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जानिए, कहां हैं शृंगी ऋषि का प्राचीन आश्रम और भगवान राम की बहन की प्रतिमा...यहीं गले मिले थे निषादराज

श्रृंगवेरपुर धाम को निषाद राज गुह की धरती कहा जाता है. श्रृंगवेरपुर का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर रखा गया है. यहां उनका आश्रम भी है. यहीं पर भगवान राम की बहन शांता की प्रतिमा भी है. चलिए जानते हैं इससे जुड़ी रोचक जानकारियों के बारे में.

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शृंगी ऋषि का प्राचीन आश्रम.
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Published : Jan 9, 2022, 5:26 PM IST

Updated : Jan 9, 2022, 10:24 PM IST

प्रयागराजः जिले में श्रृंगवेरपुर धाम को निषाद राज गुह की धरती कहा जाता है. श्रृंगवेरपुर का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर रखा गया है क्योंकि त्रेता युग में यहीं पर गंगा तट पर उनका आश्रम था. वहीं पर आज श्रृंगी ऋषि व माता शांता का मंदिर बना हुआ है.

इसी स्थान पर भगवान राम ने वनवास जाते समय निषाद राज गुह को गले लगाया था और यहीं से नदी पार कर वनवास के लिए आगे बढ़े थे.निषाद राज की धरती से राम वन गमन मार्ग का शिलान्यास कर यूपी सरकार ने निषाद समुदाय को साधने का भी प्रयास किया है.

शृंगी ऋषि का प्राचीन आश्रम.
कौन थीं भगवान राम की बहन
राजा दशरथ के चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघन के बारे में तो आपने सुना होगा लेकिन राजा दशरथ की एक पुत्री भी थी, इस बारे में आप नहीं जानते होंगे. दरअसल, शास्त्रों के अनुसार राजा दशरथ को कोई संतान नहीं हुई थी तब उन्होंने राजा रोमपात्र की बेटी को अपनी दत्तक पुत्री के रूप में गोद लिया था. इसके बाद उन्होंने श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के बाद यज्ञ की दक्षिणा के रूप में अपनी बेटी शांता का हाथ उन्हें सौंप दिया था. इस तरह से श्रृंगी ऋषि रिश्ते में भगवान राम के बहनोई हैं.



कौन थे श्रृंगी ऋषि

श्रृंगी ऋषि के पिता ब्रह्माण्डक ऋषि थे जबकि हिरणी को उनकी मां कहा जाता है.हिरणी के गर्भ से पैदा होने के बाद ही उनका नाम श्रृंगी रखा गया.श्रृंगी ऋषि के द्वारा करवाये जाने वाले पुत्रेष्टि यज्ञ की वजह से लोगों को संतान प्राप्ति होती थी.यही वजह थी कि राजा दशरथ को जब कोई संतान नहीं हुई तो श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के लिए उन्हें अयोध्या बुलाया गया. गुरु वशिष्ठ के आमंत्रण पर श्रृंगी ऋषि अयोध्या गए और पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इसी के फलस्वरूप राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए. यज्ञ की दक्षिणा के रूप में राजा दशरथ ने अपनी दत्तक पुत्री शांता का हाथ श्रृंगी के हाथ में सौंप दिया था.


ये भी पढ़ेंः Up Election 2022 Schedule: जानिए, आपकी विधानसभा में कौन सी तारीख को होगा चुनाव

आज भी पुत्र प्राप्ति के लिए लोग करते हैं पूजा

प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर धाम में स्थित श्रृंगी ऋषि और माता शांता के इस मंदिर में आज भी लोग संतान प्राप्ति की कामना लेकर पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारियों का कहना है कि आज भी सच्चे मन से जो लोग यहां पर आकर पूजा अर्चना करते हैं. उनकी संतान प्राप्ति की मनोकामना जरूर पूरी होती है. संतान प्राप्ति की कामना के साथ जो भी भक्त मंदिर में आते हैं, उन्हें श्रृंगी ऋषि और माता शांता के आशीर्वाद से संतान प्राप्त होती है. पंडितों के अनुसार इसके साथ ही जिस वक्त भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता के साथ वनवास जाने के लिए श्रृंगवेरपुर पहुंचे थे. तब सीता माता ने श्रृंगवेरपुर के गंगा तट पर मां गंगा की पूजा की थी. बाद में गंगा मां ने प्रकट होकर माता सीता को आशीर्वाद दिया था कि जब तक गंगा और यमुना की लहरें बहती रहेंगी तब तक उनका अखंड सौभाग्य बना रहेगा.



