प्रयागराज: अनुकंपा नियुक्ति के एक मामले में हाई कोर्ट में तलब डीआईओएस जौनपुर तक कोर्ट का आदेश नहीं पहुंचने के मामले को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं. कोर्ट ने मुख्य स्थाई अधिवक्ता जे एन मौर्या से कहा है कि इस बात की जांच करें कि हाईकोर्ट का आदेश मुख्य स्थाई अधिवक्ता कार्यालय से कब भेजा गया और किसे प्राप्त हुआ. कोर्ट ने कहा कि यदि जरूरी हो तो वह जिला अधिकारी कार्यालय जौनपुर व डीआईओएस कार्यालय जौनपुर की भी जांच करें.
यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह ने अंकिता श्रीवास्तव की याचिका पर बुधवार को दिया. कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर जवाब के लिए समय देते हुए कहा था कि जवाब न दाखिल होने पर डीआईओएस स्वयं उपस्थित रहें. कोर्ट के आदेश पर डीआईओएस जौनपुर अदालत में हाजिर हुए. पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने 2 जुलाई 2022 को जौनपुर कार्यभार ग्रहण किया है और अदालत के आदेश की कोई जानकारी उनको नहीं है. उनके कार्यालय के स्टाफ ने भी इस संबंध में उनको कोई जानकारी नहीं दी है. डीआईओएस ने यह भी कहा कि ईमेल के द्वारा भी उनको कोई सूचना नहीं दी गई है और ना ही उनके पास सीधे कोई ऐसी सूचना आई है.इस पर कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं मुख्य स्थाई अधिवक्ता द्वारा अदालत को बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद इस पर अमल नहीं होता है.
सरकारी पक्ष के वकीलों का कहना था डीआईओएस को अदालत के आदेश की सूचना 5 मई 2022 और 1 जुलाई 2022 को फैक्स के द्वारा भेजी गई थी। यह फैक्स जिलाधिकारी जौनपुर के कार्यालय में रिसीव हुआ है। इस पर कोर्ट ने मुख्य स्थाई अधिवक्ता को पूरे मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा है ताकि जिम्मेदार व्यक्ति की जवाबदेही तय की जा सके।
याचिका में डीआईओएस जौनपुर के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें उन्होंने अनुकंपा नियुक्ति के लिए याची के दावे को इसलिए रद्द कर दिया था कि याची विवाहित पुत्री है। अधिवक्ता का कहना था कि डाइंग इन हार्नेस रूल 1974 में संशोधन कर विवाहित पुत्री को भी परिवार की परिभाषा में शामिल कर लिया गया है. ऐसे में डीआईओएस का आदेश अवैधानिक है.