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प्रयागराज का ऐतिहासिक नीम का पेड़, आजादी के दीवानों का बना गवाह - प्रयागराज की ख़बर

विश्वभर में गंगा जमुनी तहजीब की पहचान रखने वाला प्रयागराज आजादी की लड़ाई का भी साक्षी रहा है. प्रयागराज के पुराने शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले चौक इलाके के नीम के पेड़ के पास से गुजरते ही जंग-ए-आजादी की याद बरबस ही आ जाती है.

जंग-ए-आजादी की याद...
जंग-ए-आजादी की याद...
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Published : Sep 20, 2021, 4:50 PM IST

प्रयागराजः ये जिला जंग-ए-आजादी की सबसे संघर्षशील यादों को अपने में सजोये हैं. प्रयागराज के पुराने शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले चौक इलाके के नीम के पेड़ के पास से गुजरते ही जंग-ए-आजादी की याद ताजा हो जाती है. नीम का पेड़ देशभक्तों के लिए तीर्थ से कुछ कम नहीं है. इसका प्रत्यक्ष गवाह है ये नीम का पेड़. 1857 के गदर के दौरान इसी नीम के पेड़ की डालों पर अंग्रेज हुक्मरानों ने 8 सौ से अधिक आजादी के दीवानों को नीम के पेड़ से फांसी पर लटकाया गया था.

पेड़ पर लटका कर आजादी के दीवानों पर खौफ जमाने का प्रयास हुआ था. देश की आजादी के निशान सिर्फ दस्तावेज पर ही मिलते हैं ऐसा नहीं है. शहर प्रयागराज में कुछ ऐसे दरख्त भी हैं, जिनकी जड़ों से लेकर शाखाओं तक में आजादी की खुशबू मौजूद है. ऐसा ही कुछ दरख्त है प्रयागराज के चौक स्थित ऐतिहासिक नीम के पेड़ की. अंग्रेजों के खिलाफ गदर का ये नीम का पेड़ सबसे बड़ा गवाह रहा है. चौक इलाके में नीम का यह पेड़ देश प्रेमियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है. इसकी डालों पर अंग्रेज हुक्मरानों ने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को फांसी पर लटका दिया था. यह स्वाधीनता आंदोलन की यादें ताजा करता है. भले ही आज के दौर में नीम के इस एतिहासिक पेड़ के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हों, लेकिन यह भी बेहद अहम बात है कि जो भी पुराने लोग हैं. वो इसके बारे में नई पौध को बताते रहते हैं और उनका उत्साह बढ़ाते रहते हैं. सच तो यह है कि चौक में नीम का पेड़ अंग्रेज शासन के अत्याचार को बयां करता सीना तानकर खड़ा है.

प्रयागराज का ऐतिहासिक नीम का पेड़
जांबाजों को सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई

1857 में ऐतिहासिक नीम के पेड़ के पास छह और पेड़ थे. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग लडने वाले भारतीय जांबाजों को एक नहीं, सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई. आजादी के बाद किसी ने ऐतिहासिक पेड़ों का महत्व नहीं समझा. तब से एक-एक कर पेड़ धराशायी होते रहे और जमीनों पर कब्जा होता रहा. सात पेड़ों के समूह में अब एक नीम का पेड़ बचा है.

आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह

ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग भी बना इतिहास

ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने कभी शेरशाह सूरी मार्ग था. शेरशाह सूरी मार्ग लाहौर से शुरू होकर कोलकाता तक जाता था. जिसे यात्री और व्यापारियों के व्यापार के लिए मार्ग बनाया था. हालांकि बाद में इसे जीटी रोड कर दिया गया. अब ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने शेरशाह सूरी मार्ग की जगह जीटी रोड हो गया है.

आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह
अंग्रेजों के जुल्म के साक्षी ऐतिहासिक नीम के पेड़ के चारों ओर दुकानों का झुंड है. पेड़ अब कमजोर हो रहा है. कभी पेड़ की डालियां दूर तक फैली थीं. इसके आसपास से गुजरने वाले मन ही मन में 1857 का गदर याद कर लेते हैं.
आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह
वहीं अभय अवस्थी का कहना है कि यह प्रयागराज का शहीद स्थल सबसे बड़ा बलिदान का तीर्थ स्थल है. इसके साथ ही ये भी बताया कि पहले शेरशाह सूरी मार्ग हुआ करता था. जिसे बाद में अंग्रेजों ने जीटी रोड कर दिया. उसी रोड के किनारे सात नीम के पेड़ पर 800 से ज्यादा लोगों को लटका दिया गया था. साथ ही यह भी बताया कि अंग्रेजों ने उन पेड़ों को कटवा दिया दिया था. लेकिन आजादी के बाद एक प्रतीक के रूप में पुराने नेताओं ने पेड़ लगाया था. आज वही पेड़ के चारों तरफ दुकान है. चौक बाजार हो गया है. साथ ही वो जब भी इस स्थल से गुजरते हैं, तो उनका सिर अपने आप उन शहीदों को नमन करने के लिए झुक जाता है.
आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह

इसे भी पढ़ें- एक्सक्लूसिव: पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के नाम पर उठाया सवाल

सचिन पाण्डेय का कहना है कि. मैं जब भी इधर से गुजरता हूं, तो मुझे आत्मबल मिलता है. साथ ही साथ यह भी बताया कि उन्होंने अपने बड़े बुजुर्गों से सुना था कि नीम के पेड़ पर सैकड़ों लोगों को शहीद कर दिया गया था और वह लोग खुशी-खुशी अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ गए थे. युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि ये सबसे शहीद स्थल है. जिसे ऐतिहासिक नीम का पेड़ भी कहा जाता है. वह इस ऐतिहासिक नीम के पेड़ के बारे में जाने और जैसे मैं करता हूं, जब भी इधर से गुजरता तो श्रद्धा से नमन करता हूं.

