प्रयागराज: जिन जहरीले सांपो को देखकर बड़ों-बड़ों की हालत खराब हो जाती है, उन्हीं के साथ कापारी गांव के राज, मंगलपति और शनि जैसे कई मासूम बच्चे बेखौफ खेलते हैं. प्रयागराज जनपद के शंकरगढ़ इलाके के गांव कपारी, बेमरा, लोहगरा, आदि गांवो में सपेरों के कुनबे पॉलीथीन और लकड़ी के सहारे बनाई गई झुग्गी-झोपडि़यों में बसर कर रहे हैं. मुफलिसी की जिंदगी गुजार रहे अनुसूचित जाति में गिने जाने वाली ‘नाथ संप्रदाय' की इस कौम को सरकार की किसी भी योजना का अब तक कोई लाभ नसीब नहीं हुआ है.
जहरीले सांप पकड़ना और उन्हें लोगों के बीच दिखाना इनका मुख्य पेशा है. सांपों का प्रदर्शन ही सपेरों के खाने-कमाने का एकमात्र जरिया है. यहां के बच्चों के लिए स्कूल का मुंह देखना तो दूर की बात है, उन्हें खेलने के लिए खिलौना तक नसीब नहीं है. ये बच्चे कोबरा नाग, विशखोपर जैसे जहरीले जीव-जन्तुओं से उनके बच्चे बेखौफ होकर खेलते हैं.
बचपन से ही सांप पकड़ने में है माहिर
कपारी गांव के रहने वाले राज उम्र 5 वर्ष, मंगलपति उम्र 4 वर्ष और शनि उम्र 4 वर्ष जैसे इनके कुनबे में कई बदकिस्मत मासूम बच्चे हैं, जो विरासत में जहरीले सांप पकड़ने के गुर सीखने के लिए मजबूर हैं. सपेरे अनिल नाथ को बचपन से ही बैग और किताबों की बजाय ‘बीन और पिटारी' थमा कर ‘ककहरा' की जगह सांप पकड़ना और बीन बजाने का गुण मां-बाप ने सिखाया. अब वह दूर-दूर तक इस हुनर का प्रदर्शन कर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करते हैं. सपेरा अनिल नाथ बताता है कि सांप और विशखापर जैसे जहरीले जीव-जन्तुओं से अब उसे जरा भी डर नहीं लगता है. उन्होंने बताया कि यह हुनर खतरनाक तो है पर इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है. वह पढ़ना चाहता था, लेकिन पिता की बीमारी ने उसे इस पेशे के लिए मजबूर कर दिया.
जोखिम भरा है पेशा
आस-पास के 7 गांवों के सपेरे समाज के लोगों को जागृत करने का प्रयास कर रहे हैं. सांप पालना या पकड़ना इनका जोखिम भरा पेशा है. अब तक सांप के काटने से कई सपेरों की मौत हो चुकी है. कोई भी सरकारी योजना सपेरा समाज के पास पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. राशन कार्ड के अलावा कुछ भी इन्हें नहीं मिला है.