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अभी तक गुमनामी की जिंदगी जी रहे थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पांडेय के वंशज, ईटीवी भारत से सुनाया दर्द

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा. जी हां, स्वतंत्रता आंदोलन के समय देश के लिए शहीद हुए अधिकतर लोगों के हिस्से इससे ज्यादा कुछ नहीं आया. कुछ ऐसी ही कहानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक शहीद मंगल पांडेय के परिवार की भी है. उनके पपौत्र भगवानदास पांडेय से मिलने के बाद पता चला कि आज उनका परिवार कितनी परेशानी से गुजर रहा है. परिवार को आज भी सरकार से मदद की आस है.

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शहीद मंगल पांडेय के पपौत्र भगवानदास पांडेय
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Published : May 8, 2022, 5:12 PM IST

प्रयागराज : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा. जी हां, स्वतंत्रता आंदोलन के समय देश के लिए शहीद हुए अधिकतर लोगों के हिस्से इससे ज्यादा कुछ नहीं आया. कुछ ऐसी ही कहानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक शहीद मंगल पांडेय के परिवार की भी है. उनके पपौत्र भगवानदास पांडेय से मिलने के बाद पता चला कि आज उनका परिवार कितनी परेशानी से गुजर रहा है. परिवार को आज भी सरकार से मदद की आस है.

दास्तान सुनाते शहीद मंगल पांडेय के पपौत्र भगवानदास पांडेय

भगवानदास पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि किस तरह अपने पिता शहीद रमापति पांडेय को बीच बाजार अंग्रेजों के गोली मारने के बाद उनकी विधवा मां-दादी के साथ बच्चों को लेकर जंगलों में रात गुजारती रहीं. यह सारी बातें बताते-बताते उनके आंखों में आंसू भर आए. उनसे मिलने के बाद अब प्रयागराज उनका भव्य स्वागत करने की तैयारी में है. इसमें तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी सम्मानित किया जाएगा. आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जाएगा.

इसे भी पढ़ेंः बनारसी दीदी: बनारस के युवा बोले- बेरोजगारी पर बुलडोजर चलाएं 'बाबा'

गौरतलब है कि दिवाकर पांडेय के बेटे शहीद मंगल पांडेय सन् 1849 में 22 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल में नेटिव इनफैक्ट्री की 34वीं बटालियन में भर्ती किए गए. इसमें ज्यादा संख्या में ब्राह्मणों की भर्ती की जाती थी. जब उन्होंने नारा दिया 'मारो फिरंगी को तो अंग्रेजों ने इस डर से कि सिपाहियों में क्रांति का बिगुल बजा देंगे, उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल कर दिया. इसमें फांसी की सजा दी गई.

अंग्रेजों ने उनके पोते को भी मारी गोली : शहीद मंगल पांडेय के पोते रमापति पांडेय को बलिया के बाजार में अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया. जैसे ही इसकी सूचना रमापति की पत्नी को लगी, वह अपने दोनों बेटों के साथ जंगलों में जा छुपीं. इस दौरान उनको डर था कि अंग्रेज उनको भी नही छोड़ेंगे. भगवानदास पांडेय ने बताया कि पिता की मौत के बाद उनकी मां दोनों भाईयों को लेकर प्रतापगढ़ के जंगलों में चली गईं. वहीं, उनका पालन-पोषण किया लेकिन वहां जीविका का कोई माध्यम नहीं था. न ही स्वास्थ्य की कोई सुविधा. उन्होंने बताया कि ज्यादा समय प्रतापगढ़, रायबरेली, बाराबंकी और जौनपुर में अलग-अलग स्थानों पर बीता. इन लोगों ने सरपत के घनघोर जंगल में छिपकर समय बिताया.

कई दिन रहे जंगलों में भूखे : वे बताते हैं कि कई रात अपनी मां और दादी के साथ भूखे पेट दिन-रात गुजारा. कभी-कभी महुआ मिल जाने पर थोड़ी सी पेट की आग बुझ जाती थी.

