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हाईकोर्ट का आदेशः आपराधिक मुकदमों की विवेचना तय समय में पूरी करने के लिए गाइड लाइन बनाए सरकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्राम प्रधान और सचिव द्वारा मनरेगा योजना में घोटाला करने पर सख्त टिप्पणी की है. इसके साथ ही सरकार को सरकारी संस्थाओं की ओर से दर्ज कराए गए अपराधिक मुकदमों की विवेचना तय समय में पूरी करने के लिए गाइड लाइन बनाने के निर्देश दिए हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 1, 2023, 10:01 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी संस्थाओं की ओर से दर्ज कराए गए मुकदमों की विवेचना एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरी करने के लिए राज्य सरकार को गाइडलाइन बनाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि सरकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी गठित करें, जो सभी लोगों के सहयोग से एक ऐसी गाइडलाइन तय करें. जिसके जरिए विवेचना के कार्य की नियमित निगरानी की जा सके. कोर्ट ने इस कमेटी में सिविल प्रशासन, पुलिस, लोक अभियोजक आदि के प्रतिनिधियों को शामिल करने का निर्देश दिया है.

ग्राम प्रधान और सचिव ने 15 लाख का किया गोलमालः नरेगा कार्य में घोटाले के आरोपी जौनपुर सुजानगंज के मनीष कुमार सिंह, पुष्पा निषाद और विनोद कुमार सरोज की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति बीके बिरला और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने दिया है. याची ग्राम प्रधान ग्राम, विकास सचिव आदि पदों पर कार्यरत हैं. इनके ऊपर मनरेगा के तहत अमृत सरोवर योजना में बना रहे तालाब में 15,57000 रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप है.

भ्रष्टाचार के कारण ग्रामीणों का टूट रहा भरोसाः कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारत में ग्रामीण विकास के लिए मनरेगा सरीखी योजनाओं में लोक सेवकों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार का ग्रामीण विकास और जनता को रोजगार देने के लक्ष्य पर बुरा असर पड़ता है. इस प्रकार की योजनाओं में सरकारी सेवकों के भ्रष्टाचार से इन योजनाओं के प्रति ग्रामीणों का भरोसा टूटता है और इच्छित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पता है. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर सभी पहलुओं की गहराई से जांच करें और एक विस्तृत गाइडलाइन जारी की जाए. जिससे जांच की नियमित निगरानी की जा सके.

विवेचना की निगरानी करेगी कमेटीः कोर्ट ने कहा कि शुरुआती चरण में यह कमेटी सरकारी विभागों द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिक की विवेचना की निगरानी करेगी और जांच तय समय में पूरा करने के लिए गाइडलाइन भी बनाएगी. खासकर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामलों में जहां सरकारी सेवक आरोपी है. कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि विवेचना चरणबद्ध तरीके से तथा तय समय में पूरी हो. जहां पुलिस को लगता है कि आरोपी के खिलाफ कोई अपराध नहीं पाया गया है, वहां अंतिम रिपोर्ट यूपी पुलिस रेगुलेशन के प्रावधानों के तहत दर्ज की जाए.अदालतों में चल रही कार्यवाही की भी मॉनिटरिंग की जाए ताकि उसका शीघ्रता से निस्तारण हो सके. कोर्ट ने कहा कि कानून में आपराधिक मामलों की जांच के लिए कोई निश्चित समय सीमा तय नहीं की गई है. हालांकि जांच में विलंब से कानून का राज कमजोर होगा. विशेषकर जहां भ्रष्टाचार जैसे मामलों में सरकारी सेवकों के शामिल होने का आरोप है. इसलिए एक बाध्यकारी समय सीमा तय करने की आवश्यकता है.

मनरेगा में घोटाले के आरोपियों को राहत देने से इंकारः अमृत सरोवर योजना के तहत सुजानगंज में बना रहे तालाब में 15 लाख रुपए से अधिक की हेरा फेरी के आरोपित ने उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी. उनका कहना था कि उनके खिलाफ की गई शिकायत गलत है. कोर्ट का कहना था कि इस मामले में शिकायत प्राप्त होने के बाद डीआरडीए के परियोजना निदेशक ने तीन सदस्य जांच कमेटी गठित की थी, इसके बाद प्राथमिक ही दर्ज करने का निर्णय लिया गया. कोर्ट ने याचियों को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया है.

