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इस मंदिर में विराजमान हैं विराट वासुकी नाग, देखकर औरंगजेब भी हो गया था मूर्छित

प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज में प्राचीन नागवासुकी मंदिर स्थित है. इस पौराणिक मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. जहां दर्शन मात्र से ही कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही सभी कष्टों का निवारण भी हो जाता है. मान्यता है कि औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने गया था और तलवार चलाते ही डरकर हो वह बेहोश हो गया था.

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Published : Jan 13, 2021, 12:02 PM IST

प्रयागराज का नागवासुकी पौराणिक मंदिर
प्रयागराज का नागवासुकी पौराणिक मंदिर

प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर है. इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान हैं. इस मंदिर की महिमा का बखान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक की वह नागवासुकि का दर्शन न कर ले.

प्राचीन नागवासुकी मंदिर.

मंदिर में है शेषनाग और वासुकी नाग की मूर्तियां
नागवासुकी मंदिर में शेषनाग और वासुकी नाग की मूर्तियां हैं. कुंभ, अर्द्धकुंभ, माघ मेले और नागपंचमी के दिन लाखों तीर्थयात्री इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने आते हैं. इस मंदिर का वर्णन पुराणों में भी आता है. यह मंदिर अनोखा है, क्योंकि यहां के देवता नाग वासुकी हैं और इनकी पत्थर की मूर्ति मंदिर के बीच में स्थित है. नागवासुकी मंदिर की काफी पौराणिक मान्यताएं भी है. इस मंदिर के बारे में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यहां आकर पूजा करने से काल सर्प दोष हमेशा के लिए खत्म हो जाते है. गंगा तट पर स्थित प्राचीन नागवासुकी मंदिर सदियों से आस्था का केंद्र रहा है. श्रावण मास में तो शिवालयों की तरह नागवासुकी मंदिर में रुद्राभिषेक, महाभिषेक व काल सर्पदोष की शांति का अनुष्ठान चलता है.

वासुकी नाग की मूर्ती.
वासुकी नाग की मूर्ती.

परिक्रमा क्षेत्र में है मंदिर
प्रयाग में सात प्रमुख तीर्थो में नागवासुकी मंदिर शामिल है. नागवासुकी मंदिर प्रयाग के परिक्रमा क्षेत्र में है. यह मंदिर त्रिकोणीय व पंचकोसी परिक्रमा के अंतर्गत आता है. बिना नागवासुकी गए प्रयाग की कोई भी परिक्रमा पूर्ण नहीं होती.

क्यों बेहोश हो गया था औरंगजेब
मुगलकाल में जब हिंदू धर्म स्थलों को पूरी तरह से तहस-नहस किया जा रहा था. उस समय नागवासुकी मंदिर को भी तोड़ने का प्रयास किया गया था. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि औरंगजेब गंगा तट की ओर से मंदिर में पहुंचा और अपनी तलवार निकालकर जैसे ही नागवासुकी की मूर्ति पर वार किया, अचानक नागवासुकी का दिव्य स्वरूप प्रकट हो गया. उनके विकराल और भयंकर स्वरूप को देखकर औरंगजेब कांपने लगा और डर कर बेहोश हो गया.

प्रयाग कैसे आए नागवसुकि
पुराणों में भी नागवासुकी व इस मंदिर का विस्तृत उल्लेख मिलता है. कथा के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं व असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सा के तौर पर किया था. मंथन के चलते नागवासुकी के शरीर में काफी रगड़ हुई थी और जब मंथन समाप्त हुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी. जलन को दूर करने के लिए वासुकी मंद्राचल पर्वत चले गए, लेकिन उनके शरीर की जलन खत्म नहीं हुई. तब नागवासुकी ने भगवान विष्णु से अपनी पीड़ा के बारे में बताया और जलन खत्म करने का उपाय पूछा. भगवान विष्णु ने नागवासुकी को बताया कि वह प्रयाग चले जाएं वहां सरस्वती नदी का अमृत जल का पान करें और वही विश्राम करें, इससे उनकी सारी पीड़ा है खत्म हो जाएगी.

प्रयागराज का नागवासुकी पौराणिक मंदिर
प्रयागराज का नागवासुकी पौराणिक मंदिर .

दूध चढ़ाने से खुश होते हैं नागवासुकी भगवान
प्रतिवर्ष नाग पंचमी के दिन जहां विशाल मेले का आयोजन होता है और हजारों की संख्या में लोग आते है. उस दिन लोग भगवान नागवासुकी पर दूध चढ़ाने और विधि विधान से पूजन करने के साथ दर्शन करते हैं तो उनके सभी पापों का नाश होता है और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है.

