प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि बार एसोसिएशन चुनाव के कारण अदालती कामकाज नहीं रोका जा सकता. कोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशन एक पंजीकृत सोसायटी है. अदालती कामकाज में बाधा डालने और उसके संप्रभु कार्यों के निर्वहन में हस्तक्षेप करने के लिए उसकी स्थापना नहीं की गई है. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मुजफ्फरनगर की रजनी की याचिका को खारिज करते हुए की है.
याची ने फास्ट ट्रैक कोर्ट मुजफ्फरनगर के आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल कर दीवानी मुकदमे में दो आदेशों को वापस लेने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमे की सुनवाई में देरी से बचने के हर संभव प्रयास किए गए हैं. 8 जनवरी 2021 को हलफनामे पर वादी के साक्ष्य को स्वीकार कर लिया गया था और गवाह से जिरह के लिए तिथि निर्धारित की गई थी. कोर्ट ने पाया कि 28 जनवरी 2021 से 26 अक्टूबर 2021 के बीच 18 तारीखें तय की गईं. लेकिन किसी न किसी कारण से प्रतिवादी ने गवाह से जिरह नहीं की.
ट्रायल कोर्ट द्वारा पहले की तारीखों में पारित आदेशों द्वारा प्रतिवादी को पर्याप्त अवसर दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बार के प्रस्ताव अपने सदस्यों को न्यायिक कार्य से विरत रखने के है. जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत गैरकानूनी हैं. कोर्ट ने देखा, कुछ तारीखों पर कोई भी बहस के लिए उपस्थित हीं नहीं हुआ. वजह यह थी कि बार एसोसिएशन चुनाव के कारण अधिवक्ताओं ने न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया था. इस पर कोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशन चुनाव न्यायालयों के कामकाज बाधित नहीं कर सकते हैं.