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यहां दशहरे पर भगवान राम की नहीं, बल्कि होती है रावण की पूजा

एक ओर पूरा देश दशहरे के दिन भगवान राम की पूजा-अर्चना करता है तो उसी दिन संगम नगरी प्रयागराज में दशहरे की शुरुआत रावण की पूजा व शोभायात्रा निकालने के बाद होती है. यह परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है. लेकिन पिछले दो सालों से कोरोना संक्रमण के कारण रावण की शोभायात्रा नहीं निकल सकी थी और इस बार भी निकलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है.

यहां दशहरे पर भगवान राम की नहीं, बल्कि होती है रावण की पूजा
यहां दशहरे पर भगवान राम की नहीं, बल्कि होती है रावण की पूजा
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Published : Oct 3, 2021, 2:32 PM IST

प्रयागराज: प्रयागराज की ऐतिहासिक रामलीला (Historical Ramlila of Prayagraj) पर इस बार भी कोरोना का असर दिखा. महामारी के कारण कटरा रामलीला कमेटी की ओर से रावण की शोभायात्रा इस बार भी नहीं निकाली गई. पुरानी परंपरा को निभाते हुए कटरा रामलीला कमेटी की ओर से पितृपक्ष एकादशी को महर्षि भारद्वाज के आश्रम में रावण की पूजा की गई. प्रयागराज कटरा रामलीला कमेटी (Prayagraj Katra Ramlila Committee) देश की एकलौती ऐसी कमेटी है, जहां भगवान राम की पूजा की बजाए रावण की पूजा करके दशहरे की शुरुआत (Beginning of Dussehra by worshiping Ravana) की जाती है.

यहां दशहरे पर भगवान राम की नहीं, बल्कि होती है रावण की पूजा

देश भर में दशहरे पर भले ही जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाने की परंपरा हो. लेकिन प्रयागराज के संगम नगरी स्थित कटरा रामलीला के दशहरे उत्सव की शुरुआत से पहले तीनों लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और भव्य शोभायात्रा के साथ की जाती है. लेकिन इस बार भी पिछले वर्ष के भांति ही इस वर्ष भी सालों पुरानी रावण के शोभायात्रा की परंपरा कोरोना महामारी संक्रमण के चलते टूट गई है. रावण की मंदिर में ही पूजा-अर्चना की गई. लेकिन शोभायात्रा निकाली नहीं गई.

इसे भी पढ़ें - मध्य प्रदेश के कॉलेजों में अब हिंदू धर्म की पढ़ाई, इसी सत्र से नया पाठ्यक्रम होगा लागू

पितृपक्ष एकादशी को महर्षि भारद्वाज के आश्रम में रावण की पूजा की गई. प्रयागराज कटरा रामलीला कमेटी देश की एकलौती ऐसी कमेटी है, जो भगवान राम की पूजा की बजाए रावण की पूजा करके दशहरे की शुरुआत करती है. ऋषि भारद्वाज मुनि ने ब्राह्मण की हत्या की वजह से भगवान रामचन्द्र जी को लंका विजय का आशीर्वाद देने से मना कर दिए था और उसके बाद भगवान राम ने ब्राह्मण हत्या से मुक्ति के लिए उपाय पूछे तब ऋषि भारद्वाज ने एक साथ कोटि बालू से शिवलिंग निर्माण कर ब्रह्म हत्या के पाप का प्राश्चित का विधान सुझाए और इसी वजह से लंका नरेश रावण को विद्वान ब्राह्मण मानने की वजह से रावण की पूजा करते हैं.

वहीं, कटरा रामलीला कमेटी के महामंत्री गोपाल बाबू जयसवाल कहते हैं कि लाखों रुपए खर्च करके बड़ी धूमधाम से निकलने वाली शोभायात्रा कोरोना महामारी के चलते पिछले वर्ष की भांति इस बार भी नहीं निकाली गई. साथ ही ये भी बताया की पूरे भारत वर्ष में प्रयागराज के कटरा रामलीला कमेटी रावण की भव्य सवारी और उनके पूरे कुटुंब परिवार को निकालती है.

लेकिन इस बार पूर्णता पूरे प्रदेश से कोरोना महामारी गायब हो चुका है. बड़ी-बड़ी रैलियां हो रही है. तामाम सभाएं हो रही है. लेकिन एक रावण की चौकी के लिए हम लोगों ने बहुत प्रयास किया. साथ ही ये भी कहा कि प्रदेश के मुखिया योगीजी केवल एक चौकी निकलने आज्ञा प्रदान करें, ताकि हमारी परम्परा बनी रहे.

