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गंगा जयंती: आज के दिन गंगा में स्नान करने से मिलता है पुण्यलाभ - prayagraj ganga jayanti

आज गंगा जयंती है. ऐसी मान्यता है कि वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई. इसलिए इस दिन को संपूर्ण भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है.

गंगा जयंती.
गंगा जयंती.
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Published : May 18, 2021, 3:54 PM IST

प्रयागराज: गंगा जयंती हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है. ऐसी मान्यता है कि वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई. इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. कल्याणी देवी मंदिर के पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार गंगा जयंती पर गंगा जी में स्नान करने से सात्विकता और पुण्यलाभ प्राप्त होता है. वैशाख शुक्ल सप्तमी का दिन संपूर्ण भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में गंगा जन्म की कथा वर्णित है.

गंगा नदी के किनारे बसे कई पवित्र तीर्थस्थल

भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में दर्शाया गया है. कई पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे बसे हुए हैं. गंगा नदी को भारत की नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है. लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा रखते हैं और मृत्यु पश्चात गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक समझते हैं. लोग गंगा घाटों पर पूजा-अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं.

'गंगाजल को अमृत समान माना गया'

पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला कहते हैं गंगाजल को अमृत समान माना गया है. कई पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है. मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान और दर्शन करना महत्त्वपूर्ण माना गया है. गंगा पर कई प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है. गंगा तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है गंगा जी के कई भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम और गंगा आरती बहुत लोकप्रिय है.

पहली कथा

पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है. गंगा नदी के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक हैं. इसमें एक कथा के अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूंदों से हुआ. वहीं, गंगा के जन्म की कई अन्य कथाएं भी हैं. इसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ.

दूसरी कथा

एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया. एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा, जिसे ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था.

पढ़ें: गंगा सप्तमी विशेष: समय के साथ बदल रहा मां गंगा का स्वरूप

गंगा जयंती की महत्व

पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार बैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी, इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती, वैशाख शुक्ल सप्तमी और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन गंगा दशहरा, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है. पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने कहा कि गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन और स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है. साथ ही समस्त पापों का क्षय होता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है. विधि-विधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है.

प्रयागराज: गंगा जयंती हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है. ऐसी मान्यता है कि वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई. इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. कल्याणी देवी मंदिर के पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार गंगा जयंती पर गंगा जी में स्नान करने से सात्विकता और पुण्यलाभ प्राप्त होता है. वैशाख शुक्ल सप्तमी का दिन संपूर्ण भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में गंगा जन्म की कथा वर्णित है.

गंगा नदी के किनारे बसे कई पवित्र तीर्थस्थल

भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में दर्शाया गया है. कई पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे बसे हुए हैं. गंगा नदी को भारत की नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है. लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा रखते हैं और मृत्यु पश्चात गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक समझते हैं. लोग गंगा घाटों पर पूजा-अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं.

'गंगाजल को अमृत समान माना गया'

पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला कहते हैं गंगाजल को अमृत समान माना गया है. कई पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है. मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान और दर्शन करना महत्त्वपूर्ण माना गया है. गंगा पर कई प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है. गंगा तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है गंगा जी के कई भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम और गंगा आरती बहुत लोकप्रिय है.

पहली कथा

पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार गंगा नदी हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है. गंगा नदी के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक हैं. इसमें एक कथा के अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूंदों से हुआ. वहीं, गंगा के जन्म की कई अन्य कथाएं भी हैं. इसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ.

दूसरी कथा

एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया. एक अन्य कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा, जिसे ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था.

पढ़ें: गंगा सप्तमी विशेष: समय के साथ बदल रहा मां गंगा का स्वरूप

गंगा जयंती की महत्व

पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार बैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी, इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती, वैशाख शुक्ल सप्तमी और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन गंगा दशहरा, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है. पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने कहा कि गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन और स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है. साथ ही समस्त पापों का क्षय होता है. मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है. विधि-विधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है.

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