प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के शवदाह स्थलों की दशा सुधारने का राज्य सरकार को निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि प्रदेश एक ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था है, लेकिन शवदाह स्थलों पर मूलभूत सुविधाएं तक न होना दुर्भाग्यपूर्ण है.
राजेंद्र कुमार बाजपेई की याचिका पर न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने कहा कि कोविड 19 के समय शवदाह स्थलों की अव्यवस्था का भयावह मंजर दिखा. वही दयनीय स्थिति आज भी है. शवदाह स्थलों पर मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. कोर्ट ने सरकार को शवदाह स्थलों की दशा सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 18 जनवरी नियत करते हुए राज्य सरकार को आदेश से अवगत कराने के लिए कहा है.
कोर्ट के 20 नवंबर के आदेश पर सचिव नगर विकास विभाग ने विस्तृत हलफनामा दाखिल कर जानकारी दी. डीएम कानपुर नगर ने भी हलफनामा दाखिल कर बताया कि एसडीएम सदर के मौका मुआयना के बाद शवदाह गृह में सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. नगर निकायों को विद्युत शवदाह गृहों के रखरखाव व विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है. वर्ष 2018-19 में 42.62 लाख रुपये प्रत्येक नगर पालिका परिषद और 28.79 लाख रुपये प्रत्येक नगर पंचायत को बजट दिया गया है. जिससे शवदाह गृहों पर पानी, बिजली, पार्किंग शेड आदि व्यवस्था की जानी है.
अपर महाधिवक्ता ने बताया कि नगर पालिका अधिनयम की धारा 114(20) के तहत शवदाह गृहों के रखरखाव और विकास की जिम्मेदारी स्वायत्त स्थानीय निकायों की है. ग्रामीण क्षेत्रों की जिम्मेदारी पंचायत राज विभाग की है, जिस पर नगर विकास विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है. कोर्ट ने दोनों विभागों के अपर मुख्य सचिवों को याचिका में पक्षकार बनाते हुए कृत कार्रवाई की जानकारी मांगी है.
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