प्रयागराज: प्रयागराज के लोकनाथ मोहल्ले में रहने वाले रमेश दत्त मालवीय उस उम्र में शहीद हो गए. जब बच्चों की उम्र स्कूल जाने और खेलने की होती है. महज 14 साल की छोटी सी उम्र में देश की आजादी के लिए रमेश दत्त मालवीय अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. 'अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन' के तहत 12 अगस्त को अंग्रेजी सेना पर पथराव करके रमेश ने बलूच रेजीमेंट में सार्जेंट की आंख फोड़ दी थी, जिसके बाद अंग्रेजों ने इस बच्चे को दौड़ाकर आंख में गोली मारकर शहीद कर दिया.
प्रयागराज में 12 अगस्त 1942 की दोपहर में लोकनाथ मोहल्ले से एक जुलूस अंग्रेजी सेना की खिलाफत करते हुए कोतवाली की तरफ बढ़ रहा था. कोतवाली के पास पहुंचने पर सामने से अंग्रेजी हुकूमत की फौज जुलूस को रोकने के लिए तैनात थी. अंग्रेजी सेना स्वतंत्रता सेनानियों के जुलूस को रोकने लगी. जिसके बाद दोनों तरफ से झड़प होने लगी. उसी दौरान बलूच रेजीमेंट कोतवाली पर पहुंच गई. जिसके बाद आंदोलनकारियों को रोकने के लिए बलूच रेजीमेंट की तरफ से लाठीचार्ज कर दिया गया. उसके बावजूद आजादी के दीवानों ने गगनभेदी नारे लगाते हुए अंग्रेजी सेना से मुकाबला किया, लेकिन अंग्रेजों की बर्बरतापूर्वक किए जा रहे लाठी चार्ज से घायल लोगों के लहू को देखकर 14 साल के रमेश दत्त मालवीय का खून खौल उठा. रमेश मालवीय अपने हाथों में पत्थर लेकर जुलूस की अगुवाई करते हुए सभी से आगे बढ़ने की अपील करते हुए कोतवाली की तरफ बढ़ने लगे. जिसके बाद बलूच रेजीमेंट के सार्जेंट ने आगे बढ़ कर मोर्चा संभाला. जिसके बाद रमेश दत्त मालवीय ने अचूक निशाना लगाते हुए सार्जेंट को पत्थर मारकर उसकी आंख फोड़ दी. सार्जेंट की आंख में चोट लगने के बाद अंग्रेजी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी और सार्जेंट को पत्थर मारने वाले रमेश मालवीय की आंख के नीचे गोली मार दी गई. अंग्रेजों की गोली लगने से रमेश मालवीय वहीं गिरकर वीरगति को प्राप्त हो गए.
बाल शहीद के शव को उठा ले गए थे अंग्रेजी सैनिक
छोटे से रमेश मालवीय के अंग्रेजों के गोली से शहीद होने के बाद आंदोलनकारियों के उग्र रूप को देखकर अंग्रेजी सेना को बैकफुट पर होना पड़ा और शहीद हो चुके रमेश दत्त मालवीय के शव को ब्रिटिश सैनिक उठा ले गए थे. घटना के तीसरे दिन अंग्रेजी फौज ने श्मसान घाट पर रमेश दत्त मालवीय के मृत शरीर को पहुंचाया और वहीं पर परिवार वालों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार करवाया गया था. बताया जाता है कि बालक रमेश के शहीद होने के बाद भीड़ उग्र हो चुकी थी. भीड़ के उसी उग्र रूप को देखने के बाद अंग्रेजी सैनिक शहीद बच्चे के शव को उठा ले गए, जिससे कि भीड़ और ज्यादा आक्रोशित न हो.
प्रयागराज के रमेश दत्त मालवीय देश के सबसे कम उम्र के शहीदों में गिने जाते हैं. रमेश दत्त मालवीय का जन्म 7 जुलाई 1928 को हुआ था और अंग्रेजों से लोहा लेते हुए 12 अगस्त 1942 को अंग्रेजों की गोली लगने से वो शहीद हो गए थे. इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि 14 साल की उम्र पूरी करते ही अंग्रेजों के गोली से शहीद हो गए थे.उन्हें उस वक्त देश के सबसे कम उम्र के शहीद होने वाले कहे जाते थे. प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी का कहना है कि रमेश दत्त मालवीय जैसे शहीदों की शहादत की देन है कि आज हम आजाद भारत मे खुली हवा सांस ले रहे हैं.
