प्रयागराज : गंगा को निर्मल बनाने के लिए नमामी गंगे की शुरूआत की गई. लेकिन इसे निर्मल बनाने के लिए लाई गई करोड़ों की मशीन धूल फांक रही हैं. महीनों से खड़ी मशीनों में जंग लग रहा है. वहीं प्रशासन बेपरवाह बना हुआ है. गंगा से कचरा निकालने वाली मशीनें कबाड़ बनती जा रही हैं. कुंभकरणी नींद में सोए हुए प्रशासन की तब नींद खुलती है जब जिले में माघ या कुंभ मेला लगने वाला होता है. तब यह जंग लगी हुई मशीनों पर से प्रशासन बेपरवाही का पर्दा हटाकर इसे पानी में दौड़ाते नजर आता है.
2014 में शुरू हुई थी नमामि गंगे परियोजना
गंगा को निर्मल करने के उद्देश्य से सरकार ने नमामि गंगे परियोजना का शुभारंभ 2014 में किया था. इस परियोजना का उद्देश्य था गंगा को प्रदूषण से मुक्त करना. नदियों की सफाई औद्योगिक कचरे का निस्तारण करने जैसी तमाम बातें इसमें शामिल थीं. हालांकि एक नजर इन मशीनों पर डाली जाए तो कोई भी नहीं कह सकता कि ये मशीनें कभी नदियों को साफ करने के लिए उपयोग में लाई गईं.
गंगा जल में बढ़ता प्रदूषण का स्तर
श्रद्धालुओं का कहना है कि इस समय गंगा जल की ऐसी हालत हो चुकी है कि आचमन नहीं किया जा सकता. उनका कहना है कि गंगा को स्वच्छ रखने के लिए प्रशासन की ओर से कोई काम नहीं किया जा रहा है. श्रद्धालुओं का मानना है कि मशीनों को लाया गया मगर धरातल पर उसका उपयोग कहीं होते नजर नहीं आया, जिसके कारण गंगा का जल अब स्वच्छ नहीं रहा है. इस पर जब मेला प्राधिकरण से जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बात को टालते हुए कहा कि ये मशीनें मेला प्राधिकरण की ओर से नहीं लाई गई हैं, बल्कि यह नमामि गंगे परियोजना तहत नगर निगम की ओर से लाई गई हैं. खैर अभी तक स्वच्छता संबंधित संस्थाओं की ओर से की जा रही रैली और अभियान से नमामी गंगे की परियोजना को मदद मिल रही है.