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प्रयागराज शहर पश्चिमी विधानसभा सीट: कभी बाहुबलियों का था बोलबाला, 2017 में भाजपा ने किया सफाया - prayagraj west assembly seat

प्रयागराज की पश्चिमी विधानसभा सीट(West Assembly Seat) पर एक समय बाहुबलियों का बोलबाला था. 1989 से 2002 तक बाहुबली अतीक अहमद का दबदबा कायम था. अतीक अहमद ने यहां से पांच बार जीत दर्ज कर विधायक की सीट पर कब्जा जमाया. मौजूदा समय में यूपी के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह यहां से विधायक हैं. एक रिपोर्ट..

प्रयागराज शहर पश्चिमी विधानसभा सीट
प्रयागराज शहर पश्चिमी विधानसभा सीट
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Published : Sep 15, 2021, 1:58 PM IST

प्रयागराज: जिले की शहर पश्चिमी विधानसभा सीट (West Assembly Seat) में एक समय था जब यहां बाहुबलियों का बोलबाला था. इसी बीच 2017 में भाजपा ने यहां जीत का कमल खिलाया. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता व कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने 2017 के चुनाव में इस सीट से बड़ी जीत दर्ज की.

यह सीट उस समय सबसे ज्यादा चर्चा में आई थी जब 2004 में हुए उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी राजूपाल ने बाहुबली अतीक अहमद के छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को हराया था. इसके बाद 2005 में विधायक राजू पाल की सरेआम गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई.

राजूपाल की हत्या का आरोप अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ पर लगा था. इसके बाद 2005 में फिर उपचुनाव हुए जिसमें बसपा ने राजूपाल की पत्नी पूजा पाल को टिकट दिया लेकिन यहां से सपा प्रत्याशी अशरफ ने पूजा पाल को शिकस्त देते हुए जीत दर्ज की.

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कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह

बाहुबली अतीक का रहा है बोलबाला

शहर पश्चिमी विधानसभा सीट(West Assembly Seat) को बाहुबली अतीक का गढ़ इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि 1989 से लेकर 2002 के बीच लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव में अतीक अहमद ने अपना दबदबा कायम रखा था. इनमें से तीन चुनावों में अतीक ने निर्दलीय जीत दर्ज की. जबकि एक बार सपा और एक बार अपना दल के टिकट पर भी अतीक को विधायक बनने का मौका मिल चुका है.

2002 में लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद ने फूलपुर से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. जिसके बाद इस खाली सीट से अतीक ने अपने छोटे भाई अशरफ को टिकट दिलवाया. 2004 में हुए उपचुनाव में अतीक के छोटे भाई अशकरफ ने इस सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन बसपा के टिकट पर राजू पाल ने जीत दर्ज की. 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की सरेआम हत्या कर दी गई और हत्या का आरोप अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ पर लगा था.

2005 में फिर उपचुनाव हुए जिसमें अतीक के भाई अशरफ ने एक बार फिर शहर पश्चिमी सीट से जीत दर्ज की. अशरफ ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में हराया था. इसके बाद 2007 में राजूपाल की पत्नी पूजा पाल चुनाव जीतीं और 2012 में फिर से पूजा ने चुनाव जीतकर बाहुबली के दुर्ग को हिलाकर रख दिया. पूजा ने अतीक अहमद के छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को करारी शिकस्त दी थी. इसके बाद 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार व पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थनाथ सिंह ने बड़ी जीत दर्ज की.

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पूर्व सांसद विधायक अतीक अहमद
शहर पश्चिमी से कब कौन बना विधायक
चुनावजीतपार्टी
2017सिद्धार्थनाथ सिंहBJP
2012पूजा पालBSP
2007पूजा पालBSP
2005खालिद अजीम उर्फ अशरफSP उपचुनाव
2004राजू पालBSP उपचुनाव
2002 अतीक अहमदअपना दल
1996अतीक अहमदSP
1993 अतीक अहमद निर्दलीय
1991अतीक अहमद निर्दलीय
1989अतीक अहमदनिर्दलीय
1985गोपाल दास यादवLKD
1980 चौधरी नौनिहाल सिंहकांग्रेस
1979 सी एन सिंह कांग्रेस उपचुनाव
1977 हबीब अहमद JNP
1974तीरथ राम कोहली BJS
1969 हबीब अहमदनिर्दलीय
1967सीएन सिंह कांग्रेस


मतदाताओं पर एक नजर

शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर कुल 4 लाख 36 हजार 109 मतदाता हैं. इसमें 2 लाख 39 हजार 442 पुरुष और 1 लाख 96 हजार 627 माहिला मतदाता हैं. 40 मतदाता ट्रांस जेंडर हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण इलाके भी जुड़े हुए हैं. इसके चलते यहां शहरी समस्याओं के साथ ही ग्रामीण इलाकों से जुड़ी समस्याएं भी चुनावी मुद्दा बनती हैं.

