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प्रयागराज: शेष नाग का विश्राम स्थल है नाग वाशुकी मंदिर, यहां पूरी होती है भक्तों की मन्नतें

प्रयागराज में नाग पंचमी के अवसर पर श्रद्धालुओं ने नाग वाशुकी मंदिर में नागों को दूध पिलाया और पूजा अर्चना की. मान्यता है कि प्रयागराज में जो भी आता है वो अगर पूरे प्रयाग का दर्शन के बाद अगर वाशुकी नहीं आया उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है.

नाग वाशुकी मंदिर.
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Published : Aug 6, 2019, 3:10 PM IST

प्रयागराज: नाग पंचमी के अवसर पर सोमवार को प्रयागराज में श्रद्धालुओं ने नागों को दूध पिलाया और पूजा अर्चना की. वहीं दारगंज स्थित नाग वाशुकी मंदिर में भी भक्तों की काफी भीड़ देखी गई. मान्यता है कि प्रयागराज में जो भी आता है वो अगर पूरे प्रयाग का दर्शन के बाद वाशुकी नहीं आया उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है.

शेष नाग का विश्राम स्थल नाग वाशुकी मंदिर.
पढ़ें- नागपंचमी के पहले लोगों ने की संगम तट की सफाईनागपंचमी पर लगती है श्रद्धालुओं की भीड़-दारगंज स्थित नाग वाशुकी मंदिर बहुत प्राचीन है. इस मंदिर में हर साल नागपंचमी के दौरान बड़ी संख्या में भक्त और पर्यटक सांपों के राजा नाग वाशुकी के दर्शन के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के गले मे जो नाग लिपटे हैं, उन्होंने समुद्र मंथन के बाद आराम इस वाशुकी स्थल पर किया था तब से यहां वो विराजमान हो गये. क्या है मान्यता-पवित्र नाग वाशुकी का नाम पुराणों में भी पाया जाता है. जैसा कि मत्स्य पुराण में वणित है. मंदिर प्रतिष्ठान से वाशुकी तालाब तक फैला है. लोग अपनी अपनी मुराद लेकर यहां आते है और उनकी मुराद भी पूरी होती है. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में आने और पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं. श्रद्धालु सरिता दुबे ने बताया कि यहां बहुत अच्छा लगता है हम लोग यहां वर्षों से आ रहे हैं. सुबह से यहां भक्तों की लंबी कतारें लगी हैं, लेकिन दर्शन फिर भी अच्छे से हो गये. यहां जो दर्शन करने आता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है.

ये भगवान वाशुकी हैं, जो भगवान शिव के गले में लिपटे हैं. समुद्र मंथन के दौरान इन्हीं को रस्सी बनाया गया था. जब समुद्र मंथन समाप्त हो गया तो वाशुकी भगवान ने यहां आकर विश्राम किया था. यहां नौ नागों की योनि है.
- रवि त्रिपाठी, पुजारी

प्रयागराज: नाग पंचमी के अवसर पर सोमवार को प्रयागराज में श्रद्धालुओं ने नागों को दूध पिलाया और पूजा अर्चना की. वहीं दारगंज स्थित नाग वाशुकी मंदिर में भी भक्तों की काफी भीड़ देखी गई. मान्यता है कि प्रयागराज में जो भी आता है वो अगर पूरे प्रयाग का दर्शन के बाद वाशुकी नहीं आया उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है.

शेष नाग का विश्राम स्थल नाग वाशुकी मंदिर.
पढ़ें- नागपंचमी के पहले लोगों ने की संगम तट की सफाईनागपंचमी पर लगती है श्रद्धालुओं की भीड़-दारगंज स्थित नाग वाशुकी मंदिर बहुत प्राचीन है. इस मंदिर में हर साल नागपंचमी के दौरान बड़ी संख्या में भक्त और पर्यटक सांपों के राजा नाग वाशुकी के दर्शन के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के गले मे जो नाग लिपटे हैं, उन्होंने समुद्र मंथन के बाद आराम इस वाशुकी स्थल पर किया था तब से यहां वो विराजमान हो गये. क्या है मान्यता-पवित्र नाग वाशुकी का नाम पुराणों में भी पाया जाता है. जैसा कि मत्स्य पुराण में वणित है. मंदिर प्रतिष्ठान से वाशुकी तालाब तक फैला है. लोग अपनी अपनी मुराद लेकर यहां आते है और उनकी मुराद भी पूरी होती है. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में आने और पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं. श्रद्धालु सरिता दुबे ने बताया कि यहां बहुत अच्छा लगता है हम लोग यहां वर्षों से आ रहे हैं. सुबह से यहां भक्तों की लंबी कतारें लगी हैं, लेकिन दर्शन फिर भी अच्छे से हो गये. यहां जो दर्शन करने आता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है.

ये भगवान वाशुकी हैं, जो भगवान शिव के गले में लिपटे हैं. समुद्र मंथन के दौरान इन्हीं को रस्सी बनाया गया था. जब समुद्र मंथन समाप्त हो गया तो वाशुकी भगवान ने यहां आकर विश्राम किया था. यहां नौ नागों की योनि है.
- रवि त्रिपाठी, पुजारी

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समुद्र मंथन के बाद शेष नाग यही किया था बिश्राम।

नागपंचमी के अवशर पर आज प्रयागराज में भी श्रद्धालुवों ने नागों को दूध पिलाया और पूजा अर्चना की। वही दारगंज स्थित नागवाशुकी मंदिर में भी भक्तो की काफी भीड़ देखी गई। मान्यता है कि प्रयागराज में जो भी आता है वो अगर पूरे प्रयाग का दर्शन के बाद अगर वाशुकी नही आया उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है


Body:साँपो के राजा नागवाशुकी को समर्पित इस मंदिर में हर साल नागपंचमी के दौरान भक्तों और पर्यटकों की एक बड़ी संख्या होती है । ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के गले मे जो नाग लिपटे है वो नाग समुन्द्र मंथन के बाद आराम इस वाशुकी स्थल पर किया था। तब से यहा वो बिराजमान हो गये पवित्र नाग वाशुकी का नाम पुराणों में भी पाया जाता है।जैसा कि मत्स्य पुराण में वणित है।मंदिर प्रतिष्ठान से वाशुकी तलाब तक फैला है।लोग अपनी अपनी मुराद लेकर यहा आते है और उनकी मुराद भी पूरी होती है।दारगंज स्थित यह मंदिर बहुत प्राचीन है।नागपंचमी के अवशर पर आज प्रयागराज में भी श्रद्धालुवों ने नागों को दूध पिलाया और पूजा अर्चना की। वही दारगंज स्थित नागवाशुकी मंदिर में भी भक्तो की काफी भीड़ देखी गई। मान्यता है कि प्रयागराज में जो भी आता है वो अगर पूरे प्रयाग का दर्शन के बाद अगर वाशुकी नही आया उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है

बाइट ---- पुजारी
बाइट ---- श्रद्धालु


Conclusion:नाग पंचमी के अवशर पर चाहे पूरे भारत मे पूजा अर्चना हुई हो लेकिन इस मंदिर का माने ही अलग है और ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में आने और पूजा अर्चना करने से भगवान शिव भी प्रशन्न होते है।
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