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महाशिवरात्रि पर जानें सोमेश्वर महादेव और चंद्रमा की कहानी - भगवान शिव की पूजा

देश भर में आज महाशिवरात्रि के पर्व को मनाया जा रहा है. चारों ओर भगवान शिव की महिमा का वर्णन हो रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के जटाओं में चंद्रमा क्यों विराजमान हैं. इस खास रिपोर्ट में जानते हैं सोमेश्वर महादेव और चंद्रमा की कहानी.

सोमेश्वर मंदिर
सोमेश्वर मंदिर
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Published : Mar 11, 2021, 8:56 PM IST

प्रयागराजः संगम नगरी में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसकी स्थापना चंद्रमा ने की थी. दुनिया को शीतलता देने वाले चंद्रमा ने श्राप से मिली बीमारी से मुक्ति पाने के लिए संगम के नजदीक शिवलिंग स्थापित करके भगवान शिव के साथ सरस्वती की उपासना की थी. जिसके बाद भोले नाथ के आशीर्वाद से चंद्रमा को कुष्ठ रोग से बचने का उपाय मिला. देखिए इस खास रिपोर्ट में पुराणों में वर्णित सोमेश्वर महादेव मंदिर का महत्व और भगवान शिव की जटाओं पर क्यों विराजमान हुए चंद्रमा.

श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने की थी तपस्या.

चंद्रमा ने की थी सोमेश्वर महादेव की स्थापना
संगम किनारे अरैल में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन पद्म पुराण के साथ ही शिव पुराण में भी मिलता है. पौराणिक महत्व वाले इस शिव मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सदियों पहले चंद्रमा ने की थी. उस वक्त चंद्रमा को राजा दक्ष ने कुष्ठ रोग से नष्ट होने का श्राप दे दिया था. जिसके बाद उस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने संगम के दक्षिण की तरफ प्रभास क्षेत्र वर्तमान के अरैल इलाके में शिवलिंग की स्थापना की थी. जिसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव की कठिन तपस्या करके उनको प्रसन्न किया और भोलेनाथ के आशीर्वाद से वो श्राप से बच सके.

सोमेश्वर महादेव
सोमेश्वर महादेव

राजा दक्ष की 27 बेटियों की हुई थी चंद्रमा से शादी
मंदिर के महंत राजेंद्र पुरी की कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी 27 बेटियों का विवाह चंद्रमा से किया था लेकिन चंद्रमा ने 27 बेटियों में से सिर्फ एक बेटी के साथ ही संबंध रखें बाकी 26 बेटियों की लगातार अनदेखी कर रहे थे. जब इस बात की जानकारी राजा दक्ष को हुई तो उन्होंने चंद्रमा को समझाया कि सभी बेटियों के साथ पत्नी जैसा व्यवहार करें. राजा दक्ष के समझाने के बावजूद भी चंद्रमा नहीं माने. चंद्रमा नाराज होकर राजा दक्ष की 26 बेटियां अपने पिता के पास पहुंची. बेटियों ने पिता को अपना दुख बताते हुए अपना जीवन समाप्त करने की बात कही. इस बात से नाराज होकर राजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया.

सोमेश्वर महादेव के दर्शन करने दूर-दराज से आते हैं लोग.
सोमेश्वर महादेव के दर्शन करने दूर-दराज से आते हैं लोग.

राजा दक्ष ने चंद्रमा को दिया था श्राप
राजा दक्ष ने कहा कि चंद्रमा को जिस तरह से अपने रंग रूप का घमंड है, उसी घमंड की वजह से वो कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर नष्ट हो जाएंगे. श्राप का असर शुरू होते ही चंद्रमा कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए. इलाज के लिए कोई उपाय उनके काम नहीं आया. तब उन्होंने भगवान विष्णु से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की जिसके बाद विष्णु भगवान ने उन्हें सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पास जाने की सलाह दी. लेकिन ब्रह्मा जी ने भी चंद्रमा को कोई उपाय नहीं बताया और उन्हें अपने कर्मों की सजा भुगतने को कह दिया.

