प्रयागराजः ये जिला जंग-ए-आजादी की सबसे संघर्षशील यादों को अपने में सजोये हैं. प्रयागराज के पुराने शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले चौक इलाके के नीम के पेड़ के पास से गुजरते ही जंग-ए-आजादी की याद ताजा हो जाती है. नीम का पेड़ देशभक्तों के लिए तीर्थ से कुछ कम नहीं है. इसका प्रत्यक्ष गवाह है ये नीम का पेड़. 1857 के गदर के दौरान इसी नीम के पेड़ की डालों पर अंग्रेज हुक्मरानों ने 8 सौ से अधिक आजादी के दीवानों को नीम के पेड़ से फांसी पर लटकाया गया था.
पेड़ पर लटका कर आजादी के दीवानों पर खौफ जमाने का प्रयास हुआ था. देश की आजादी के निशान सिर्फ दस्तावेज पर ही मिलते हैं ऐसा नहीं है. शहर प्रयागराज में कुछ ऐसे दरख्त भी हैं, जिनकी जड़ों से लेकर शाखाओं तक में आजादी की खुशबू मौजूद है. ऐसा ही कुछ दरख्त है प्रयागराज के चौक स्थित ऐतिहासिक नीम के पेड़ की. अंग्रेजों के खिलाफ गदर का ये नीम का पेड़ सबसे बड़ा गवाह रहा है. चौक इलाके में नीम का यह पेड़ देश प्रेमियों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है. इसकी डालों पर अंग्रेज हुक्मरानों ने सैकड़ों निर्दोष हिंदुस्तानियों को फांसी पर लटका दिया था. यह स्वाधीनता आंदोलन की यादें ताजा करता है. भले ही आज के दौर में नीम के इस एतिहासिक पेड़ के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हों, लेकिन यह भी बेहद अहम बात है कि जो भी पुराने लोग हैं. वो इसके बारे में नई पौध को बताते रहते हैं और उनका उत्साह बढ़ाते रहते हैं. सच तो यह है कि चौक में नीम का पेड़ अंग्रेज शासन के अत्याचार को बयां करता सीना तानकर खड़ा है.
1857 में ऐतिहासिक नीम के पेड़ के पास छह और पेड़ थे. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग लडने वाले भारतीय जांबाजों को एक नहीं, सात नीम के पेड़ों पर फांसी दी गई. आजादी के बाद किसी ने ऐतिहासिक पेड़ों का महत्व नहीं समझा. तब से एक-एक कर पेड़ धराशायी होते रहे और जमीनों पर कब्जा होता रहा. सात पेड़ों के समूह में अब एक नीम का पेड़ बचा है.
ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग भी बना इतिहास
ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने कभी शेरशाह सूरी मार्ग था. शेरशाह सूरी मार्ग लाहौर से शुरू होकर कोलकाता तक जाता था. जिसे यात्री और व्यापारियों के व्यापार के लिए मार्ग बनाया था. हालांकि बाद में इसे जीटी रोड कर दिया गया. अब ऐतिहासिक नीम के पेड़ के सामने शेरशाह सूरी मार्ग की जगह जीटी रोड हो गया है.
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सचिन पाण्डेय का कहना है कि. मैं जब भी इधर से गुजरता हूं, तो मुझे आत्मबल मिलता है. साथ ही साथ यह भी बताया कि उन्होंने अपने बड़े बुजुर्गों से सुना था कि नीम के पेड़ पर सैकड़ों लोगों को शहीद कर दिया गया था और वह लोग खुशी-खुशी अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ गए थे. युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि ये सबसे शहीद स्थल है. जिसे ऐतिहासिक नीम का पेड़ भी कहा जाता है. वह इस ऐतिहासिक नीम के पेड़ के बारे में जाने और जैसे मैं करता हूं, जब भी इधर से गुजरता तो श्रद्धा से नमन करता हूं.