प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि पुलिस द्वारा किसी केस की विवेचना पूरी कर ली जाती है. मजिस्ट्रेट के समक्ष चार्जशीट दाखिल कर देने के बाद मजिस्ट्रेट की अनुमति बगैर दोबारा उसी केस की विवेचना करना गलत है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस का यह कार्य कानून में प्राप्त शक्ति का दुरूपयोग है. यह निर्णय जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अन्तर्गत दाखिल अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है.
कोर्ट ने पुलिस द्वारा दोबारा जांच कर दाखिल चार्जशीट और इसके आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा जारी तलबी आदेश को भी रद्द कर दिया है. मामले के अनुसार विपक्षी उमाशंकर कुशवाहा ने एक मुकदमा याची दारोगा व कई अन्य के खिलाफ देवरिया के थाना बनकटा में इस बात का दर्ज कराया कि उसका सेहन कब्जा करने के लिए विपक्षी आए और उसकी पत्नी व दो बेटियों को भाला, लाठी, डंडा, फरसा से घायल कर दिया. छप्पर में आग लगा दी और जान से मारने की धमकी दी.
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पुलिस ने जांच कर प्रत्यक्षदर्शियों के बयान को आधार बनाकर चार्जशीट धारा 147, 323,504,506 में मजिस्ट्रेट के समक्ष दाखिल कर दिया. याची आरोपियों ने तलब होने के बाद हाजिर होकर जमानत भी करा ली. इतनी कार्रवाई हो जाने के बाद विपक्षी ने एक अर्जी एसपी देवरिया को दी कि इस केस की विवेचना थाना बनकटा से हटाकर पुनः जांच के लिए दूसरे थाना सलेमपुर को भेजा जाए. एसपी ने उस अर्जी पर वैसा ही आदेश कर दिया. पुलिस ने दोबारा जांच की और चार्जशीट धारा 147, 149, 323, 452 ,435, 504 व 506 आईपीसी के अन्तर्गत दाखिल कर दिया.
मजिस्ट्रेट ने नया केस रजिस्टर कर याचीगण को तलब कर लिया, जबकि याचीगण प्रथम चार्जशीट के आधार पर जमानत करा ट्रायल फेस कर रहे थे. अर्जी दायर कर मजिस्ट्रेट के समक्ष दाखिल चार्जशीट व तलबी आदेशों को हाईकोर्ट में विभिन्न आधार पर चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि पहले ही चार्जशीट दाखिल हो चुकी थी, जिसके आधार पर केस का ट्रायल भी शुरू हो गया है. ऐसे में बिना जुडिशियल मजिस्ट्रेट की अनुमति दोबारा पुलिस को जांच का आदेश देना शक्ति का दुरूपयोग है.