प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर, शाही ईदगाह और जहांनारा मस्जिद विवाद को लेकर सिविल जज सीनियर डिवीजन मथुरा के समक्ष विचाराधीन अर्जियों को तीन माह में निर्णीत करने का निर्देश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित ने भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता आदीश अग्रवाल वअधिवक्ता शशांक सिंह ने बहस की.
इनका कहना है कि कृष्ण जन्मभूमि मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह का निर्माण कराया गया है, जो अवैध है. जमीन अभी भी विराजमान मूर्ति की है. इसके पक्ष में साक्ष्य के लिए शाही ईदगाह परिसर का वैज्ञानिक पुरातात्विक सर्वे कराया जाय. इसी मांग में सिविल जज सीनियर डिवीजन मथुरा की अदालत में अर्जी दी गई है. विपक्षी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस अर्जी पर आपत्ति दाखिल की है.
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14 अप्रैल 2021 में दाखिल अर्जी और आपत्ति पर कोर्ट ने कोई आदेश देने के बजाय लटकाए रखा है. याचिका में दाखिल अर्जी को तय करने का समादेश जारी करने की मांग की गई थी. जिस पर कोर्ट ने अर्जी और आपत्ति का निस्तारण करने का निर्देश दिया है.
याची के वरिष्ठ अधिवक्ता आदीश अग्रवाल ने बताया कि सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा कायम रखने के लिए कानूनी तरीके से विवाद तय करने की कोशिश की जा रही है. जिस प्रकार से राम जन्मभूमि मंदिर विवाद कोर्ट के जरिए तय किया गया. उसी तर्ज पर शाही ईदगाह का सर्वे कराकर सबूतों के आधार पर विवादित जमीन के मालिकाना हक तय किया जाना चाहिए.
मालूम हो कि, मथुरा कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया था. देश की आजादी के समय से ही मंदिर की भूमि पर अवैध कब्जे के खिलाफ आवाज उठाई जाती रही है. विवादित जमीन पर मालिकाना हक साबित करने के लिए सिविल वाद दायर किया गया है.
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का कहना है कि 1991 के कानून के तहत परिसर कि 1947 की स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता. इसके लिए सिविल कोर्ट को मुकद्दमा सुनने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने मुकद्दमे की सुनवाई शुरू की तो ईदगाह पर श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से अर्जी दी गई कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की तर्ज पर सर्वे कराने की मांग में अर्जी दी है, जिसके तीन माह में निस्तारण का निर्देश दिया गया है.
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