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कोर्ट परिसर में कोई भी हथियार नहीं ले जा सकते वकील, हाईकोर्ट ने दिया आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील के हथियार लाइसेंस रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोर्ट परिसर में वकील कोई भी हथियार नहीं ला सकते.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 20, 2023, 7:24 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कानून के पेशे में सफल होने के लिए बंदूक के सहारे की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि वकील अदालत में हथियार ले कर नहीं आ सकते. यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अमनदीप सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है. याचिका में लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा याची का शस्त्र लाइसेंस रद्द करने और अपील खारिज होने के आदेश को चुनौती दी गई थी.

शस्त्र लाइसेंस निरस्त होने कोर्ट में दाखिल की है याचिका
मामले के तथ्यों के अनुसार वर्ष 2018 में वकालत शुरू करने वाले याची पर अदालत परिसर में हथियार ले जाने पर धारा 30 के साथ आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध का आरोप लगाया था. इसके बाद इसी कारण उसका शस्त्र लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था. याची का कहना था कि शस्त्र रखने का अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के संरक्षण के लिए आवश्यक अधिकार है. शस्त्र ले जाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित मौलिक अधिकार है. इस तथ्य को लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने नजर अंदाज किया है. यह भी कहा गया कि याची का जीवन खतरे में है, क्योंकि वह एक प्रैक्टिसिंग वकील है और मुकदमेबाजी के पक्षकारों की झुंझलाहट के कारण वकालत का कार्य बहुत चुनौतीपूर्ण है.

शस्त्र ले जाने का कोई मौलिक अधिकार नहीं
इस पर कोर्ट ने कहा कि शस्त्र लाइसेंस केवल राज्य द्वारा दिया गया एक विशेषाधिकार है. यह अधिकार नहीं है और शस्त्र ले जाने का अधिकार निश्चित रूप से मौलिक अधिकार नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकार तो बिल्कुल भी नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि शस्त्र लाइसेंस देना किसी अधिकार से बाहर नहीं जा रहा है. बल्कि यह एक मात्र विशेषाधिकार है, जो अधिनियम नियम 2016 और विशेष रूप से सामान्य नियम (सिविल) के नियम 614-ए के तहत विभिन्न प्रतिबंधों के अधीन है. जो विशेष रूप से किसी भी ऐसे व्यक्ति को कोर्ट परिसर में शस्त्र ले जाने या अपने कब्जे में रखने से रोकता है, जो पुलिस बल से संबंधित नहीं है.

कानून के पेशे में सफल होने के लिए बंदूक की जरूरत नहीं
कोर्ट ने कहा कि युवा पेशेवर को यह याद दिलाने की जरूरत है कि कानूनी पेशा एक महान पेशा है और यह सदियों से चला आ रहा है. एक वकील का मूल्य उसकी कलम, अत्यधिक कड़ी मेहनत और कानून की उसकी समझ से आता है न कि बंदूक की नली से. जैसा कि युवा पेशेवर याची का कहना है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी वादी या वकील सहित कोई भी व्यक्ति अदालत परिसर में शस्त्र नहीं ले जा सकता है. कानून के पेशे में सफल होने के लिए निश्चित रूप से बंदूक की बैरल के जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 17(3) में आने वाला शब्द शक्ति के साथ कर्तव्य भी है. एक बार जब धारा 17(3)(बी) में निर्धारित शर्तों का अस्तित्व दिखाई देता है तो लाइसेंसिंग प्राधिकारी को लाइसेंस को अनिवार्य रूप से निलंबित या रद्द करना होगा. हाईकोर्ट ने कहा कि जब भी सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए कोई खतरा हो तो लाइसेंस रद्द करना या निलंबित करना लाइसेंस प्राधिकारी के लिए यह निर्धारित करना आवश्यक है कि क्या अदालत परिसर में आग्नेयास्त्र ले जाना वास्तव में एक मामला होगा.

सशस्त्र बलों को छोड़कर कोई नहीं ला सकता हथियार
कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों के सदस्यों के अलावा वकीलों या किसी भी वादी को शस्त्र ले जाने की अनुमति देना स्पष्ट रूप से अदालत परिसर में सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा होगा. जिसका न केवल बार-बार आने वाले वादियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. साथ ही जिला न्यायालयों में न्याय प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो भारत के संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है. कोर्ट ने कहा कि अदालत परिसर में शस्त्र ले जाने से न केवल शस्त्र लाइसेंस रद्द किया जा सकता है. ड्यूटी पर सशस्त्र बलों के सदस्यों को छोड़कर वकीलों सहित कोई भी कोर्ट परिसर में बंदूक ले जाता है तो स्वभाविक रूप से लाइसेंस रद करना अनिवार्य रूप से होगा. इसी के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

इसे भी पढ़ें-नाबालिग को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

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प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कानून के पेशे में सफल होने के लिए बंदूक के सहारे की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि वकील अदालत में हथियार ले कर नहीं आ सकते. यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने अमनदीप सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है. याचिका में लाइसेंसिंग प्राधिकरण द्वारा याची का शस्त्र लाइसेंस रद्द करने और अपील खारिज होने के आदेश को चुनौती दी गई थी.

