प्रयागराजः तीर्थराज के संगम तट में लगे आस्था के सबसे बड़े माघ मेले का आकर्षण माने जाने कल्पवास की शुरुआत पौष पूर्णिमा के स्नान से शुरू हो गई. हजारों कल्पवासी यहां आकर एक महीने तक टेंट में रहेंगे. एक माह तक कल्पवासी संयम और त्याग के साथ भगवान की साधना में लीन रहेंगे.
संगम तट पर हजारों कल्पवासीयों का पौष पूर्णिमा स्नान के साथ संकल्प लेकर कल्पवास भी शुरू हो गया. एक महीने तक ये कल्पवासी यहीं रहेंगे.
कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. इसमें कल्पवासी संगम के तट पर डेरा जमाते हैं. पौष पूर्णिमा से आरंभ करने वाले श्रद्धालु को यहां एक महीने तक रहना पड़ता है. इस दौरान वे खुद ही खाना बनाते व खाते हैं. वे दिनभर भगवान के भजन में लीन रहते हैं. यह मनुष्य के लिए अध्यात्म की राह का एक पड़ाव है. इसके जरिए स्वनियंत्रण और आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है.
कल्पवास की शुरुआत के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन होती है. कल्पवासी अपने तम्बू के बाहर जौ का बीज रोपता है. कल्पवास की समाप्ति पर इस पौधे को कल्पवासी अपने साथ ले जाता है जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है.
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ये हैं नियम
कल्पवास के दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आया है वह पर्ण कुटी (झोपड़ी)में रहता है. इस दौरान दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभाव से पूर्ण रहा जाता है.
कड़ाके की सर्दी में रेत पर इन तम्बुओ में कल्पवास करने आई झांसी की रमादासी भी ऐसे ही एक कल्पवासी हैं जो पूरे 6 बरसो से यहा हर साल कल्पवास करने आ रही हैं. कल्पवासी रमा दासी ने बताया कि कल्पवासी एक माह तक संगम की रेती पर बने तंबुओं में रहते हैं. प्रति दिन ब्रह्म मूहूर्त में उठकर गंगा स्नान करते हैं. साथ ही अपने तंबुओं में आकर पूजा-अर्चना और भजन कीर्तन भी करते हैं. इसी के साथ माघ मेले में संतों का प्रवचन सुनने के साथ ही आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी शामिल होते है. इस दौरान उनकी दिनचर्या नियमित और संयमित होती है. लगातार 12 साल तक कल्पवास किया जाता है.
ऐसे ही कल्पवासियों की संगम की रेती पर नियमित दिनचर्या चलती रहती है. साथ ही संगम में कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है और आगे भी इसी तरह लोगों की आस्था बनी रहेगी.
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