भगवान शिव की जटा पर कैसे विराजमान हुए चंद्रमा
दूसरे देवी- देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवान ब्रह्मा ने चंद्रमा को पृथ्वी पर जाकर संगम के दक्षिण की तरफ शिवलिंग की स्थापना कर शिव और सरस्वती की उपासना करने की सलाह दी. चंद्रमा ने ब्रह्मा जी की सलाह पर उसी तरह से संगम के दक्षिण की तरफ शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शंकर की तपस्या में लीन हो गए. सदियां बीतने के बाद जब भगवान शिव प्रसन्न हुए तो वह चंद्रमा के सामने प्रकट हुए. चंद्रमा ने इस श्राप से मुक्ति के लिए भगवान से आशीर्वाद मांगा.तब भगवान शिव ने चंद्रमा से कहा कि इस श्राप से मुक्त तो नहीं हो सकते लेकिन उससे बचने का उपाय जरूर बताया. उन्होंने चंद्रमा को बताया कि अब तुम महीने के पहले कृष्ण पक्ष में 15 दिनों तक घटोगे और उसके बाद शुक्ल पक्ष के 15 दिन में बढ़ोगे. इसके अलावा प्रतिपदा व अमावस्या के दिन नष्ट होने से बचने के लिए शिवजी ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को विराजमान रहने को कह दिया. जिसके बाद से ही चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हुए बताए जाते हैं.

रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी लोग करते हैं पूजा
सोमेश्वर महादेव मंदिर में आज भी दर्शन करके लोग तमाम तरह की बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करते हैं. वहीं मंदिर के महंत का कहना है कि कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति आज भी भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा पाठ करके उनकी आराधना करते हैं तो उनके कुष्ठ रोग पर नियंत्रण हो सकता है. मंदिर में दर्शन पूजन करने वालों का यह भी कहना है कि इस मंदिर में दर्शन करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

मंदिर में पूजा के लिए जुटती है भीड़
अरैल इलाके में स्थित पौराणिक सोमेश्वर महादेव मंदिर में आज भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. सिर्फ प्रयागराज ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों के लोग भी इस मंदिर में पूजा करके भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने आते हैं. मंदिर में शिव जी का रुद्राभिषेक करने के लिए भी प्रतिदिन दूर-दूर से लोग आते हैं. मंदिर के सामने संगम तट पर बने घाट को चंद्र कुंड घाट कहा जाता है. इस घाट पर स्नान करके भगवान भोले नाथ का जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

प्रयागराजः संगम नगरी में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसकी स्थापना चंद्रमा ने की थी. दुनिया को शीतलता देने वाले चंद्रमा ने श्राप से मिली बीमारी से मुक्ति पाने के लिए संगम के नजदीक शिवलिंग स्थापित करके भगवान शिव के साथ सरस्वती की उपासना की थी. जिसके बाद भोले नाथ के आशीर्वाद से चंद्रमा को कुष्ठ रोग से बचने का उपाय मिला. देखिए इस खास रिपोर्ट में पुराणों में वर्णित सोमेश्वर महादेव मंदिर का महत्व और भगवान शिव की जटाओं पर क्यों विराजमान हुए चंद्रमा.

श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने की थी तपस्या.

चंद्रमा ने की थी सोमेश्वर महादेव की स्थापना
संगम किनारे अरैल में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन पद्म पुराण के साथ ही शिव पुराण में भी मिलता है. पौराणिक महत्व वाले इस शिव मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना सदियों पहले चंद्रमा ने की थी. उस वक्त चंद्रमा को राजा दक्ष ने कुष्ठ रोग से नष्ट होने का श्राप दे दिया था. जिसके बाद उस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने संगम के दक्षिण की तरफ प्रभास क्षेत्र वर्तमान के अरैल इलाके में शिवलिंग की स्थापना की थी. जिसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव की कठिन तपस्या करके उनको प्रसन्न किया और भोलेनाथ के आशीर्वाद से वो श्राप से बच सके.