शस्त्र लाइसेंस निरस्त होने कोर्ट में दाखिल की है याचिका
मामले के तथ्यों के अनुसार वर्ष 2018 में वकालत शुरू करने वाले याची पर अदालत परिसर में हथियार ले जाने पर धारा 30 के साथ आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध का आरोप लगाया था. इसके बाद इसी कारण उसका शस्त्र लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था. याची का कहना था कि शस्त्र रखने का अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के संरक्षण के लिए आवश्यक अधिकार है. शस्त्र ले जाने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित मौलिक अधिकार है. इस तथ्य को लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने नजर अंदाज किया है. यह भी कहा गया कि याची का जीवन खतरे में है, क्योंकि वह एक प्रैक्टिसिंग वकील है और मुकदमेबाजी के पक्षकारों की झुंझलाहट के कारण वकालत का कार्य बहुत चुनौतीपूर्ण है.

शस्त्र ले जाने का कोई मौलिक अधिकार नहीं
इस पर कोर्ट ने कहा कि शस्त्र लाइसेंस केवल राज्य द्वारा दिया गया एक विशेषाधिकार है. यह अधिकार नहीं है और शस्त्र ले जाने का अधिकार निश्चित रूप से मौलिक अधिकार नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकार तो बिल्कुल भी नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि शस्त्र लाइसेंस देना किसी अधिकार से बाहर नहीं जा रहा है. बल्कि यह एक मात्र विशेषाधिकार है, जो अधिनियम नियम 2016 और विशेष रूप से सामान्य नियम (सिविल) के नियम 614-ए के तहत विभिन्न प्रतिबंधों के अधीन है. जो विशेष रूप से किसी भी ऐसे व्यक्ति को कोर्ट परिसर में शस्त्र ले जाने या अपने कब्जे में रखने से रोकता है, जो पुलिस बल से संबंधित नहीं है.

कानून के पेशे में सफल होने के लिए बंदूक की जरूरत नहीं
कोर्ट ने कहा कि युवा पेशेवर को यह याद दिलाने की जरूरत है कि कानूनी पेशा एक महान पेशा है और यह सदियों से चला आ रहा है. एक वकील का मूल्य उसकी कलम, अत्यधिक कड़ी मेहनत और कानून की उसकी समझ से आता है न कि बंदूक की नली से. जैसा कि युवा पेशेवर याची का कहना है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी वादी या वकील सहित कोई भी व्यक्ति अदालत परिसर में शस्त्र नहीं ले जा सकता है. कानून के पेशे में सफल होने के लिए निश्चित रूप से बंदूक की बैरल के जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि शस्त्र अधिनियम की धारा 17(3) में आने वाला शब्द शक्ति के साथ कर्तव्य भी है. एक बार जब धारा 17(3)(बी) में निर्धारित शर्तों का अस्तित्व दिखाई देता है तो लाइसेंसिंग प्राधिकारी को लाइसेंस को अनिवार्य रूप से निलंबित या रद्द करना होगा. हाईकोर्ट ने कहा कि जब भी सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए कोई खतरा हो तो लाइसेंस रद्द करना या निलंबित करना लाइसेंस प्राधिकारी के लिए यह निर्धारित करना आवश्यक है कि क्या अदालत परिसर में आग्नेयास्त्र ले जाना वास्तव में एक मामला होगा.

सशस्त्र बलों को छोड़कर कोई नहीं ला सकता हथियार
कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों के सदस्यों के अलावा वकीलों या किसी भी वादी को शस्त्र ले जाने की अनुमति देना स्पष्ट रूप से अदालत परिसर में सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा होगा. जिसका न केवल बार-बार आने वाले वादियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. साथ ही जिला न्यायालयों में न्याय प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो भारत के संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है. कोर्ट ने कहा कि अदालत परिसर में शस्त्र ले जाने से न केवल शस्त्र लाइसेंस रद्द किया जा सकता है. ड्यूटी पर सशस्त्र बलों के सदस्यों को छोड़कर वकीलों सहित कोई भी कोर्ट परिसर में बंदूक ले जाता है तो स्वभाविक रूप से लाइसेंस रद करना अनिवार्य रूप से होगा. इसी के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

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