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हाईकोर्ट ने हत्या के मामले को दिया मानव वध करार, उम्रकैद की सजा को 9 साल की कैद में किया तब्दील - Commutation of murder sentence to 9 years of imprisonment

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त ने दी गई सजा से अधिक 11 साल 7 माह की कैद भुगत ली है. इसलिए उसे तत्काल रिहा किया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने दादरी के जानू उर्फ जान मोहम्मद की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

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हाईकोर्ट ने हत्या के मामले को दिया मानव वध करार, उम्रकैद की सजा को 9 साल की जेल में किया तब्दील
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Published : Jan 21, 2022, 10:53 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अचानक उत्तेजना में मारपीट से हुई मौत को हत्या न मानकर मानव वध करार दिया है. साथ ही इस बाबत पूर्व में सुनाई गई उम्र कैद की सजा को नौ साल की कैद में तब्दील कर दिया है. शेष सजाओं को बहाल रखा है. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां को मुआवजे के तौर पर दो लाख दिए जाएं. यह अपीलार्थी द्वारा तीन माह में जिला जज गौतमबुद्ध नगर के समक्ष जमा किया जाएगा.

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त ने दी गई सजा से अधिक 11 साल 7 माह की कैद भुगत ली है. इसलिए उसे तत्काल रिहा किया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने दादरी के जानू उर्फ जान मोहम्मद की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट ने तहसीलदार हंडिया अनिल वर्मा किया तलब

मालूम हो कि 7 मार्च 2010 को शाम 4 बजे अपीलार्थी काम से वापस घर लौटा तो देखा उसकी पत्नी खून से लथपथ घर में फर्श पर पड़ी थी. उसकी मौत हो चुकी थी. मायके वाले दूसरे दिन सुबह आए. जनाजा नमाज पढ़ी गई और दफना दिया गया. इसके बाद मृतका के भाई ने दहेज हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई.

पुलिस ने चार लोगों के खिलाफ धारा 302, 201 व 498 ए के तहत चार्जशीट दाखिल की. सत्र अदालत ने अन्य आरोपियों राजू, कल्लू व फेमू को बरी कर दिया और अपीलार्थी को धारा 302 में आजीवन कैद व 20 हजार जुर्माना व अन्य धाराओं में सजा सुना दी.

कोर्ट ने कहा कि बगैर हत्या की मंसा के अचानक उत्तेजना में चोटें आईं. कोर्ट ने कहा कि घटना का चश्मदीद गवाह नहीं है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ियां नहीं मिलतीं. हत्या का दुराशय स्पष्ट नहीं है. इसलिए हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अचानक उत्तेजना में मारपीट से हुई मौत को हत्या न मानकर मानव वध करार दिया है. साथ ही इस बाबत पूर्व में सुनाई गई उम्र कैद की सजा को नौ साल की कैद में तब्दील कर दिया है. शेष सजाओं को बहाल रखा है. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां को मुआवजे के तौर पर दो लाख दिए जाएं. यह अपीलार्थी द्वारा तीन माह में जिला जज गौतमबुद्ध नगर के समक्ष जमा किया जाएगा.

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त ने दी गई सजा से अधिक 11 साल 7 माह की कैद भुगत ली है. इसलिए उसे तत्काल रिहा किया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की खंडपीठ ने दादरी के जानू उर्फ जान मोहम्मद की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

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मालूम हो कि 7 मार्च 2010 को शाम 4 बजे अपीलार्थी काम से वापस घर लौटा तो देखा उसकी पत्नी खून से लथपथ घर में फर्श पर पड़ी थी. उसकी मौत हो चुकी थी. मायके वाले दूसरे दिन सुबह आए. जनाजा नमाज पढ़ी गई और दफना दिया गया. इसके बाद मृतका के भाई ने दहेज हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई.

पुलिस ने चार लोगों के खिलाफ धारा 302, 201 व 498 ए के तहत चार्जशीट दाखिल की. सत्र अदालत ने अन्य आरोपियों राजू, कल्लू व फेमू को बरी कर दिया और अपीलार्थी को धारा 302 में आजीवन कैद व 20 हजार जुर्माना व अन्य धाराओं में सजा सुना दी.

कोर्ट ने कहा कि बगैर हत्या की मंसा के अचानक उत्तेजना में चोटें आईं. कोर्ट ने कहा कि घटना का चश्मदीद गवाह नहीं है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ियां नहीं मिलतीं. हत्या का दुराशय स्पष्ट नहीं है. इसलिए हत्या का दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

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