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अंग्रेजी सैनिकों के सामने इस कोतवाली पर ननका जी ने फहराया था तिरंगा

12 अगस्त 1942 को प्रयागराज (इलाहाबाद) की कोतवाली पर ननका जी ने अंग्रेजी सैनिकों के सामने ही उनका झंडा हटाकर तिरंगा फहराया दिया था. ननका जी की स्मृति में स्वतंत्रता दिवस पर शिलान्यास पट्ट का अनावरण किया गया है.

पढ़िए शहीद की शौर्यगाथा.
पढ़िए शहीद की शौर्यगाथा.
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Published : Aug 15, 2021, 8:21 PM IST

प्रयागराज: अगस्त माह शहादत का माह माना जाता है, क्योंकि इस महीने में कई ऐसे शहीदों को याद दिलाता है, जिन्होंने सीधे तौर पर अंग्रेजों से लड़ते हुए सीने में गोली खाई थी और देश के लिए शहीद हो गए थे. आज हम स्वतंत्र दिवस के अवसर पर पर उस वीर सपूत को याद करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने देश के लिए बलूच रेजीमेंट के कोतवाली में सफाई कर्मचारी होते हुए भी डरे नहीं और आंदोलन का साथ देते हुए तिरंगा लहरा दिया था. इसके बाद बलूच रेजीमेंट ने उनके ऊपर हजारों गोलियां बरसा दी थी और उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी. ननका जी को आगे की पीढ़ियां याद रखें, इसिलए स्वतंत्रता दिवस पर भारत भाग्य विधाता संस्था ने उनके शहीद स्थल पर ननका जी का शिलापट्ट लगवाया है.

पढ़िए शहीद की शौर्यगाथा.
बता दें कि 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देशभर में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था. अंग्रेजों का शासन खत्म करने के लिए क्रांतिकारियों ने जगह-जगह बिगुल बजा दी थी. स्वतंत्र आंदोलन का केंद्र प्रयागराज था, इसलिए यहां आए दिन अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति क्रांतिकारियों द्वारा बनाई जाती थी. इसके बाद देशभर में आंदोलन चलाया जाता था. 11 अगस्त 1942 को अंग्रेज और भारतीयों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई थी, इसमें चार भारतीय शहीद हो गए थे. यह खबर 12 अगस्त को शहर पहुंची तो जगह-जगह आंदोलन छिड़ गया और विरोध प्रदर्शन होने लगा. इसके बाद कोतवाली को लोगों ने घेर लिया. इसी दौरान बक्सी के रहने वाले कोतवाली में सफाई कर्मचारी ननका जी ने जो कारनामा किया उससे भारतीयों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था.

इसे भी पढ़ें-स्वतंत्रता दिवस पर ओमान से आजाद हुईं भारत की 6 महिलाएं


भारत भाग्य विधाता के चेयरमैन बीरेंद्र पाठक ने बताया कि कोतवाली के सामने ऐतिहासिक नीम के पेड़ के नीचे क्रांतिकारियों का एक गुट सामने खड़ा था और दूसरी तरफ बलूच रेजिमेंट थी. इसी बीच ननका जी संगीनों के साए में घिरी कोतवाली में मुंह में गमछे को बांधकर अंदर घुस गए. इतना ही नहीं ननका जी ने तिरंगे को अपने गमछे के अंदर छुपा कर अंदर प्रवेश कर गए. इसके बाद वह सीधे कोतवाली की छत पर पहुंच गए, जहां पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा लहरा रहा था. ननका जी को मालूम था कि उनके इस कार्य के बाद उनकी दशा क्या होगी. लेकिन फिर भी वह भारत माता की जय बोलते हुए ब्रिटिश हुकूमत के झंडे को उतार लिया और तिरंगा लहरा दिया. फिर क्या था चारों तरफ भारत माता की जय के नारे लगने लगे. ऐसे में बलूच रेजिमेंट के लोगों का ध्यान कोतवाली के ऊपर गया तो उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग की, जो ननका जी को लगी और वह छत से नीचे गिर गए और शहीद हो गए. वीर शहीद के इस कार्य को देखकर चारों तरफ भारत माता की जय वीर शहीद ननका जी अमर रहे के नारे लगने लगे.

