प्रयागराज: देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने की जंग में तमाम लोग शामिल हुए थे. आजादी की लड़ाई में शामिल होने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से कुछ ही लोग अब इस दुनिया में बचे है. उन्हीं में से एक प्रयागराज के कमलाकांत तिवारी हैं. जो अब 103 साल की उम्र पार कर चुके हैं. 1919 में जन्में कमलाकांत का शरीर भले ही आज उनका साथ कम दे रहा है. लेकिन, आजादी की लड़ाई और उससे जुड़े आंदोलनों की चर्चा आज भी वो पूरे जोश कर साथ करते हैं. हालांकि, उम्र के इस पड़ाव में अब उनकी स्मरण शक्ति कमजोर हो गई है.
आजादी की 75वीं वर्षगांठ देखेंगे: आज देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. इस बात की जानकारी कमलाकांत को भी है. इसपर उनका कहना है कि ये भगवान की कृपा ही है कि इस दिन को देखने के लिए अभी जिंदा बचे हुए हैं. ये भगवान का आशीर्वाद है जो में आजादी की 75वीं वर्षगांठ देख पा रहा हूं.
ट्रेन रोकने के आरोप में भेजे गए थे जेल: कमलाकांत तिवारी जब 13 साल के थे उसी समय से वो स्वतंत्रता सेनानियों के साथ रहने लगे थे. उसी दौरान 1932 में मेजा के दिघिया इलाके में दिल्ली से हावड़ा जाने वाले ट्रैक को तोड़ने के साथ ट्रेन रोकने और उसे जलाने के प्रयास में कमालाकांत अपने साथियों के साथ पकड़े गए थे. ट्रैक तोड़ने के दौरान ही किसी की मुखबिरी की वजह से वहां पर अंग्रेज सैनिक पहुँच गए और सभी को खदेड़ लिया. उसी वक्त पहली और आखिरी बार कमलाकांत अंग्रेजों के चंगुल में फंसे थे. उन्हें कोड़े मारने के साथ ही 6 महीने जेल और 80 रुपये जुर्माने की सजा सुनायी गयी थी. 6 महीने की सजा काटने के बाद कमलाकांत ने देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने का बीड़ा उठा लिया था. इसके बाद वो घर से बाहर ही रहते थे. 1947 में आजादी मिलने के बाद ही वो सुकून से अपने घर पर रहने पहुंचे.
अंग्रेज पिटाई करके अधमरा कर कांटे गड़ाते थे शरीर में: कमलाकांत ने बताया कि उस वक्त अंग्रेज जब क्रांतिकारियों को पकड़ते थे तो तब तक बेरहमी से पिटाई करते थे जब तक कि लोग बेहोश न हो जाएं. यही नहीं होश में आने पर घाव पर नमक मिर्च तक लगाकर प्रताड़ित करते थे. इसके अलावा शरीर में कांटे और लकड़ी का फांस लगाकर दर्द देते थे. अंग्रेजों ने जब कमला कांत को पकड़ा था तो उन्हें भी बेरहमी से पीटा गया था.
उस दौरान अंग्रेजों ने उनसे कहा कि छोड़ दो आंदोलन कारियों का साथ और भूल जाओ आजादी को. इसके बाद कमलाकांत ने कहा कि जान चली जाए तो भी आजादी की राह नहीं छोड़ेंगे. इसके बाद उन्हें तब तक पीटा गया था जब तक वो बेसुध नहीं हुए थे और इसी बात से नाराज होकर अंग्रेज सैनिकों ने छोटी उम्र होने के बावजूद कमलाकांत के ऊपर जुल्म ढाया और जेल भेज दिया था.
मेजा से कोतवाली तक निकाला था जुलूस: कमलाकांत ने बताया कि 15 अगस्त 1947 का दिन उनके जीवन का सबसे अमूल्य दिन था. उनका कहना है कि आज तक उनकी जिंदगी का सबसे ज्यादा खुशियों वाला दिन 15 अगस्त 1947 का दिन था. क्योंकि उस दिन उनका मुल्क उन्हें अंग्रेजो से उन्हें वापस मिल गया था. आजादी के दिन तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ मिलकर कमला कांत तिवारी ने मेजा से लेकर शहर कोतवाली तक जुलूस निकाला था.
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इस दौरान रास्ते भर उनके जुलूस में लोग जुड़ते गए और कोतवाली से आनंद भवन तक जश्न का माहौल दिख रहा था. हर घर परिवार में खुशियां मनायी जा रही थी क्योंकि लोगों को अंग्रेजों के जुल्म व अत्याचार से मुक्ति मिल गई थी. उनका कहना है कि उस दिन से बड़ा दिन उनके और इस देश के जीवन में दोबारा नहीं आएगा.
उन्होंने कहाकि 103 से अधिक उम्र के कमलाकांत तिवारी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने की वजह से वो देवतुल्य मानते है. राष्ट्रीय पर्वों के दिन उनको माला पहनाकर उनका आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं. कमलाकांत तिवारी को 1972 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था. इसके साथ ही 1974 में हेमवती नंदन बहुगुणा ने उन्हें चांदी का प्रतीक चिन्ह भेंट किया था.
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