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यूपी के प्रयागराज में बसते हैं गुजरातियों के कुल देवता - हाटकेश्वर मंदिर का इतिहास

प्रयागराज के शिव मंदिरों में जीरो रोड चौराहे के पास स्थित हाटकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर अपने आप में बेहद खास है. मंदिर से जुड़ी एक अनूठी परंपरा यह है कि यहां पुरूष भक्त पैंट या पायजामा पहनकर पूजन नहीं कर सकते. सावन और महाशिवरात्रि के समय मंदिर में पूजन-अर्चन के लिए शहर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा के भक्त यहां आते हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Mar 10, 2021, 10:29 PM IST

प्रयागराज: संगम नगरी में भगवान शिव का एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां पुरुषों को पैंट-शर्ट और कुर्ता-पायजामा पहनकर रुद्राभिषेक करना पूरी तरह वर्जित है. हम बात कर रहे हैं, हाटकेश्वर मंदिर की. प्रधानमंत्री समेत गुजरात के कई लोग हाटकेश्वरनाथ को कुल देवता के रूप में पूजते हैं. हाटकेश्वरनाथ की पूजा करने के लिए पुरुषों को धोती-लुंगी पहनना अनिवार्य है. हाटकेश्वरनाथ मंदिर में पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. पढ़िये ये खास रिपोर्ट..

स्पेशल रिपोर्ट.

देश के कोने-कोने से आते हैं लोग

सावन और महाशिवरात्रि के समय मंदिर में पूजन-अर्चन के लिए शहर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा के भक्त आते हैं. सावन में हर सोमवार को शिवलिंग का बहुरंगी पुष्पों से भव्य शृंगार और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. सैकड़ों साल पुराने इस दक्षिण भारतीय मंदिर में पूजन-अर्चन से जुड़ी रोचक परंपराएं आज भी कायम हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नागर ब्राह्मण समेत गुजरात के अन्य लोगों के कुल देवता के रूप में हाटकेश्वर शिवलिंग पूजे जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि हाटकेश्‍वर महादेव की पूजन-अर्चन से भक्त को सोने-चांदी की कमी नहीं रहती है.

महाशिवरात्रि के मौके पर होती है विशेष पूजा

मन्दिर के पुजारी पंडित हरिश्चन्द्र चंद्र तिवारी कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन हाटकेश्वर महादेव के मंदिर में भगवान भोले शंकर का रुद्राभिषेक होता है. शिवजी का बहुत ही भव्य तरीके से श्रृंगार किया जाता है. भक्तों का तांता लगा रहता है, भीड़ बहुत हो जाती है. उन्होंने कहा कि वो पल ऐतिहासिक पल हो जाता है, जिसमें मंदिर में मौजूद सभी श्रद्धालु आस्था में सराबोर रहते हैं.

गुजरात के ब्राह्मणों ने किया था स्थापित

प्राचीन धर्मग्रंथों एवं मान्यताओं के अुनसार, इस हाटकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने कराया था. बाद में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि के समय मंदिर में पूजन-अर्चन के लिए शहर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा के भक्त आते हैं. सोमवार को शिवलिंग का बहुरंगी पुष्पों से भव्य शृंगार और धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है. सैकड़ों साल पुराने इस दक्षिण भारतीय मंदिर में पूजन-अर्चन से जुड़ी रोचक परंपराएं आज भी कायम हैं.

पाताल लोक के स्वामी हैं हाटकेश्वर महादेव

ऐसी मान्यता है कि पाताल लोक में हाटकी नदी के समीप एक शिव मंदिर था. उसी के नाम से इनका नाम हाटकेश्वर महादेव पड़ा. हाटकेश्वर का अर्थ स्वर्ण होता है. अर्थात् पृथ्वी के अंदर मौजूद बहुमूल्य रत्नों के स्वामी हाटकेश्वर महादेव हैं.

