प्रयागराज: सनातन धर्म में अश्विन मास के कृष्ण पक्ष का विशेष महत्व होता है. इस पक्ष में मृत पूर्वजों और पितरों के श्राद्ध और तर्पण का विधान है. इसलिए इस पक्ष को पितर पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. पितर पक्ष की प्रत्येक तिथि पर तिथि विशेष के अनुरूप श्राद्ध या तर्पण किया जाता है. इस आधार पर पितर पक्ष की नवमी तिथि पर माताओं, सुहागिन स्त्रियों और आज्ञात महिलाओं के श्राद्ध का विधान है. इस तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है.
मातृ नवमी के श्राद्ध की विधि
पंडित शिप्रा सचदेवा कहती हैं कि नवमी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद वस्त्र पहनने चाहिए. इसके बाद घर की दक्षिण दिशा में एक चौकी रख कर, उस पर आसन बिछाएं. चौकी पर मृत परिजन की तस्वीर या फोटो रखें अगर फोटो न हो तो सुपारी भी रख कर माला, फूल चढ़ाएं और उनके समीप काले तिल का दीपक और घूप बत्ती जला दें. तस्वीर पर गंगा जल और तुलसी दल अर्पित करें और भागवत गीता का पाठ करें. पाठ करने के बाद श्राद्ध के उपयुक्त भोजन बना कर घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखें. गाय, कौआ, कुत्ता तथा ब्राह्मण के लिए भी भोजन अवश्य निकालें. अपने मृत परिजन को याद करते हुए अपनी भूल के लिए क्षमा मांगे और यथा शक्ति दान अवश्य दें.
कैसे करें पितरों को याद
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें. यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है. जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है. जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है. उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है. इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं.
पितृ पक्ष का महत्व
मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनकी कृपा से जीवन में आने वाली कई रुकावटें दूर हो जाती हैं.