प्रयागराज में दिया जाएगा सम्मान : प्रयागराज में राज्य महोत्सव आयोजित होगा जिसमें प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पांडेय के वंशज को सम्मानित किया जाएगा. यह कार्यक्रम 8 मई को केपी ग्राउंड में आयोजित होगा. सूफी गायक कैलाश खेर इस सम्मान समारोह में मौजूद रहेंगे. आयोजन में न्यायमूर्ति सुधीर नारायण अग्रवाल अगुवाई करेंगे.

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प्रयागराज : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा. जी हां, स्वतंत्रता आंदोलन के समय देश के लिए शहीद हुए अधिकतर लोगों के हिस्से इससे ज्यादा कुछ नहीं आया. कुछ ऐसी ही कहानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक शहीद मंगल पांडेय के परिवार की भी है. उनके पपौत्र भगवानदास पांडेय से मिलने के बाद पता चला कि आज उनका परिवार कितनी परेशानी से गुजर रहा है. परिवार को आज भी सरकार से मदद की आस है.

दास्तान सुनाते शहीद मंगल पांडेय के पपौत्र भगवानदास पांडेय

भगवानदास पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि किस तरह अपने पिता शहीद रमापति पांडेय को बीच बाजार अंग्रेजों के गोली मारने के बाद उनकी विधवा मां-दादी के साथ बच्चों को लेकर जंगलों में रात गुजारती रहीं. यह सारी बातें बताते-बताते उनके आंखों में आंसू भर आए. उनसे मिलने के बाद अब प्रयागराज उनका भव्य स्वागत करने की तैयारी में है. इसमें तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी सम्मानित किया जाएगा. आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जाएगा.

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गौरतलब है कि दिवाकर पांडेय के बेटे शहीद मंगल पांडेय सन् 1849 में 22 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल में नेटिव इनफैक्ट्री की 34वीं बटालियन में भर्ती किए गए. इसमें ज्यादा संख्या में ब्राह्मणों की भर्ती की जाती थी. जब उन्होंने नारा दिया 'मारो फिरंगी को तो अंग्रेजों ने इस डर से कि सिपाहियों में क्रांति का बिगुल बजा देंगे, उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल कर दिया. इसमें फांसी की सजा दी गई.

अंग्रेजों ने उनके पोते को भी मारी गोली : शहीद मंगल पांडेय के पोते रमापति पांडेय को बलिया के बाजार में अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया. जैसे ही इसकी सूचना रमापति की पत्नी को लगी, वह अपने दोनों बेटों के साथ जंगलों में जा छुपीं. इस दौरान उनको डर था कि अंग्रेज उनको भी नही छोड़ेंगे. भगवानदास पांडेय ने बताया कि पिता की मौत के बाद उनकी मां दोनों भाईयों को लेकर प्रतापगढ़ के जंगलों में चली गईं. वहीं, उनका पालन-पोषण किया लेकिन वहां जीविका का कोई माध्यम नहीं था. न ही स्वास्थ्य की कोई सुविधा. उन्होंने बताया कि ज्यादा समय प्रतापगढ़, रायबरेली, बाराबंकी और जौनपुर में अलग-अलग स्थानों पर बीता. इन लोगों ने सरपत के घनघोर जंगल में छिपकर समय बिताया.

कई दिन रहे जंगलों में भूखे : वे बताते हैं कि कई रात अपनी मां और दादी के साथ भूखे पेट दिन-रात गुजारा. कभी-कभी महुआ मिल जाने पर थोड़ी सी पेट की आग बुझ जाती थी.

प्रयागराज में दिया जाएगा सम्मान : प्रयागराज में राज्य महोत्सव आयोजित होगा जिसमें प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पांडेय के वंशज को सम्मानित किया जाएगा. यह कार्यक्रम 8 मई को केपी ग्राउंड में आयोजित होगा. सूफी गायक कैलाश खेर इस सम्मान समारोह में मौजूद रहेंगे. आयोजन में न्यायमूर्ति सुधीर नारायण अग्रवाल अगुवाई करेंगे.

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