प्रयागराजः ये जिला जंग-ए-आजादी की सबसे संघर्षशील यादों को अपने में सजोये हैं. प्रयागराज के पुराने शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले चौक इलाके के नीम के पेड़ के पास से गुजरते ही जंग-ए-आजादी की याद ताजा हो जाती है. नीम का पेड़ देशभक्तों के लिए तीर्थ से कुछ कम नहीं है. इसका प्रत्यक्ष गवाह है ये नीम का पेड़. 1857 के गदर के दौरान इसी नीम के पेड़ की डालों पर अंग्रेज हुक्मरानों ने 8 सौ से अधिक आजादी के दीवानों को नीम के पेड़ से फांसी पर लटकाया गया था.

पेड़ पर लटका कर आजादी के दीवानों पर खौफ जमाने का प्रयास हुआ था. देश की आजादी के निशान सिर्फ दस्तावेज पर ही मिलते हैं ऐसा नहीं है. शहर प्रयागराज में कुछ ऐसे दरख्त भी हैं, जिनकी जड़ों से लेकर शाखाओं तक में आजादी की खुशबू मौजूद है. ऐसा ही कुछ दरख्त है प्रयागराज के चौक स्थित ऐतिहासिक नीम के पेड़ की. अंग्रेजों के खिलाफ गदर का ये नीम का पेड़ सबसे बड़ा गवाह रहा है. चौक इलाके में नीम का यह पेड़ देश प्रेमियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है. इसकी डालों पर अंग्रेज हुक्मरानों ने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को फांसी पर लटका दिया था. यह स्वाधीनता आंदोलन की यादें ताजा करता है. भले ही आज के दौर में नीम के इस एतिहासिक पेड़ के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हों, लेकिन यह भी बेहद अहम बात है कि जो भी पुराने लोग हैं. वो इसके बारे में नई पौध को बताते रहते हैं और उनका उत्साह बढ़ाते रहते हैं. सच तो यह है कि चौक में नीम का पेड़ अंग्रेज शासन के अत्याचार को बयां करता सीना तानकर खड़ा है.

प्रयागराज का ऐतिहासिक नीम का पेड़
जांबाजों को सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई

1857 में ऐतिहासिक नीम के पेड़ के पास छह और पेड़ थे. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग लडने वाले भारतीय जांबाजों को एक नहीं, सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई. आजादी के बाद किसी ने ऐतिहासिक पेड़ों का महत्व नहीं समझा. तब से एक-एक कर पेड़ धराशायी होते रहे और जमीनों पर कब्जा होता रहा. सात पेड़ों के समूह में अब एक नीम का पेड़ बचा है.

आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह

ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग भी बना इतिहास

ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने कभी शेरशाह सूरी मार्ग था. शेरशाह सूरी मार्ग लाहौर से शुरू होकर कोलकाता तक जाता था. जिसे यात्री और व्यापारियों के व्यापार के लिए मार्ग बनाया था. हालांकि बाद में इसे जीटी रोड कर दिया गया. अब ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने शेरशाह सूरी मार्ग की जगह जीटी रोड हो गया है.

आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह
अंग्रेजों के जुल्म के साक्षी ऐतिहासिक नीम के पेड़ के चारों ओर दुकानों का झुंड है. पेड़ अब कमजोर हो रहा है. कभी पेड़ की डालियां दूर तक फैली थीं. इसके आसपास से गुजरने वाले मन ही मन में 1857 का गदर याद कर लेते हैं.
आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह
वहीं अभय अवस्थी का कहना है कि यह प्रयागराज का शहीद स्थल सबसे बड़ा बलिदान का तीर्थ स्थल है. इसके साथ ही ये भी बताया कि पहले शेरशाह सूरी मार्ग हुआ करता था. जिसे बाद में अंग्रेजों ने जीटी रोड कर दिया. उसी रोड के किनारे सात नीम के पेड़ पर 800 से ज्यादा लोगों को लटका दिया गया था. साथ ही यह भी बताया कि अंग्रेजों ने उन पेड़ों को कटवा दिया दिया था. लेकिन आजादी के बाद एक प्रतीक के रूप में पुराने नेताओं ने पेड़ लगाया था. आज वही पेड़ के चारों तरफ दुकान है. चौक बाजार हो गया है. साथ ही वो जब भी इस स्थल से गुजरते हैं, तो उनका सिर अपने आप उन शहीदों को नमन करने के लिए झुक जाता है.
आजादी के दीवानों का बना गवाह
आजादी के दीवानों का बना गवाह

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सचिन पाण्डेय का कहना है कि. मैं जब भी इधर से गुजरता हूं, तो मुझे आत्मबल मिलता है. साथ ही साथ यह भी बताया कि उन्होंने अपने बड़े बुजुर्गों से सुना था कि नीम के पेड़ पर सैकड़ों लोगों को शहीद कर दिया गया था और वह लोग खुशी-खुशी अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ गए थे. युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि ये सबसे शहीद स्थल है. जिसे ऐतिहासिक नीम का पेड़ भी कहा जाता है. वह इस ऐतिहासिक नीम के पेड़ के बारे में जाने और जैसे मैं करता हूं, जब भी इधर से गुजरता तो श्रद्धा से नमन करता हूं.

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