इस मंदिर में नहीं लगता अन्न का भोग

मंदिर के पुजारी कहते हैं कि हाटकेश्वर महादेव मंदिर में केवल फल का ही भोग लगाया जा सकता है, क्योंकि हाटकेश्वर महादेव को फल ही पंसद है. यहां अन्न से बने किसी तरह के प्रसाद का भोग लगाना पूर्णतया वर्जित है. मंदिर की स्थापना से ही इस परंपरा का पालन किया जाता है. प्राचीन हाटकेश्वर महादेव के मंदिर में जज, नेता, वकील सभी भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं. योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री व शहर दक्षिणी से विधायक नंद गोपाल गुप्ता नंदी अपनी पत्नी महापौर अभिलाषा गुप्ता के साथ चुनाव जीतने के बाद भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आए थे. मंदिर के पुजारी मानते हैं कि पूजन-अर्चन से भक्त को सोने चांदी की कमी नहीं रहती है. मान्यता है कि यहां एकादशनी रुद्राभिषेक करने से मनोवांक्षित स्वर्णाभूषण की प्राप्ति होती है.

चांदी के अर्घा में स्थापित है शिवलिंग

पुजारी के अनुसार, मंदिर के बीच में हाटकेश्वर महादेव चांदी के अर्घा में स्थापित हैं. यह अर्घा पार्वती का स्वरूप माना जाता है. महादेव की पूजा करने से भक्तों को शिव-पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है. अर्घा के सामने नंदी भगवान विराजमान हैं. नंदी के पास में गणेश, पार्वती, कार्तिकेय और सूर्य भगवान विराजमान हैं. मंदिर के चारों कोनों पर हनुमान जी, दुर्गा जी और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां स्थापित हैं.

दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार होता है पूजा अर्चना

हाटकेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित हरिश्चन्द्र तिवारी ने कहा कि यहां पर दक्षिण भारतीय-परपंरा के अनुसार पूजन-अर्चन की परंपरा है. रुद्राभिषेक और शृंगार से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. श्रद्धा के साथ महादेव की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकमानाएं पूरी होती हैं. भगवान भोले के भक्त रत्नेश तिवारी लगभग 10 वर्षों से इस मंदिर में आ रहे हैं. मंदिर के नियम के अनुसार, पूजन करते समय धोती पहनना होता है. लगभग जबसे मंदिर स्थापित है, तभी से यह परंपरा चली आ रही है. इस मंदिर में खास बात यह है कि भगवान शिव पूजन केवल सुबह के समय ही की जाती है. शाम को जो पूजा होती है, उसे केवल पंडित जी करते हैं, दूसरा अन्य कोई व्यक्ति नहीं कर सकता.

संगम नगरी में हर प्रांत का ब्राह्मण मौजूद है

हाटकेश्वर मंदिर के मैनेजिंग कमेटी के मेंबर बाबा अभय अवस्थी ने बताया कि संगम नगरी में गंगा स्नान का पूजा पाठ कराने के लिए हर प्रांत का ब्राह्मण आता है. दक्षिण भारतीय, केरल, तमिलनाडु के लोग जब अपने कुनबे के साथ चलते हैं तो अपने कुलदेवता को साथ लेकर चलते हैं. इसी तरीके से लगभग सवा सौ साल पहले गुजरात के नागर ब्राह्मण द्वारा यह मंदिर स्थापित की गई.

शहर के बीचों-बीच जीरो रोड पर स्थित है मंदिर

बाबा अभय अवस्थी ने बताया कि जब मंदिर बंद रहता है तो यहां पर शिव भक्तों के खिड़की दर्शन का बहुत महत्व है. यह मंदिर शहर के बीचों-बीच जीरो रोड पर स्थित है. उन्होंने बताया कि शिवरात्रि पर ऐसा भी आयोजन शायद ही कहीं होता होगा, जहां भक्त बहुत दूर-दूर से आते हैं. इस मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान बनती जा रही है. यहां पर व्यापारीगण इस मंदिर के दर्शन के बिना कोई भी व्यापार नहीं करते और शाम को आकर फिर हाटकेश्वर महादेव का आशीर्वाद लेकर ही अपने घर लौटते हैं.