शहर पश्चिमी विधानसभा शहर में शहर उत्तरी और दक्षिणी के मुकाबले विकास कार्य अभी तक कम हुए हैं. इस इलाके में सड़क और बिजली की समस्या के साथ ही बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. इस इलाके में आज भी शहर के अन्य इलाकों के मुकाबले अपराध दर ज्यादा है. हालांकि सिद्धार्थनाथ सिंह के विधायक चुने जाने के बाद इस इलाके को कई बड़ी सौगातें मिल चुकी हैं जिनका कार्य तेजी से चल रहा है.

यहां के भगवतपुर ब्लॉक में 100 बेड का अस्पताल बन रहा है. इसके साथ ही झलवा इलाके में निजी मेडिकल कॉलेज खुल चुका है. प्रदेश की दूसरी लॉ यूनिवर्सिटी भी इसी विधानसभा क्षेत्र में बनेगी जिसका हाल ही में राष्ट्रपति के हाथों शिलान्यास किया गया. इसके अलावा जिले का एयरपोर्ट भी इसी विधान सभा क्षेत्र में बनाया गया है.

पूर्व प्रधानमंत्री के नाती हैं सिद्धार्थनाथ सिंह

दिल्ली में जन्मे सिद्धार्थनाथ सिंह ने स्नातक की पढ़ाई की है और छात्र राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे हैं. सिद्धार्थनाथ सिंह देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती हैं. उनके चाचा चौधरी नौनिहाल सिंह भी शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री बने थे.

यूपी सरकार के विकास की गंगा अब शहर पश्चिमी क्षेत्र में दिख रही है. साढ़े चार साल के कार्यकाल में किये गए कार्यों के नाम पर 2022 में सिद्धार्थनाथ सिंह इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं जबकि अतीक अहमद ने गुजरात की अहमदाबाद जेल से ही एआईएमआईएम का दामन थाम लिया है. अब इस सीट से अतीक अहमद या उनकी पत्नी के चुनाव लड़ने की चर्चा है.

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व प्रवक्ता रहे सिद्धार्थनाथ सिंह ने शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से पहली बार 2017 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष रहीं ऋचा सिंह से सिद्धार्थनाथ सिंह का मुकाबला था. ऋचा सिंह सपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं जबकि तत्कालीन विधायक रहीं पूजा पाल की तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा.

2017 के चुनाव में भाजपा को 85 हजार 518 वोट मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रही समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार ऋचा सिंह को 60 हजार 182 मतों से ही संतोष करना पड़ा था. हालांकि 2017 के चुनाव में अतीक अहमद चुनाव मैदान में नहीं उतरे थे. राजूपाल की हत्या के बाद से लंबे समय तक रहा अतीक का दबदबा टूट गया.

प्रयागराज: जिले की शहर पश्चिमी विधानसभा सीट (West Assembly Seat) में एक समय था जब यहां बाहुबलियों का बोलबाला था. इसी बीच 2017 में भाजपा ने यहां जीत का कमल खिलाया. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता व कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने 2017 के चुनाव में इस सीट से बड़ी जीत दर्ज की.

यह सीट उस समय सबसे ज्यादा चर्चा में आई थी जब 2004 में हुए उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी राजूपाल ने बाहुबली अतीक अहमद के छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को हराया था. इसके बाद 2005 में विधायक राजू पाल की सरेआम गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई.

राजूपाल की हत्या का आरोप अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ पर लगा था. इसके बाद 2005 में फिर उपचुनाव हुए जिसमें बसपा ने राजूपाल की पत्नी पूजा पाल को टिकट दिया लेकिन यहां से सपा प्रत्याशी अशरफ ने पूजा पाल को शिकस्त देते हुए जीत दर्ज की.

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कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह

बाहुबली अतीक का रहा है बोलबाला

शहर पश्चिमी विधानसभा सीट(West Assembly Seat) को बाहुबली अतीक का गढ़ इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि 1989 से लेकर 2002 के बीच लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव में अतीक अहमद ने अपना दबदबा कायम रखा था. इनमें से तीन चुनावों में अतीक ने निर्दलीय जीत दर्ज की. जबकि एक बार सपा और एक बार अपना दल के टिकट पर भी अतीक को विधायक बनने का मौका मिल चुका है.

2002 में लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद ने फूलपुर से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. जिसके बाद इस खाली सीट से अतीक ने अपने छोटे भाई अशरफ को टिकट दिलवाया. 2004 में हुए उपचुनाव में अतीक के छोटे भाई अशकरफ ने इस सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन बसपा के टिकट पर राजू पाल ने जीत दर्ज की. 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की सरेआम हत्या कर दी गई और हत्या का आरोप अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ पर लगा था.