भारत मां की पुकार के सामने नहीं सुनी मां की बात
रमेश दत्त मालवीय का घर प्रयागराज के कोतवाली इलाके के मालवीय नगर में आज भी स्थित हैं. जहां पर उनके भाइयों का परिवार रहता है. रमेश चंद्र के पिता भानु दत्त तिवारी शहर के नामी वैद्य थे. रमेश मालवीय के भतीजे वैद्य सुभाष तिवारी ने बताया कि 12 अगस्त 1942 को रमेश मालवीय को घर से बाहर जाने से उनकी मां ने रोका था. क्योंकि 9 अगस्त से 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन की शुरुआत हो चुकी है, जिसका व्यापक असर प्रयागराज में दिख रहा था. हर तरफ आजादी के दीवाने आंदोलन कर रहे थे. 12 अगस्त को अंदोलनकारियों ने शहर कोतवाली पर कब्जा करने की योजना बनाई थी. उसी वजह से रमेश चंद्र की मां श्यामा देवी ने उन्हें बाहर जाने से रोका था, लेकिन रमेश को तो भारत मां की पुकार सुनायी पड़ रही थी और अपनी मात्र भूमि की आज़ादी के लिए चल रहे आंदोलन में शामिल होने जाना था.यही वजह थी कि रमेश दत्त मां की नजर बचाकर घर से बाहर निकले और कोतवाली तक जाने वाले जुलूस में शामिल होने पहुंच गये थे.
सीएवी इंटर कॉलेज के छात्र थे रमेश चंद्र मालवीय
रमेश दत्त मालवीय जिस वक्त शहीद हुए वो सिविल लाइंस के सीएवी इंटर कॉलेज में नौवीं के छात्र थे. कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. त्रिभुवन प्रसाद पाठक का कहना है कि उनके लिए गर्व की बात है जिस स्कूल के रमेश दत्त मालवीय छात्र थे वो आज वहां के प्रिंसिपल हैं. आज भी उनके विद्यालय के छात्र बाल शहीद से प्रेरणा लेते हैं. उनका कहना है की रमेश दत्त मालवीय के उस वक्त दी गयी शहादत का नतीजा है कि आज हम सभी भारत वासी स्वतंत्र हैं. इसके साथ ही वो यह भी बताते है कि उस वक्त रमेश दत्त मालवीय की शहादत के बाद से लोगों के मन से अंग्रेजी हुकुमत का भय कम होने लगा था. छोटे से बच्चे की शहादत के बाद से प्रयाग वासियों में जहां अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा था. वहीं अंग्रेजी सेना का खौफ भी लोगों के मन से कम होने लगा था जिससे अंग्रेज भी घबराए हुए थे.
शहादत स्थल है आज भी बदहाल
शहीद रमेश दत्त मालवीय जिस स्थान पर शहीद हुए थे, वहां पर आज सिर्फ एक पत्थर लगा हुआ है. जिसके ऊपर एक तिरंगा झंडा लगा है. इस पत्थर में शहीद रमेश दत्त मालवीय के साथ ही त्रिलोकी नाथ कपूर और बैजनाथ का नाम लिखा हुआ है. तीन शहीदों की याद में बनाए गए शहादत स्थल पर लगे इस पत्थर लगा हुआ खंभा भी बदहाल हालात में है. जहां पर उसके चारों तरफ से ठेले व दूसरी दुकानें लगी हुई है और यहां पहुंचने पर भी तलाशना पड़ता है कि आखिर शहादत स्थल कहां पर है. शहादत स्थल की दुर्दशा और शहीद की अनदेखी से उनका परिवार दुःखी है. जिस मोहल्ले में रमेश दत्त मालवीय का जन्म हुआ और जहां पर वो शहीद हुए थे. आज उसी इलाके के ज्यादातर लोगों को भी उनके शहादत और वीरता की जानकारी नहीं है जिससे उनके वंशज बेहद दुखी हैं.
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