प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को होमगार्ड सेवा के मानदेय के बराबर भुगतान करें. कोर्ट ने पीआरडी जवानों को न्यूनतम वेतन से भी कम का भुगतान किए जाने को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन और राज्य सरकार का मनमाना व अवैधानिक कृत्य करार दिया है. राजवीर सिंह सहित सैकड़ों पीआरडी जवानों की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने आदेश दिया.
याचिका में कहा गया था कि याचीगण प्रांतीय रक्षक दल (पीआरडी ) में चयनित अभ्यर्थी हैं. उन्होंने बकायदा प्रशिक्षण प्राप्त किया है तथा उनको सर्टिफिकेट भी जारी किया गया है. मगर उनको उन्हीं के समान चयनित और लगभग वही काम करने वाले होमगार्ड जवानों के बराबर मानदेय नहीं दिया जा रहा है. जोकि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया कि होमगार्डों की नियुक्ति भी उसी प्रकार से होती है जैसे कि पीआरडी जवानों की होती है.
याचीगण का कहना था कि प्रांतीय रक्षक दल और होमगार्ड सेवाओं का गठन अलग-अलग विभागों के तहत किया गया है. उनसे सामान्य दिनों में भी लोग शांति से संबंधित कार्य व सेवाएं ली जाती हैं. जैसा कि होमगार्ड से ली जाती है. प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को 2013 तक 126 रुपये प्रतिदिन मानदेय मिलता रहा है. जबकि होमगार्ड के जवानों को 2009 तक 140 रुपए मिलता था. जिसे बढ़ाकर 210 रुपये कर दिया गया. वर्तमान में होमगार्ड का मानदेय 375 रुपये प्रतिदिन से बढ़ा करके 500 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है.
जबकि प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को हाईकोर्ट के निर्देश के बाद वर्तमान में 375 रुपये प्रतिदिन ही मानदेय दिया जा रहा है. होमगार्डों के समान ही सेवा देने और उनकी तरह ही नियुक्ति प्रक्रिया होने के बावजूद कम मानदेय देना भेदभाव पूर्ण व मनमाना है. याचिका में यह भी कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 23 का भी उल्लंघन है. क्योंकि पीआरडी जवानों को मिल रहा मानदेय न्यूनतम वेतन से कम है.
याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने गृह रक्षक होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन के केस में होमगार्डों को पुलिस बल के जवानों को एक माह में मिलने वाले वेतन के बराबर न्यूनतम मानदेय देने का निर्देश दिया था. पीआरडी जवान भी होमगार्डों के समान ही मानदेय पाने के हकदार हैं. प्रदेश सरकार के अधिवक्ता का कहना था कि होमगार्ड और पीआरडी के जवानों का काम भले ही एक जैसा है मगर दोनों अलग-अलग विभागों के तहत काम करते हैं. उनको मानदेय का भुगतान प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए बजट के अनुसार किया जाता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसकी आर्थिक मजबूरी और काम के विकल्प के अभाव में न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी पर काम करने के लिए विवश करना बंधुआ मजदूरी के समान ही है. यह अनुच्छेद 23 के विपरीत है. कोई व्यक्ति न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी पर काम करने को तभी तैयार होता है. जब उसके पास अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने का कोई अन्य विकल्प नहीं होता है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह 3 माह के अंदर पीआरडी जवानों को होमगार्डों के समान मानदेय भुगतान को लेकर आदेश पारित करें.
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