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हाईकोर्ट में मुकदमों की सुनवाई की अनिश्चितता को लेकर मुख्य न्यायाधीश को पत्र

इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की सुनवाई की अनिश्चितता को लेकर एडवोकेट एसोसिएशन के पूर्व महासचिव अरूण सिंह देशवाल ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र के माध्यम से तकनीकी खामियां दुरूस्त करने की मांग की है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Apr 28, 2020, 8:10 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अतिआवश्यक मुकदमों की सुनवाई की अनिश्चितता को लेकर एडवोकेट एसोसिएशन के पूर्व महासचिव अरूण सिंह देशवाल ने मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर को पत्र लिखकर व्यवस्था में सुधार की मांग की है.

देशवाल का कहना है कि उन्हें हाईकोर्ट से उनके द्वारा दाखिल दो आपराधिक याचिकाओं की सुनवाई की तिथि की सूचना दी गई. कहा गया कि सुनवाई के आधे घंटे पहले लिंक भेजा जाएगा. जिससे वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग से सुनवाई हो सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. याचिका को सुनवाई के लिए तीन मई को पेश करने का आदेश दिया गया है. ऐसे ही वेबसाइट पर लंबित बैकलाग फ्रेश बेल अर्जी की सुनवाई की प्रार्थना की गई. एक हफ्ते बाद दोबारा अनुरोध किया गया, लेकिन न्यायालय प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया.

ये भी पढ़ें- कोरोना संक्रमित स्टाफ नर्स के वार्ड में 2 मरीजों की मौत, 6 नए मरीज मिले

देशवाल कि कहना है कि इन वजहों से आर्थिक संकट से जूझ रहे वकीलों पर वादकारी का दबाव है. मुकदमे की सुनवाई की कोई सूचना न मिल पाने से अनिश्चितता के कारण फ्रस्ट्रेशन बढ़ रहा है. मुख्य न्यायाधीश से सुनवाई व्यवस्था को सुधारने के लिए उचित कार्रवाई करने की मांग की गई है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अतिआवश्यक मुकदमों की सुनवाई की अनिश्चितता को लेकर एडवोकेट एसोसिएशन के पूर्व महासचिव अरूण सिंह देशवाल ने मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर को पत्र लिखकर व्यवस्था में सुधार की मांग की है.

देशवाल का कहना है कि उन्हें हाईकोर्ट से उनके द्वारा दाखिल दो आपराधिक याचिकाओं की सुनवाई की तिथि की सूचना दी गई. कहा गया कि सुनवाई के आधे घंटे पहले लिंक भेजा जाएगा. जिससे वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग से सुनवाई हो सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. याचिका को सुनवाई के लिए तीन मई को पेश करने का आदेश दिया गया है. ऐसे ही वेबसाइट पर लंबित बैकलाग फ्रेश बेल अर्जी की सुनवाई की प्रार्थना की गई. एक हफ्ते बाद दोबारा अनुरोध किया गया, लेकिन न्यायालय प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया.

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देशवाल कि कहना है कि इन वजहों से आर्थिक संकट से जूझ रहे वकीलों पर वादकारी का दबाव है. मुकदमे की सुनवाई की कोई सूचना न मिल पाने से अनिश्चितता के कारण फ्रस्ट्रेशन बढ़ रहा है. मुख्य न्यायाधीश से सुनवाई व्यवस्था को सुधारने के लिए उचित कार्रवाई करने की मांग की गई है.

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