हवन पूजन
मन्दिर प्रांगण में आपको अक्सर हवन करते लोग दिख जाए गए. क्योंकि जिनके भी कुंडली में काल सर्प दोष होते हैं, वो यहां पर आकर काल सर्प दोस हवन करा के भी सदा के लिए काल सर्प दोष से मुक्ति पा जाते हैं.

प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज के संगम तट से उत्तर दिशा की ओर दारागंज के उत्तरी कोने पर अति प्राचीन नागवासुकी मंदिर है. इस मंदिर में नागों के राजा वासुकी नाग विराजमान हैं. इस मंदिर की महिमा का बखान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रयागराज आने वाले हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक की वह नागवासुकि का दर्शन न कर ले.

प्राचीन नागवासुकी मंदिर.

मंदिर में है शेषनाग और वासुकी नाग की मूर्तियां
नागवासुकी मंदिर में शेषनाग और वासुकी नाग की मूर्तियां हैं. कुंभ, अर्द्धकुंभ, माघ मेले और नागपंचमी के दिन लाखों तीर्थयात्री इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने आते हैं. इस मंदिर का वर्णन पुराणों में भी आता है. यह मंदिर अनोखा है, क्योंकि यहां के देवता नाग वासुकी हैं और इनकी पत्थर की मूर्ति मंदिर के बीच में स्थित है. नागवासुकी मंदिर की काफी पौराणिक मान्यताएं भी है. इस मंदिर के बारे में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यहां आकर पूजा करने से काल सर्प दोष हमेशा के लिए खत्म हो जाते है. गंगा तट पर स्थित प्राचीन नागवासुकी मंदिर सदियों से आस्था का केंद्र रहा है. श्रावण मास में तो शिवालयों की तरह नागवासुकी मंदिर में रुद्राभिषेक, महाभिषेक व काल सर्पदोष की शांति का अनुष्ठान चलता है.

वासुकी नाग की मूर्ती.
वासुकी नाग की मूर्ती.

परिक्रमा क्षेत्र में है मंदिर
प्रयाग में सात प्रमुख तीर्थो में नागवासुकी मंदिर शामिल है. नागवासुकी मंदिर प्रयाग के परिक्रमा क्षेत्र में है. यह मंदिर त्रिकोणीय व पंचकोसी परिक्रमा के अंतर्गत आता है. बिना नागवासुकी गए प्रयाग की कोई भी परिक्रमा पूर्ण नहीं होती.

क्यों बेहोश हो गया था औरंगजेब
मुगलकाल में जब हिंदू धर्म स्थलों को पूरी तरह से तहस-नहस किया जा रहा था. उस समय नागवासुकी मंदिर को भी तोड़ने का प्रयास किया गया था. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि औरंगजेब गंगा तट की ओर से मंदिर में पहुंचा और अपनी तलवार निकालकर जैसे ही नागवासुकी की मूर्ति पर वार किया, अचानक नागवासुकी का दिव्य स्वरूप प्रकट हो गया. उनके विकराल और भयंकर स्वरूप को देखकर औरंगजेब कांपने लगा और डर कर बेहोश हो गया.

प्रयाग कैसे आए नागवसुकि
पुराणों में भी नागवासुकी व इस मंदिर का विस्तृत उल्लेख मिलता है. कथा के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं व असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सा के तौर पर किया था. मंथन के चलते नागवासुकी के शरीर में काफी रगड़ हुई थी और जब मंथन समाप्त हुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी. जलन को दूर करने के लिए वासुकी मंद्राचल पर्वत चले गए, लेकिन उनके शरीर की जलन खत्म नहीं हुई. तब नागवासुकी ने भगवान विष्णु से अपनी पीड़ा के बारे में बताया और जलन खत्म करने का उपाय पूछा. भगवान विष्णु ने नागवासुकी को बताया कि वह प्रयाग चले जाएं वहां सरस्वती नदी का अमृत जल का पान करें और वही विश्राम करें, इससे उनकी सारी पीड़ा है खत्म हो जाएगी.

प्रयागराज का नागवासुकी पौराणिक मंदिर
प्रयागराज का नागवासुकी पौराणिक मंदिर .

दूध चढ़ाने से खुश होते हैं नागवासुकी भगवान
प्रतिवर्ष नाग पंचमी के दिन जहां विशाल मेले का आयोजन होता है और हजारों की संख्या में लोग आते है. उस दिन लोग भगवान नागवासुकी पर दूध चढ़ाने और विधि विधान से पूजन करने के साथ दर्शन करते हैं तो उनके सभी पापों का नाश होता है और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है.

हवन पूजन
मन्दिर प्रांगण में आपको अक्सर हवन करते लोग दिख जाए गए. क्योंकि जिनके भी कुंडली में काल सर्प दोष होते हैं, वो यहां पर आकर काल सर्प दोस हवन करा के भी सदा के लिए काल सर्प दोष से मुक्ति पा जाते हैं.

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