प्रयागराज: संगम नगरी में भगवान शिव का एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां पुरुषों को पैंट-शर्ट और कुर्ता-पायजामा पहनकर रुद्राभिषेक करना पूरी तरह वर्जित है. हम बात कर रहे हैं, हाटकेश्वर मंदिर की. प्रधानमंत्री समेत गुजरात के कई लोग हाटकेश्वरनाथ को कुल देवता के रूप में पूजते हैं. हाटकेश्वरनाथ की पूजा करने के लिए पुरुषों को धोती-लुंगी पहनना अनिवार्य है. हाटकेश्वरनाथ मंदिर में पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. पढ़िये ये खास रिपोर्ट..

स्पेशल रिपोर्ट.

देश के कोने-कोने से आते हैं लोग

सावन और महाशिवरात्रि के समय मंदिर में पूजन-अर्चन के लिए शहर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा के भक्त आते हैं. सावन में हर सोमवार को शिवलिंग का बहुरंगी पुष्पों से भव्य शृंगार और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. सैकड़ों साल पुराने इस दक्षिण भारतीय मंदिर में पूजन-अर्चन से जुड़ी रोचक परंपराएं आज भी कायम हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नागर ब्राह्मण समेत गुजरात के अन्य लोगों के कुल देवता के रूप में हाटकेश्वर शिवलिंग पूजे जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि हाटकेश्‍वर महादेव की पूजन-अर्चन से भक्त को सोने-चांदी की कमी नहीं रहती है.

महाशिवरात्रि के मौके पर होती है विशेष पूजा

मन्दिर के पुजारी पंडित हरिश्चन्द्र चंद्र तिवारी कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन हाटकेश्वर महादेव के मंदिर में भगवान भोले शंकर का रुद्राभिषेक होता है. शिवजी का बहुत ही भव्य तरीके से श्रृंगार किया जाता है. भक्तों का तांता लगा रहता है, भीड़ बहुत हो जाती है. उन्होंने कहा कि वो पल ऐतिहासिक पल हो जाता है, जिसमें मंदिर में मौजूद सभी श्रद्धालु आस्था में सराबोर रहते हैं.

गुजरात के ब्राह्मणों ने किया था स्थापित

प्राचीन धर्मग्रंथों एवं मान्यताओं के अुनसार, इस हाटकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना गुजरात के नागर ब्राह्मणों ने कराया था. बाद में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि के समय मंदिर में पूजन-अर्चन के लिए शहर के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा के भक्त आते हैं. सोमवार को शिवलिंग का बहुरंगी पुष्पों से भव्य शृंगार और धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है. सैकड़ों साल पुराने इस दक्षिण भारतीय मंदिर में पूजन-अर्चन से जुड़ी रोचक परंपराएं आज भी कायम हैं.

पाताल लोक के स्वामी हैं हाटकेश्वर महादेव

ऐसी मान्यता है कि पाताल लोक में हाटकी नदी के समीप एक शिव मंदिर था. उसी के नाम से इनका नाम हाटकेश्वर महादेव पड़ा. हाटकेश्वर का अर्थ स्वर्ण होता है. अर्थात् पृथ्वी के अंदर मौजूद बहुमूल्य रत्नों के स्वामी हाटकेश्वर महादेव हैं.