खैर, एक ओर देश में रावण वध के रूप में पुतले दहन की परंपरा है तो वहीं इसके ठीक विपरीत आज भी प्रयागराज के कटरा स्थित भारद्वाज आश्रम के लोग रावण की विद्वता की पूजा करते हैं और दशहरे से पहले विद्वान ब्राह्मण लंकापति रावण की पूजा-अर्चना कर उनकी बड़ी धूमधाम से शोभायात्रा निकलते हैं.

प्रयागराज: प्रयागराज की ऐतिहासिक रामलीला (Historical Ramlila of Prayagraj) पर इस बार भी कोरोना का असर दिखा. महामारी के कारण कटरा रामलीला कमेटी की ओर से रावण की शोभायात्रा इस बार भी नहीं निकाली गई. पुरानी परंपरा को निभाते हुए कटरा रामलीला कमेटी की ओर से पितृपक्ष एकादशी को महर्षि भारद्वाज के आश्रम में रावण की पूजा की गई. प्रयागराज कटरा रामलीला कमेटी (Prayagraj Katra Ramlila Committee) देश की एकलौती ऐसी कमेटी है, जहां भगवान राम की पूजा की बजाए रावण की पूजा करके दशहरे की शुरुआत (Beginning of Dussehra by worshiping Ravana) की जाती है.

यहां दशहरे पर भगवान राम की नहीं, बल्कि होती है रावण की पूजा

देश भर में दशहरे पर भले ही जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाने की परंपरा हो. लेकिन प्रयागराज के संगम नगरी स्थित कटरा रामलीला के दशहरे उत्सव की शुरुआत से पहले तीनों लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और भव्य शोभायात्रा के साथ की जाती है. लेकिन इस बार भी पिछले वर्ष के भांति ही इस वर्ष भी सालों पुरानी रावण के शोभायात्रा की परंपरा कोरोना महामारी संक्रमण के चलते टूट गई है. रावण की मंदिर में ही पूजा-अर्चना की गई. लेकिन शोभायात्रा निकाली नहीं गई.

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पितृपक्ष एकादशी को महर्षि भारद्वाज के आश्रम में रावण की पूजा की गई. प्रयागराज कटरा रामलीला कमेटी देश की एकलौती ऐसी कमेटी है, जो भगवान राम की पूजा की बजाए रावण की पूजा करके दशहरे की शुरुआत करती है. ऋषि भारद्वाज मुनि ने ब्राह्मण की हत्या की वजह से भगवान रामचन्द्र जी को लंका विजय का आशीर्वाद देने से मना कर दिए था और उसके बाद भगवान राम ने ब्राह्मण हत्या से मुक्ति के लिए उपाय पूछे तब ऋषि भारद्वाज ने एक साथ कोटि बालू से शिवलिंग निर्माण कर ब्रह्म हत्या के पाप का प्राश्चित का विधान सुझाए और इसी वजह से लंका नरेश रावण को विद्वान ब्राह्मण मानने की वजह से रावण की पूजा करते हैं.

वहीं, कटरा रामलीला कमेटी के महामंत्री गोपाल बाबू जयसवाल कहते हैं कि लाखों रुपए खर्च करके बड़ी धूमधाम से निकलने वाली शोभायात्रा कोरोना महामारी के चलते पिछले वर्ष की भांति इस बार भी नहीं निकाली गई. साथ ही ये भी बताया की पूरे भारत वर्ष में प्रयागराज के कटरा रामलीला कमेटी रावण की भव्य सवारी और उनके पूरे कुटुंब परिवार को निकालती है.

लेकिन इस बार पूर्णता पूरे प्रदेश से कोरोना महामारी गायब हो चुका है. बड़ी-बड़ी रैलियां हो रही है. तामाम सभाएं हो रही है. लेकिन एक रावण की चौकी के लिए हम लोगों ने बहुत प्रयास किया. साथ ही ये भी कहा कि प्रदेश के मुखिया योगीजी केवल एक चौकी निकलने आज्ञा प्रदान करें, ताकि हमारी परम्परा बनी रहे.

खैर, एक ओर देश में रावण वध के रूप में पुतले दहन की परंपरा है तो वहीं इसके ठीक विपरीत आज भी प्रयागराज के कटरा स्थित भारद्वाज आश्रम के लोग रावण की विद्वता की पूजा करते हैं और दशहरे से पहले विद्वान ब्राह्मण लंकापति रावण की पूजा-अर्चना कर उनकी बड़ी धूमधाम से शोभायात्रा निकलते हैं.

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