प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सत्र न्यायालय में विचाराधीन मामलो में मजिस्ट्रेट पोस्ट ऑफिस की तरह नहीं हैं कि चार्जशीट पेश होते ही तुरन्त केस सत्र न्यायालय को भेज दें. पहले मजिस्ट्रेट चार्जशीट को संज्ञान में लेकर अभियुक्तों को सम्मन जारी करें. बाद में सत्र न्यायालय में केस भेज सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि यदि अपराध सेशन कोर्ट में विचारणीय है तो मजिस्ट्रेट को आरोपियों को डिस्चार्ज करने का अधिकार नहीं है.
अलीगढ़ के प्रतीक गुप्ता की याचिका पर आया आदेश
यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने अलीगढ़ के प्रतीक गुप्ता की याचिका पर दिया है. सीजेएम अलीगढ़ ने दहेज उत्पीड़न सहित कई आरोपों को लेकर कायम आपराधिक मुकदमे में डिस्चार्ज अर्जी खारिज कर दी. इसके विरुद्द पुनरीक्षणल अर्जी भी सत्र न्यायालय से खारिज हो गई. दोनों आदेशों की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा गया कि मजिस्ट्रेट को अर्जी तय करने का अधिकार था.
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मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट और साक्ष्यों की जांच करें
कोर्ट ने कहा कि जब मामला सत्र न्यायालय का हो तो मजिस्ट्रेट आरोपी को डिस्चार्ज नहीं कर सकता. वह संज्ञान लेकर ममाले को सत्र न्यायालय भेज देगा. इस तर्क में बल नहीं है कि सत्र न्यायालय को केस भेजने से पहले मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट व साक्ष्यों की जांच करेगा. वह यह देख सकेगा कि साक्ष्य विश्वसनीय है या नहीं. साथ ही केस मजिस्ट्रेट या सत्र के किस अदालत में विचारण के योग्य है.
2015 में दी गई थी याचिका
मजिस्ट्रेट ने डिस्चार्ज अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि केस सत्र न्यायालय में विचारणीय है. मालूम हो कि याची प्रतीक गुप्ता और मोनिका जिंदल ने पांच दिसम्बर 2015 को शादी की थी. किन्तु एक साल के भीतर ही विवाद शुरू हो गया. लड़की के पिता अरुण कुमार अग्रवाल ने एफआईआर दर्ज करा दी थी. पुलिस ने तीन लोगों पर चार्जशीट दाखिल की और बाद में पूरक चार्जशीट में तीन अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया. मामले में हत्या के प्रयास का भी आरोप लगा. हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी गई, लेकिन कोर्ट ने चार्जशीट रद्द करने से इंकार कर दिया.
याची अधिवक्ता का कहना था कि यदि केस सत्र न्यायालय में विचारणीय है तो मजिस्ट्रेट को सम्मन जारी करने का अधिकार नहीं है. जिसे कोर्ट ने सही नहीं माना.