सोमेश्वर महादेव
सोमेश्वर महादेव

राजा दक्ष की 27 बेटियों की हुई थी चंद्रमा से शादी
मंदिर के महंत राजेंद्र पुरी की कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी 27 बेटियों का विवाह चंद्रमा से किया था लेकिन चंद्रमा ने 27 बेटियों में से सिर्फ एक बेटी के साथ ही संबंध रखें बाकी 26 बेटियों की लगातार अनदेखी कर रहे थे. जब इस बात की जानकारी राजा दक्ष को हुई तो उन्होंने चंद्रमा को समझाया कि सभी बेटियों के साथ पत्नी जैसा व्यवहार करें. राजा दक्ष के समझाने के बावजूद भी चंद्रमा नहीं माने. चंद्रमा नाराज होकर राजा दक्ष की 26 बेटियां अपने पिता के पास पहुंची. बेटियों ने पिता को अपना दुख बताते हुए अपना जीवन समाप्त करने की बात कही. इस बात से नाराज होकर राजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया.

सोमेश्वर महादेव के दर्शन करने दूर-दराज से आते हैं लोग.
सोमेश्वर महादेव के दर्शन करने दूर-दराज से आते हैं लोग.

राजा दक्ष ने चंद्रमा को दिया था श्राप
राजा दक्ष ने कहा कि चंद्रमा को जिस तरह से अपने रंग रूप का घमंड है, उसी घमंड की वजह से वो कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर नष्ट हो जाएंगे. श्राप का असर शुरू होते ही चंद्रमा कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए. इलाज के लिए कोई उपाय उनके काम नहीं आया. तब उन्होंने भगवान विष्णु से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की जिसके बाद विष्णु भगवान ने उन्हें सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पास जाने की सलाह दी. लेकिन ब्रह्मा जी ने भी चंद्रमा को कोई उपाय नहीं बताया और उन्हें अपने कर्मों की सजा भुगतने को कह दिया.

भगवान शिव की जटा पर कैसे विराजमान हुए चंद्रमा
दूसरे देवी- देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवान ब्रह्मा ने चंद्रमा को पृथ्वी पर जाकर संगम के दक्षिण की तरफ शिवलिंग की स्थापना कर शिव और सरस्वती की उपासना करने की सलाह दी. चंद्रमा ने ब्रह्मा जी की सलाह पर उसी तरह से संगम के दक्षिण की तरफ शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शंकर की तपस्या में लीन हो गए. सदियां बीतने के बाद जब भगवान शिव प्रसन्न हुए तो वह चंद्रमा के सामने प्रकट हुए. चंद्रमा ने इस श्राप से मुक्ति के लिए भगवान से आशीर्वाद मांगा.तब भगवान शिव ने चंद्रमा से कहा कि इस श्राप से मुक्त तो नहीं हो सकते लेकिन उससे बचने का उपाय जरूर बताया. उन्होंने चंद्रमा को बताया कि अब तुम महीने के पहले कृष्ण पक्ष में 15 दिनों तक घटोगे और उसके बाद शुक्ल पक्ष के 15 दिन में बढ़ोगे. इसके अलावा प्रतिपदा व अमावस्या के दिन नष्ट होने से बचने के लिए शिवजी ने अपने मस्तक पर चंद्रमा को विराजमान रहने को कह दिया. जिसके बाद से ही चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हुए बताए जाते हैं.

रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी लोग करते हैं पूजा
सोमेश्वर महादेव मंदिर में आज भी दर्शन करके लोग तमाम तरह की बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करते हैं. वहीं मंदिर के महंत का कहना है कि कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति आज भी भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा पाठ करके उनकी आराधना करते हैं तो उनके कुष्ठ रोग पर नियंत्रण हो सकता है. मंदिर में दर्शन पूजन करने वालों का यह भी कहना है कि इस मंदिर में दर्शन करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

मंदिर में पूजा के लिए जुटती है भीड़
अरैल इलाके में स्थित पौराणिक सोमेश्वर महादेव मंदिर में आज भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. सिर्फ प्रयागराज ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों के लोग भी इस मंदिर में पूजा करके भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने आते हैं. मंदिर में शिव जी का रुद्राभिषेक करने के लिए भी प्रतिदिन दूर-दूर से लोग आते हैं. मंदिर के सामने संगम तट पर बने घाट को चंद्र कुंड घाट कहा जाता है. इस घाट पर स्नान करके भगवान भोले नाथ का जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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