अयोध्या से चित्रकूट तक बनने वाले राम वन गमन मार्ग का शिलान्यास करने के लिए श्रृंगवेरपुर की धरती को इसलिए चुना गया क्योंकि इसे निषादराज की धरती भी कहा जाता है.निषाद राज की धरती से राम वन गमन मार्ग का शिलान्यास कर उत्तर प्रदेश सरकार ने निषाद समुदाय को साधने का एक और जतन कर दिया है.2022 में निषाद समुदाय किसके साथ जाएगा अभी इस बारे में कुछ भी कह पाना आसान नहीं होगा.

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प्रयागराजः जिले में श्रृंगवेरपुर धाम को निषाद राज गुह की धरती कहा जाता है. श्रृंगवेरपुर का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर रखा गया है क्योंकि त्रेता युग में यहीं पर गंगा तट पर उनका आश्रम था. वहीं पर आज श्रृंगी ऋषि व माता शांता का मंदिर बना हुआ है.

इसी स्थान पर भगवान राम ने वनवास जाते समय निषाद राज गुह को गले लगाया था और यहीं से नदी पार कर वनवास के लिए आगे बढ़े थे.निषाद राज की धरती से राम वन गमन मार्ग का शिलान्यास कर यूपी सरकार ने निषाद समुदाय को साधने का भी प्रयास किया है.

शृंगी ऋषि का प्राचीन आश्रम.
कौन थीं भगवान राम की बहन
राजा दशरथ के चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघन के बारे में तो आपने सुना होगा लेकिन राजा दशरथ की एक पुत्री भी थी, इस बारे में आप नहीं जानते होंगे. दरअसल, शास्त्रों के अनुसार राजा दशरथ को कोई संतान नहीं हुई थी तब उन्होंने राजा रोमपात्र की बेटी को अपनी दत्तक पुत्री के रूप में गोद लिया था. इसके बाद उन्होंने श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के बाद यज्ञ की दक्षिणा के रूप में अपनी बेटी शांता का हाथ उन्हें सौंप दिया था. इस तरह से श्रृंगी ऋषि रिश्ते में भगवान राम के बहनोई हैं.



कौन थे श्रृंगी ऋषि

श्रृंगी ऋषि के पिता ब्रह्माण्डक ऋषि थे जबकि हिरणी को उनकी मां कहा जाता है.हिरणी के गर्भ से पैदा होने के बाद ही उनका नाम श्रृंगी रखा गया.श्रृंगी ऋषि के द्वारा करवाये जाने वाले पुत्रेष्टि यज्ञ की वजह से लोगों को संतान प्राप्ति होती थी.यही वजह थी कि राजा दशरथ को जब कोई संतान नहीं हुई तो श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के लिए उन्हें अयोध्या बुलाया गया. गुरु वशिष्ठ के आमंत्रण पर श्रृंगी ऋषि अयोध्या गए और पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इसी के फलस्वरूप राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए. यज्ञ की दक्षिणा के रूप में राजा दशरथ ने अपनी दत्तक पुत्री शांता का हाथ श्रृंगी के हाथ में सौंप दिया था.


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आज भी पुत्र प्राप्ति के लिए लोग करते हैं पूजा

प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर धाम में स्थित श्रृंगी ऋषि और माता शांता के इस मंदिर में आज भी लोग संतान प्राप्ति की कामना लेकर पहुंचते हैं. मंदिर के पुजारियों का कहना है कि आज भी सच्चे मन से जो लोग यहां पर आकर पूजा अर्चना करते हैं. उनकी संतान प्राप्ति की मनोकामना जरूर पूरी होती है. संतान प्राप्ति की कामना के साथ जो भी भक्त मंदिर में आते हैं, उन्हें श्रृंगी ऋषि और माता शांता के आशीर्वाद से संतान प्राप्त होती है. पंडितों के अनुसार इसके साथ ही जिस वक्त भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता के साथ वनवास जाने के लिए श्रृंगवेरपुर पहुंचे थे. तब सीता माता ने श्रृंगवेरपुर के गंगा तट पर मां गंगा की पूजा की थी. बाद में गंगा मां ने प्रकट होकर माता सीता को आशीर्वाद दिया था कि जब तक गंगा और यमुना की लहरें बहती रहेंगी तब तक उनका अखंड सौभाग्य बना रहेगा.



अयोध्या से चित्रकूट तक बनने वाले राम वन गमन मार्ग का शिलान्यास करने के लिए श्रृंगवेरपुर की धरती को इसलिए चुना गया क्योंकि इसे निषादराज की धरती भी कहा जाता है.निषाद राज की धरती से राम वन गमन मार्ग का शिलान्यास कर उत्तर प्रदेश सरकार ने निषाद समुदाय को साधने का एक और जतन कर दिया है.2022 में निषाद समुदाय किसके साथ जाएगा अभी इस बारे में कुछ भी कह पाना आसान नहीं होगा.

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Last Updated : Jan 9, 2022, 10:24 PM IST
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