इसे भी पढ़ें-माफिया अतीक अहमद के बहनोई अखलाक की जमानत पर सुनवाई टली, अब दिसंबर में होगी सुनवाई

प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी संस्थाओं की ओर से दर्ज कराए गए मुकदमों की विवेचना एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरी करने के लिए राज्य सरकार को गाइडलाइन बनाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि सरकार मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी गठित करें, जो सभी लोगों के सहयोग से एक ऐसी गाइडलाइन तय करें. जिसके जरिए विवेचना के कार्य की नियमित निगरानी की जा सके. कोर्ट ने इस कमेटी में सिविल प्रशासन, पुलिस, लोक अभियोजक आदि के प्रतिनिधियों को शामिल करने का निर्देश दिया है.

ग्राम प्रधान और सचिव ने 15 लाख का किया गोलमालः नरेगा कार्य में घोटाले के आरोपी जौनपुर सुजानगंज के मनीष कुमार सिंह, पुष्पा निषाद और विनोद कुमार सरोज की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति बीके बिरला और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने दिया है. याची ग्राम प्रधान ग्राम, विकास सचिव आदि पदों पर कार्यरत हैं. इनके ऊपर मनरेगा के तहत अमृत सरोवर योजना में बना रहे तालाब में 15,57000 रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप है.

भ्रष्टाचार के कारण ग्रामीणों का टूट रहा भरोसाः कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारत में ग्रामीण विकास के लिए मनरेगा सरीखी योजनाओं में लोक सेवकों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार का ग्रामीण विकास और जनता को रोजगार देने के लक्ष्य पर बुरा असर पड़ता है. इस प्रकार की योजनाओं में सरकारी सेवकों के भ्रष्टाचार से इन योजनाओं के प्रति ग्रामीणों का भरोसा टूटता है और इच्छित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पता है. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर सभी पहलुओं की गहराई से जांच करें और एक विस्तृत गाइडलाइन जारी की जाए. जिससे जांच की नियमित निगरानी की जा सके.

विवेचना की निगरानी करेगी कमेटीः कोर्ट ने कहा कि शुरुआती चरण में यह कमेटी सरकारी विभागों द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिक की विवेचना की निगरानी करेगी और जांच तय समय में पूरा करने के लिए गाइडलाइन भी बनाएगी. खासकर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामलों में जहां सरकारी सेवक आरोपी है. कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि विवेचना चरणबद्ध तरीके से तथा तय समय में पूरी हो. जहां पुलिस को लगता है कि आरोपी के खिलाफ कोई अपराध नहीं पाया गया है, वहां अंतिम रिपोर्ट यूपी पुलिस रेगुलेशन के प्रावधानों के तहत दर्ज की जाए.अदालतों में चल रही कार्यवाही की भी मॉनिटरिंग की जाए ताकि उसका शीघ्रता से निस्तारण हो सके. कोर्ट ने कहा कि कानून में आपराधिक मामलों की जांच के लिए कोई निश्चित समय सीमा तय नहीं की गई है. हालांकि जांच में विलंब से कानून का राज कमजोर होगा. विशेषकर जहां भ्रष्टाचार जैसे मामलों में सरकारी सेवकों के शामिल होने का आरोप है. इसलिए एक बाध्यकारी समय सीमा तय करने की आवश्यकता है.

मनरेगा में घोटाले के आरोपियों को राहत देने से इंकारः अमृत सरोवर योजना के तहत सुजानगंज में बना रहे तालाब में 15 लाख रुपए से अधिक की हेरा फेरी के आरोपित ने उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी. उनका कहना था कि उनके खिलाफ की गई शिकायत गलत है. कोर्ट का कहना था कि इस मामले में शिकायत प्राप्त होने के बाद डीआरडीए के परियोजना निदेशक ने तीन सदस्य जांच कमेटी गठित की थी, इसके बाद प्राथमिक ही दर्ज करने का निर्णय लिया गया. कोर्ट ने याचियों को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया है.

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