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High Court: अपराध पर संज्ञान लेने के बाद मजिस्ट्रेट को पुनर्विचार का अधिकार नहीं - Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में पुलिस चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के बाद उसपर पुनर्विचार करने का उसे अधिकार नहीं है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jun 10, 2022, 7:44 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में पुलिस चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के बाद उसपर पुनर्विचार करने का उसे अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने अभियुक्त की एक धारा का अपराध न बनने के आधार पर आदेश वापस लेने से इंकार करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि न्यायिक पुनर्विलोकन की कोर्ट की शक्ति सीमित है जिसका इस्तेमाल अपराध का संज्ञान लेने के आदेश पर पुनर्विचार करने में नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने सीजेएम सहारनपुर व सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है.

यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने जगवीर की याचिका पर दिया है. मालूम हो कि दर्ज एफआईआर की विवेचना कर पुलिस ने अपराध की विभिन्न धाराओं में चार्जशीट दाखिल की, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया. याची अभियुक्त ने अर्जी दी है कि धारा 308 का अपराध नहीं बनता इसलिए इस धारा में लिया गया संज्ञान वापस लिया जाए. मजिस्ट्रेट ने अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि पुनर्विचार का उसे अधिकार नहीं है. इसके खिलाफ सत्र अदालत ने भी अर्जी खारिज कर दी जिसपर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

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प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में पुलिस चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के बाद उसपर पुनर्विचार करने का उसे अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने अभियुक्त की एक धारा का अपराध न बनने के आधार पर आदेश वापस लेने से इंकार करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि न्यायिक पुनर्विलोकन की कोर्ट की शक्ति सीमित है जिसका इस्तेमाल अपराध का संज्ञान लेने के आदेश पर पुनर्विचार करने में नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने सीजेएम सहारनपुर व सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है.

यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने जगवीर की याचिका पर दिया है. मालूम हो कि दर्ज एफआईआर की विवेचना कर पुलिस ने अपराध की विभिन्न धाराओं में चार्जशीट दाखिल की, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया. याची अभियुक्त ने अर्जी दी है कि धारा 308 का अपराध नहीं बनता इसलिए इस धारा में लिया गया संज्ञान वापस लिया जाए. मजिस्ट्रेट ने अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि पुनर्विचार का उसे अधिकार नहीं है. इसके खिलाफ सत्र अदालत ने भी अर्जी खारिज कर दी जिसपर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

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