2005 में फिर उपचुनाव हुए जिसमें अतीक के भाई अशरफ ने एक बार फिर शहर पश्चिमी सीट से जीत दर्ज की. अशरफ ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में हराया था. इसके बाद 2007 में राजूपाल की पत्नी पूजा पाल चुनाव जीतीं और 2012 में फिर से पूजा ने चुनाव जीतकर बाहुबली के दुर्ग को हिलाकर रख दिया. पूजा ने अतीक अहमद के छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को करारी शिकस्त दी थी. इसके बाद 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार व पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती सिद्धार्थनाथ सिंह ने बड़ी जीत दर्ज की.

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पूर्व सांसद विधायक अतीक अहमद
शहर पश्चिमी से कब कौन बना विधायक
चुनावजीतपार्टी
2017सिद्धार्थनाथ सिंहBJP
2012पूजा पालBSP
2007पूजा पालBSP
2005खालिद अजीम उर्फ अशरफSP उपचुनाव
2004राजू पालBSP उपचुनाव
2002 अतीक अहमदअपना दल
1996अतीक अहमदSP
1993 अतीक अहमद निर्दलीय
1991अतीक अहमद निर्दलीय
1989अतीक अहमदनिर्दलीय
1985गोपाल दास यादवLKD
1980 चौधरी नौनिहाल सिंहकांग्रेस
1979 सी एन सिंह कांग्रेस उपचुनाव
1977 हबीब अहमद JNP
1974तीरथ राम कोहली BJS
1969 हबीब अहमदनिर्दलीय
1967सीएन सिंह कांग्रेस


मतदाताओं पर एक नजर

शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर कुल 4 लाख 36 हजार 109 मतदाता हैं. इसमें 2 लाख 39 हजार 442 पुरुष और 1 लाख 96 हजार 627 माहिला मतदाता हैं. 40 मतदाता ट्रांस जेंडर हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण इलाके भी जुड़े हुए हैं. इसके चलते यहां शहरी समस्याओं के साथ ही ग्रामीण इलाकों से जुड़ी समस्याएं भी चुनावी मुद्दा बनती हैं.

शहर पश्चिमी विधानसभा शहर में शहर उत्तरी और दक्षिणी के मुकाबले विकास कार्य अभी तक कम हुए हैं. इस इलाके में सड़क और बिजली की समस्या के साथ ही बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. इस इलाके में आज भी शहर के अन्य इलाकों के मुकाबले अपराध दर ज्यादा है. हालांकि सिद्धार्थनाथ सिंह के विधायक चुने जाने के बाद इस इलाके को कई बड़ी सौगातें मिल चुकी हैं जिनका कार्य तेजी से चल रहा है.

यहां के भगवतपुर ब्लॉक में 100 बेड का अस्पताल बन रहा है. इसके साथ ही झलवा इलाके में निजी मेडिकल कॉलेज खुल चुका है. प्रदेश की दूसरी लॉ यूनिवर्सिटी भी इसी विधानसभा क्षेत्र में बनेगी जिसका हाल ही में राष्ट्रपति के हाथों शिलान्यास किया गया. इसके अलावा जिले का एयरपोर्ट भी इसी विधान सभा क्षेत्र में बनाया गया है.

पूर्व प्रधानमंत्री के नाती हैं सिद्धार्थनाथ सिंह

दिल्ली में जन्मे सिद्धार्थनाथ सिंह ने स्नातक की पढ़ाई की है और छात्र राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे हैं. सिद्धार्थनाथ सिंह देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती हैं. उनके चाचा चौधरी नौनिहाल सिंह भी शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री बने थे.

यूपी सरकार के विकास की गंगा अब शहर पश्चिमी क्षेत्र में दिख रही है. साढ़े चार साल के कार्यकाल में किये गए कार्यों के नाम पर 2022 में सिद्धार्थनाथ सिंह इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं जबकि अतीक अहमद ने गुजरात की अहमदाबाद जेल से ही एआईएमआईएम का दामन थाम लिया है. अब इस सीट से अतीक अहमद या उनकी पत्नी के चुनाव लड़ने की चर्चा है.

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व प्रवक्ता रहे सिद्धार्थनाथ सिंह ने शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से पहली बार 2017 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष रहीं ऋचा सिंह से सिद्धार्थनाथ सिंह का मुकाबला था. ऋचा सिंह सपा के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं जबकि तत्कालीन विधायक रहीं पूजा पाल की तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा.

2017 के चुनाव में भाजपा को 85 हजार 518 वोट मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रही समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार ऋचा सिंह को 60 हजार 182 मतों से ही संतोष करना पड़ा था. हालांकि 2017 के चुनाव में अतीक अहमद चुनाव मैदान में नहीं उतरे थे. राजूपाल की हत्या के बाद से लंबे समय तक रहा अतीक का दबदबा टूट गया.

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