प्रयागराज : संगम नगरी प्रयागराज में एक ऐसी प्राचीन धरोहर है, जो आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों का मुख्य केंद्र रहा. यहां शहीद चंद्रशेखर आजाद भी आते थे और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बैठक किया करते थे. 'ब्रिटिश' शासन के दौरान स्थापित भारती भवन पुस्तकालय का भारत की आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा है. इस पुस्तकालय को 15 दिसंबर 1889 को स्थापित किया गया था, जो प्रयागराज के चौक क्षेत्र के लोकनाथ पर स्थित है. ज्ञान और शिक्षा को जन-जन के करीब लाने के उद्देश्य से भारत में ब्रिटिश शासन के दिनों के दौरान स्थापित पुस्तकालय ने एक छत के नीचे हिंदी, संस्कृत और उर्दू पुस्तकों का एक अनूठा संग्रह प्रदान किया.
स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव
शुरुआती दिनों में पुस्तकालय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था, क्योंकि क्रांतिकारी अक्सर यहां मिलते थे. भारती भवन लाइब्रेरी में पुरानी और दुर्लभ पुस्तकों के साथ ही मूल्यवान पांडुलिपियों का एक अच्छा खजाना है. यहां उर्दू में लिखी प्राचीन रामायण और श्रीमद्भागवत गीता मौजूद है, जिन्होंने कई पीढ़ियों के युवा पुरुषों और महिलाओं को प्रेरित किया है. यहां दुर्लभ पत्रों और पांडुलिपियों का संरक्षण है. मौजूदा समय में इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए ठोस प्रयास करने की जरूरत है.
इन महापुरुषों ने पुस्तकालय को किया था स्थापित
भारती विद्या भवन के निदेशक डॉ. रामनरेश त्रिपाठी ने पुस्तकालय के गौरवशाली इतिहास को रेखांकित करते हुए इसे देश की अनमोल धरोहर बताया. उन्होंने कहा कि महामना मदन मोहन मालवीय, बालकृष्ण भट्ट, राजर्षि टंडन और लाला ब्रजमोहन लाल भल्ला जैसी विभूतियों के प्रयास से इसकी स्थापना हुई. भारती भवन पुस्तकालय उत्तर प्रदेश का सबसे पुराना पुस्तकालय है. यह आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ हुआ करता था. चंद्रशेखर आजाद भी यहां आते थे और आजादी के लड़ाई की रणनीति बनाते थे.
131 वर्ष पुराना है पुस्तकालय
भारती भवन पुस्तकालय 131 वर्ष पुराना है. इस धरोहर को संरक्षित करने के लिए ठोस प्रयास करने की जरूरत है. उल्लेखनीय है कि प्रयागराज में कई विभूतियों से जुड़े स्थल हैं. जिनका संरक्षण किया जाना बेहद जरूरी है. हिंदू विश्वविद्यालय अमेरिका में प्रोफेसर रह चुके पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने बताया कि आज ये पुस्तकालय आर्थिक विपन्नता को झेल रहा है. यहां महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियां रखी हैं, जिनकी माइक्रो फिल्मिंग नहीं कराई गई तो ये खराब हो सकती हैं.
लाइब्रेरी में कई सौ साल पुरानी पांडुलिपियां मौजूद
भारती भवन पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों को भारतीय राष्ट्रीय न्यास कला और सांस्कृतिक विरासत के समन्वय में संरक्षित किया जाएगा. सबसे पुरानी लाइब्रेरी में से कई पांडुलिपियां कई सौ साल पुरानी हैं और जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं और उनके संरक्षण के लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
भारती भवन पुस्तकालय के अध्यक्ष स्वतंत्र पांडेय ने बताया कि पुस्तकालय में 1 हजार 145 पांडुलिपियों का समृद्ध संग्रह है, जिनमें से कई संस्कृत और ब्राह्मी भाषाओं में हैं. यहां सन 1780 का एक हाथ से लिखा हस्त लिखित पंचांग भी मौजूद है. स्कंदपुराण की एक पांडुलिपि लगभग 800 वर्ष पुरानी है. 1 हजार 145 पांडुलिपियों में से 250 पूरी हो चुकी हैं, जबकि अन्य के पृष्ठ गायब या नष्ट हो गए हैं. 2013 तक पुस्तकालय में केवल 15 पांडुलिपियां हैं. पुस्तकालय में एक खोज के दौरान एक विशाल संग्रह इमारत के कोनों में लावारिस पड़ा मिला था, जिसके बाद पांडुलिपियों को एकत्र किया गया और ध्यान से रखा गया. हालांकि, बजट की कमी के कारण वे अभी भी खराब स्थिति में हैं और ध्यान देने की जरूरत है.
शताब्दी वर्ष पर जारी किया गया डाक टिकट
पुस्तकालय के शताब्दी वर्ष पर डाक टिकट भी जारी हो चुका है. पुस्तकालय में हिंदी, संस्कृत और उर्दू तीनों का अटूट मेल है.
लाइब्रेरी में हैं कई सौ वर्ष पुरानी उर्दू में लिखी रामायण
भारती भवन पुस्तकालय में ब्रिटिश शासन काल में स्वतंत्रता आंदोलन के समय की पत्र-पत्रिकाएं यहां मौजूद है. इनमें 'द लीडर' पत्रिका, भारत पत्रिका, मर्यादा पत्रिका और सरस्वती पत्रिका के साथ ही श्रीमद्भागवत गीता और कई सौ वर्ष पुरानी उर्दू में लिखी रामायण भी शामिल हैं. इन सभी को आज संरक्षण की जरूरत है, लेकिन यह पुस्तकालय अब गुमनाम होता नजर आ रहा है.
भारती भवन पुस्तकालय में लगभग 61000 बहुत ही दुर्लभ प्राचीन पत्र-पत्रिकाएं, संस्कृत साहित्य और लगभग सारे कवियों की लिखी पुस्तक मौजूद हैं. इस पुस्तकालय में 18वीं शताब्दी से लेकर अब तक के पंचांग भी मौजूद हैं.
किताबों को सुरक्षित रखने का कोई साधन नहीं
हिंदू विश्वविद्यालय अमेरिका में प्रोफेसर रह चुके और विद्या भवन के निदेशक पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने बताया कि यहां पर रखे प्राचीन पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं पंचांग बहुत पुराने हो गए हैं. इसको सुरक्षित रखने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं है. वहीं पुस्तकालय के अध्यक्ष स्वतंत्र पांडेय का कहना है कि यहां पर कोई डिजिटलाइजेशन मशीन नहीं है. सभी पुरानी किताबें, पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन अगर सरकार करवाती है तो प्राचीन धरोहरें वर्षो तक सुरक्षित रह सकती हैं.