प्रयागराजः जिले के फाफामऊ घाट पर रेती में दफनाये गए शवों को गंगा की कटान के चपेट में आने से पहले उन्हें बाहर निकालकर उनका अंतिम संस्कार करने का सिलसिला लगातार जारी है. नगर निगम ने कटान की चपेट में आने से वाले 16 शवों का शुक्रवार की सुबह से दोपहर तक घाट पर अंतिम संस्कार किया. इस तरह से अभी तक कुल 108 शवों का अंतिम संस्कार किया गया है.
नगर निगम की तरफ से जोनल अधिकारी नीरज कुमार सिंह को कब्र से शवों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है. जिसके बाद से निगम के इस अफसर ने शवों का विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार करवाने का बीड़ा उठा लिया. नीरज खुद अपने हाथों से इन शवों को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं. मुखाग्नि देने से पहले वो खुद मंत्रोच्चार करके चिताओं पर चंदन की लकड़ी, घी और पूजन सामग्री चढ़ाते हैं. जिसके बाद चिता की परिक्रमा करके मंत्र पढ़ते हुए शवों को मुखाग्नि देते हैं.
जोनल अधिकारी 120 शवों को दे चुके हैं मुखाग्नि
नगर निगम के जोनल ऑफिसर नीरज कुमार सिंह कोरोना काल से लेकर अब तक 120 शवों को मुखाग्नि दे चुके हैं. जिसमें से 108 ऐसे शव हैं जो गंगा की कटान के चपेट में आ गए थे, इन शवों का विधि-विधान के साथ मंत्रोच्चार करके अंतिम संस्कार किया गया.इन सभी शवों को नगर निगम के जोनल अधिकारी ने मंत्रोच्चार करके उनको सनातन परंपरा के अनुसार मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया है. घाट पर जिन शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है उसमें कई शव पूरी तरह से प्लास्टिक में पैक थे. हालांकि जोनल अफसर ने इस बात को नहीं माना कि इस घाट पर कोरोना से मरने वालों के शव भी दफन किये गए हैं. लेकिन उन्होंने ये जरूर स्वीकार किया कि कुछ शव प्लास्टिक में पैक मिले हैं.
मानवता के लिए विधि-विधान से करते हैं शवों का अंतिम संस्कार
जोनल अधिकारी नीरज कुमार सिंह का कहना है लावारिश शवों का अंतिम संस्कार वह मानव सेवा समझ कर रहे हैं. उनका कहना है कि जो भी शव रेती में नदी के किनारे दफनाये गए हैं वो बाहर निकलकर नदी में बहेंगे तो प्रदूषण फैलाने के साथ ही शवों की दुर्गति भी होगी. इसी वजह से कटान में बहने से पहले शवों को चिता पर रखकर उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं. वह इस कार्य को सिर्फ ड्यूटी करने के लिए नहीं बल्कि मानवता का फर्ज निभाने के लिए शवों का विधि-विधान के साथ मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार करते हैं. इसके साथ ही वह मृतक आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए भी भगवान से प्रार्थना करते हैं. वहीं, स्थानीय निवासी बिजनेसमैन आनंद मिश्रा ने जोनल अधिकारी नीरज सिंह की जमकर सराहना की है. उनका कहना है कि नगर निगम के अधिकारी ने 108 शवों को मुखाग्नि देकर मिसाल पेश की है. उन्होंने ऐसा महान कार्य किया है जिससे दूसरे लोगों को भी सीख लेने की जरूरत है.
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जलस्तर बढ़ने से बढ़ी मुसीबत
पिछले दिनों हुई बरसात के बाद हरिद्वार और पहाड़ी इलाकों से छोड़े गए जल की वजह से गंगा नदी का जलस्तर बढ़ने लगा है. जिसके कारण इस हफ्ते ज्यादा संख्या में शव कटान की चपेट में आ रहे हैं. शुक्रवार को दोपहर तक जहां 16 शवों का अंतिम संस्कार किया गया है. वहीं गुरुवार को 23 और बुधवार को 22 शवों का अंतिम संस्कार किया गया था. नगर निगम की टीम दिन रात फाफामऊ घाट पर कटान की चपेट में आने वाले शवों को नदी में बहने से पहले निकालकर उनका अंतिम संस्कार करते हैं. लेकिन रातों-रात बांधों से छोड़ा गया पानी ज्यादा मात्रा में इन घाटों तक पहुंच गया तो नगर निगम के शवों को कटान में बहने से बचा पाना आसान नहीं होगा. लोगों ने नदी के नजदीक कम गढ्ढे खोदकर उसमें शवों को दफना दिया था, अब वही शव नदी का जलस्तर बढ़ने की वजह से गंगा के कटान की चपेट में आ रहे हैं.
जून के पहले सप्ताह से शुरू हुआ सिलिसला
जून महीने में गंगा में पानी बढ़ने की वजह से कटान की शुरुआत हुई. 5 जून को बरसात की वजह से शव के कब्र से बाहर दिखने लगे जिसके बाद उनका अंतिम संस्कार नगर निगम के द्वारा करवाया गया. इसके बाद नदी का जल स्तर बढ़ने की वजह से कटान की चपेट में आने वाले शवों को कब्र से निकालकर उनका अंतिम संस्कार सनातन धर्म के अनुसार किया जा रहा है. आने वाले दिनों में गंगा का जलस्तर बढ़ने पर अंतिम संस्कार किये जाने की ये संख्या और बढ़ सकती है. इससे पहले मई महीने के आखिरी सप्ताह में बरसात की वजह से कुछ शव कब्र से बाहर दिखने लगे थे, जिनका श्रृंगवेरपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया गया था.
बड़ी संख्या में गंगा घाट पर दफनाये गए थे शव
बता दें कि अप्रैल से मई महीने के बीच प्रयागराज के अलग अलग गंगा घाटों पर बड़ी संख्या में रेती में शव दफना दिये गए थे. उस वक्त कोरोना महामारी की दूसरी लहर चरम पर थी और उस जिले में बहुत से लोगों की मौतें हो रही थीं. महामारी के डर से लोग अपनों न तो कांधा देने जा रहे थे न ही कोई अंतिम संस्कार में शामिल हो रहा था. यही वजह थी कि बड़ी संख्या में लोगों ने गंगा के किनारे ले जाकर रेती में शव दफना दिए थे. यह मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आया था. इसके बाद श्रृंगवेरपुर घाट और फाफामऊ पर दफन शवों की संख्या को कम दिखाने के चक्कर में कब्रों के ऊपर से रामनामी चादर व चुनरी हटायी गयी थी. जिस पर शासन-प्रशासन की किरकिरी हुई थी.