इस मंदिर में नहीं लगता अन्न का भोग

मंदिर के पुजारी कहते हैं कि हाटकेश्वर महादेव मंदिर में केवल फल का ही भोग लगाया जा सकता है, क्योंकि हाटकेश्वर महादेव को फल ही पंसद है. यहां अन्न से बने किसी तरह के प्रसाद का भोग लगाना पूर्णतया वर्जित है. मंदिर की स्थापना से ही इस परंपरा का पालन किया जाता है. प्राचीन हाटकेश्वर महादेव के मंदिर में जज, नेता, वकील सभी भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आते हैं. योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री व शहर दक्षिणी से विधायक नंद गोपाल गुप्ता नंदी अपनी पत्नी महापौर अभिलाषा गुप्ता के साथ चुनाव जीतने के बाद भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आए थे. मंदिर के पुजारी मानते हैं कि पूजन-अर्चन से भक्त को सोने चांदी की कमी नहीं रहती है. मान्यता है कि यहां एकादशनी रुद्राभिषेक करने से मनोवांक्षित स्वर्णाभूषण की प्राप्ति होती है.

चांदी के अर्घा में स्थापित है शिवलिंग

पुजारी के अनुसार, मंदिर के बीच में हाटकेश्वर महादेव चांदी के अर्घा में स्थापित हैं. यह अर्घा पार्वती का स्वरूप माना जाता है. महादेव की पूजा करने से भक्तों को शिव-पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है. अर्घा के सामने नंदी भगवान विराजमान हैं. नंदी के पास में गणेश, पार्वती, कार्तिकेय और सूर्य भगवान विराजमान हैं. मंदिर के चारों कोनों पर हनुमान जी, दुर्गा जी और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां स्थापित हैं.

दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार होता है पूजा अर्चना

हाटकेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित हरिश्चन्द्र तिवारी ने कहा कि यहां पर दक्षिण भारतीय-परपंरा के अनुसार पूजन-अर्चन की परंपरा है. रुद्राभिषेक और शृंगार से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं. श्रद्धा के साथ महादेव की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकमानाएं पूरी होती हैं. भगवान भोले के भक्त रत्नेश तिवारी लगभग 10 वर्षों से इस मंदिर में आ रहे हैं. मंदिर के नियम के अनुसार, पूजन करते समय धोती पहनना होता है. लगभग जबसे मंदिर स्थापित है, तभी से यह परंपरा चली आ रही है. इस मंदिर में खास बात यह है कि भगवान शिव पूजन केवल सुबह के समय ही की जाती है. शाम को जो पूजा होती है, उसे केवल पंडित जी करते हैं, दूसरा अन्य कोई व्यक्ति नहीं कर सकता.

संगम नगरी में हर प्रांत का ब्राह्मण मौजूद है

हाटकेश्वर मंदिर के मैनेजिंग कमेटी के मेंबर बाबा अभय अवस्थी ने बताया कि संगम नगरी में गंगा स्नान का पूजा पाठ कराने के लिए हर प्रांत का ब्राह्मण आता है. दक्षिण भारतीय, केरल, तमिलनाडु के लोग जब अपने कुनबे के साथ चलते हैं तो अपने कुलदेवता को साथ लेकर चलते हैं. इसी तरीके से लगभग सवा सौ साल पहले गुजरात के नागर ब्राह्मण द्वारा यह मंदिर स्थापित की गई.

शहर के बीचों-बीच जीरो रोड पर स्थित है मंदिर

बाबा अभय अवस्थी ने बताया कि जब मंदिर बंद रहता है तो यहां पर शिव भक्तों के खिड़की दर्शन का बहुत महत्व है. यह मंदिर शहर के बीचों-बीच जीरो रोड पर स्थित है. उन्होंने बताया कि शिवरात्रि पर ऐसा भी आयोजन शायद ही कहीं होता होगा, जहां भक्त बहुत दूर-दूर से आते हैं. इस मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान बनती जा रही है. यहां पर व्यापारीगण इस मंदिर के दर्शन के बिना कोई भी व्यापार नहीं करते और शाम को आकर फिर हाटकेश्वर महादेव का आशीर्वाद लेकर ही अपने घर लौटते हैं.

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