभाल करने की इनकी कोशिश निरंतर जारी है.
लॉकडाउन के दौरान भी बंदरों कि दिया भोजन
बता दें कि कोरोना काल के दौरान जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था उस दौरान भी श्याम साधु ने अपना काम जारी रखा और साबित कर दिया कि चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न आ जाए, लेकिन इनके पशुओं के प्रति जो स्नेह है उसमें कभी कोई कमी नहीं आएगी. दरअसल, लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा परेशानी उन जानवरों को थी जो भोजन के लिए मनुष्यों पर आश्रित रहते हैं. उनमें से एक हैं बंदर जो अक्सर मंदिरों में रहते हैं और मंदिर बंद होने के चलते यह भुखमरी की कगार पर आ गए थे, लेकिन उस दौरान भी श्याम साधु सुबह भोर में ही पूरी सुरक्षा के साथ बंदरों के लिए खाना लेकर घर से निकल जाते और उन्हें खाना खिलाते.
सुरक्षा से नहीं किया समझौता
श्याम साधु बताते हैं कि कोरोना महामारी के इस दौरान जो भी बचाव के तरीके बताए जाते थे उनका शत प्रतिशत वह पालन करते थे. बाहर से आने के बाद उन कपड़ों को बदलकर ही घर मे प्रवेश करते थे. इसके अलावा आयुर्वेदिक तुलसी के अर्क का प्रयोग भी करते और बस इन्हीं उपायों से वह सुरक्षित रहे और निरंतर अपने कामकाज में लगे रहे. श्याम साधु के इस प्रेम को देखते हुए उन्हें 'सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टुवर्ड्स एनिमल्स' (एसपीसीए) के लिए जिलाधिकारी द्वारा नामित सदस्य बनाया गया है. साथ ही लॉकडाउन के दौरान उन्हें पशुओं को भोजन कराने के लिए पास भी उपलब्ध कराया गया, इसके अलावा प्रशासन ने हर संभव मदद का भी आश्वासन दिया था.
पूरी सुरक्षा के साथ सुबह से ही बंदरों को भोजन देने के लिए निकल जाता. बाहर से आने के बाद कपड़े बदलकर ही घर में प्रवेश करता था. इसके अलावा आयुर्वेदिक तुलसी के अर्क का प्रयोग भी किया. बस इन्ही उपायों से सुरक्षित रहे और निरंतर अपने कामकाज में लगे रहे.
-श्याम साधु, पशु सेवी व पर्यावरण विद
सामाजिक कार्यों में भी रहते हैं सक्रिय
शहर के निराला नगर निवासी, 84 वर्षीय के.के.मिश्र पशु प्रेमी श्याम साधु के नाम से प्रसिद्ध हैं. कई दशकों से यह वानर भोज का कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं और कहीं भी उन्हें अगर कोई भी पशु पक्षी घायल अवस्था में दिखाई पड़ता है तो तुरंत वह उसकी सेवा में लग जाते हैं. पशुओं के प्रति अपार स्नेह का भाव रखने वाले श्याम साधु गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए अनशन करने के लिए भी जाने जाते हैं. दो बेटियों के पिता श्याम साधु बेबाकी से तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखने के लिए भी अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. श्याम साधु का कहना है कि मनुष्य को सार्थकता में ही जीना चाहिए. जो मनुष्य प्राणिमात्र में अपने आप को देखता हो वही योगी है.
कहा गीता में है जीवन का मूलमंत्र
श्याम साधु कहते हैं कि मनुष्य को सार्थकता में ही जीना चाहिए. जो मनुष्य प्राणिमात्र में अपने आप को देखता हो वही योगी है. गीता में वर्णित इस वाक्य को ही उन्होंने जीवन का सूत्र वाक्य माना और कठिनाइयों पर फतेह हासिल करते रहे. इसके अलावा बेहद मुखर होकर श्याम साधु कहते हैं कि गौ हत्या रोके जाने का समय आ गया है. सरकार पूरी तरह से इस पर प्रतिबंध लगाए और तत्काल प्रभाव से इसे रोके.
श्याम साधु जिले के ऐसे पशुसेवी है जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान भी निराश्रित पशुओं का ख्याल रखा.अनवरत उनकी देखभाल करते रहे. वो पहले से ही 'सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टुवर्ड्स एनिमल्स' (एसपीसीए) के जिलाधिकारी द्वारा नामित सदस्य है. उन्हें पास उपलब्ध कराने के अलावा जो भी मदद हो सकती थी विभाग द्वारा वो सब कुछ किया गया.
-डॉ गजेंद्र सिंह चौहान, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, रायबरेली