प्रयागराज: जिस क्रिकेट के जुनून में दिन रात एक कर पसीना बहाया और ट्रॉफियां जीती, वह क्रिकेट जब दो वक्त की रोटी न दे सका तो प्रयागराज के ललित पाठक ने पेट्रोल पंप पर नौकरी कर ली. जी हां, यह सच्चाई है अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेटर की जो आज मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है. मायूसी ऐसी कि किसी के सामने अपनी पहचान तक उजागर करने से बचता है.
देश में कई बार ऐसी खबरें सामने आती रही हैं जब कोई प्रतिभावान खिलाड़ी गरीबी की जिंदगी जीने पर मजबूर है, जो खिलाड़ी मैदान पर अपना हुनर दिखाते दिखना चाहिए वह घर चलाने के लिए पेट्रोल पंप पर काम करता दिख जाए तो किसी का भी दिल पसीज जाए. प्रयागराज स्थित मीरापुर के ललित पाठक व्हील चेयर क्रिकेट टीम के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है जो आज परिवार चलाने के लिए पेट्रोल पम्प पर काम करने को मजबूर हैं.
हमने जब ललित से बात की तो वह कहते हैं कि पीछले दो वर्षों से आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है, जिससे घर चलाना भी मुश्किल हो गया है. साथ ही एक पैर के दिव्यांग होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. आर्टीफीशियल पैर पर हमने उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि सरकारी महकमे में अर्जी भी लगा चुके हैं लेकिन कई चक्कर लगाने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई. उन्होंने हमें यह भी बताया कि अपने ट्रेंड को चेंज कर पैरा ओलंपिक व्हीलचेयर तलवारबाजी में राष्ट्रीय स्तर पर कंपटीशन फेस किया और उसमें भी ब्राउन मेडल जीता है.
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दरअसल, क्रिकेट के प्रति शुरू से ही लगाव रखने वाले ललित ट्रेन हादसे में दोनों पैर गवा बैठे थे, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. सोशल मीडिया के माध्यम से व्हीलचेयर क्रिकेट को लेकर दिव्यांग कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया (DCCBI) से बात की और अपने प्रदर्शन के दम पर दिव्यांग क्रिकेट इंटरनेशनल में एक ऑलराउंडर क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में अपनी जगह बना ली.
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जिसके बाद इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरुआत करते हुए 2017 मे त्रिकोणीय टूर्नामेंट में नेपाल, भारत और बांग्लादेश 2018 में गोरेगांव स्टेडियम मुंबई, बिलेट्राल सीरीज भारत और बांग्लादेश के साथ साथ और भी कई नेशनल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट में अपना जौहर को दिखाते रहे. वहीं जब हमने खिलाड़ी को आर्टीफीशियल पैर मिलने में हो रही देरी पर जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी नन्द किशोरी याज्ञिक से बात की तो वह कहते हैं कि जिन बच्चों के हाथ पैर नहीं हैं, उन लोगों को आर्टिफिशियल लिम्स भी हमारी सरकार प्रोवाइड कराती है.
उम्मीद मगर बाकी है
ललित कहते हैं कि जब से सोशल मीडिया पर मेरी कहानी लोगों के सामने आई है, मेरी मदद के लिए हाथ बढ़ रहे हैं. मगर मैं किसी तरह की राशि मदद के रूप में नहीं लेना चाहता. मैं चाहता हूं कि यदि मुझे किसी अकादमी या संस्थान में क्रिकेट कोच की नौकरी मिल जाए तो मैं अपने बिखरे हुए सपने को समेट सकूंगा. वह कहते हैं कि क्रिकेट मेरा जुनून था, अब भी है और आगे भी रहेगा.
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