फिलहाल चलो कुछ अच्छा करें नारे के साथ भारत भाग्य विधाता संस्था ने ननका जी के शहीद स्थल पर उनका शिलापट्ट लगवाया है. जिससे आने वाली पीढ़ी जान सके कि ननका जी ने देश को आजाद कराने में कितनी बड़ी कुर्बानी दी थी.

प्रयागराज: अगस्त माह शहादत का माह माना जाता है, क्योंकि इस महीने में कई ऐसे शहीदों को याद दिलाता है, जिन्होंने सीधे तौर पर अंग्रेजों से लड़ते हुए सीने में गोली खाई थी और देश के लिए शहीद हो गए थे. आज हम स्वतंत्र दिवस के अवसर पर पर उस वीर सपूत को याद करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने देश के लिए बलूच रेजीमेंट के कोतवाली में सफाई कर्मचारी होते हुए भी डरे नहीं और आंदोलन का साथ देते हुए तिरंगा लहरा दिया था. इसके बाद बलूच रेजीमेंट ने उनके ऊपर हजारों गोलियां बरसा दी थी और उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी. ननका जी को आगे की पीढ़ियां याद रखें, इसिलए स्वतंत्रता दिवस पर भारत भाग्य विधाता संस्था ने उनके शहीद स्थल पर ननका जी का शिलापट्ट लगवाया है.

पढ़िए शहीद की शौर्यगाथा.
बता दें कि 1942 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देशभर में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था. अंग्रेजों का शासन खत्म करने के लिए क्रांतिकारियों ने जगह-जगह बिगुल बजा दी थी. स्वतंत्र आंदोलन का केंद्र प्रयागराज था, इसलिए यहां आए दिन अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति क्रांतिकारियों द्वारा बनाई जाती थी. इसके बाद देशभर में आंदोलन चलाया जाता था. 11 अगस्त 1942 को अंग्रेज और भारतीयों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई थी, इसमें चार भारतीय शहीद हो गए थे. यह खबर 12 अगस्त को शहर पहुंची तो जगह-जगह आंदोलन छिड़ गया और विरोध प्रदर्शन होने लगा. इसके बाद कोतवाली को लोगों ने घेर लिया. इसी दौरान बक्सी के रहने वाले कोतवाली में सफाई कर्मचारी ननका जी ने जो कारनामा किया उससे भारतीयों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था.

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भारत भाग्य विधाता के चेयरमैन बीरेंद्र पाठक ने बताया कि कोतवाली के सामने ऐतिहासिक नीम के पेड़ के नीचे क्रांतिकारियों का एक गुट सामने खड़ा था और दूसरी तरफ बलूच रेजिमेंट थी. इसी बीच ननका जी संगीनों के साए में घिरी कोतवाली में मुंह में गमछे को बांधकर अंदर घुस गए. इतना ही नहीं ननका जी ने तिरंगे को अपने गमछे के अंदर छुपा कर अंदर प्रवेश कर गए. इसके बाद वह सीधे कोतवाली की छत पर पहुंच गए, जहां पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा लहरा रहा था. ननका जी को मालूम था कि उनके इस कार्य के बाद उनकी दशा क्या होगी. लेकिन फिर भी वह भारत माता की जय बोलते हुए ब्रिटिश हुकूमत के झंडे को उतार लिया और तिरंगा लहरा दिया. फिर क्या था चारों तरफ भारत माता की जय के नारे लगने लगे. ऐसे में बलूच रेजिमेंट के लोगों का ध्यान कोतवाली के ऊपर गया तो उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग की, जो ननका जी को लगी और वह छत से नीचे गिर गए और शहीद हो गए. वीर शहीद के इस कार्य को देखकर चारों तरफ भारत माता की जय वीर शहीद ननका जी अमर रहे के नारे लगने लगे.

फिलहाल चलो कुछ अच्छा करें नारे के साथ भारत भाग्य विधाता संस्था ने ननका जी के शहीद स्थल पर उनका शिलापट्ट लगवाया है. जिससे आने वाली पीढ़ी जान सके कि ननका जी ने देश को आजाद कराने में कितनी बड़ी कुर्बानी दी थी.

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