प्रयागराज: समाज को चाहे कितना भी पुरुष प्रधान बोला जाए, चाहे कितना भी महिलाओं को पुरुषों पर आसरित समझा जाए, लेकिन जब एक महिला ठान लेती है तो वह इन सारे मिथकों को तोड़ देती है. हम बात कर रहे हैं प्रयागराज की पहली महिला ड्राइवर मंजू की. जिन्होंने अपने शराबी पति का हाथ छोड़कर ऑटो के हैंडल को पकड़ा और बन गई जिले की पहली महिला ऑटो ड्राइवर.
ऐसे हुई कामयाबी की शुरुआत
मंजू का पति शराबी है. अपने शराबी पति से परेशान होकर मंजू ने उसका साथ छोड़ा दिया. उन्होंने जिंदगी को चलाने के लिए ऑटो चलाने की राह पकड़ ली. कीडगंज इलाके की रहने वाली यह महिला अपने तीन बच्चों को पालने के लिए पिछले 7 सालों से शहर की सड़कों पर ऑटो चला रही है. मंजू निषाद शहर की पहली महिला है, जो सालों से ऑटो चलाकर अपना पेट भर रही है. मंजू के जज्बे को देखकर उसके ऑटो में बैठने वाली सवारियां भी उसके हौसले को सलाम करती हैं.
शराबी पति की आदतों से थी परेशान
कीडगंज इलाके की रहने वाली मंजू निषाद ने शराबी पति की आदतों से परेशान होकर उसका साथ छोड़ दिया. पति का साथ छोड़ने के बाद उसके सामने दो बेटों और एक बेटी को पालने का संकट खड़ा हो गया. मंजू ने अपने मायके वालों से भी कोई मदद नहीं ली. आज मंजू अपने पैरों पर खड़ी हैं.
ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है मंजू
पति का साथ छोड़ने के बाद मंजू ने ऑटो के हैंडल को इसलिए पकड़ा, क्योंकि वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी. मंजू को अच्छी तनख्वाह वाली कोई नौकरी नहीं मिल रही थी. इसके बाद मोहल्ले के एक टैक्सी चालक से बात करने के बाद मंजू ने ऑटो चलाने का फैसला किया. मोहल्ले के उस ऑटो चालक ने महिला होने के कारण मंजू को ऑटो चलाने से मना किया. फिर भी मंजू ने ऑटो चलाने की ठान ली थी. इसके बाद उसने कुछ ही दिनों में ऑटो चलाना सीख लिया. ऑटो चलाना सीखने के बाद मंजू ने एक ऑटो फाइनेंस करवा लिया और उसे लेकर सवारी की तलाश में संगम नगरी की सड़कों पर निकल पड़ी.
थोड़ी परेशानियों के बाद मिली बहुत कामयाबी
मंजू बताती हैं कि जब उन्होंने ऑटो चलाना सीखा और संगम नगरी की सड़कों पर वह सवारियों की तलाश में ऑटो लेकर निकली तो हर तरफ लोग उन्हें आश्चर्यभरी निगाहों से देखते थे. जब वह कहीं पर भी सवारी लेने के लिए खड़ी होती तो आसपास के लोग अचरज भरी निगाहों से उन्हें देखने लगते. इससे शुरुआत में उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
सवारी न मिलने पर तीर्थ पुरोहितों ने की मदद
मंजू ने जब शहर के तय रूट पर ऑटो चलाना शुरू किया तो उसे सवारियां कम मिलती थीं. इससे मंजू मायूस हो गयी थी, लेकिन मायूस हो चुकी मंजू की कीडगंज इलाके में रहने वाले तीर्थ पुरोहितों ने मदद की. इसके बाद तीर्थ पुरोहितों के यहां आने वाले श्रद्धालु रोजाना संगम तक मंजू के ऑटो से ही जाने लगे. इससे मंजू की गाड़ी पटरी पर आ गई. मंजू जब रोजाना सड़कों पर सवारी लेकर निकलने लगी तो अपने आप उसे और सवारियां मिलने लगीं. इसका ही नतीजा है कि आज उसकी जिंदगी पूरी रफ्तार से पटरी पर दौड़ रही है. ऑटो चलाकर वह न सिर्फ अपना घर चला रही है, बल्कि इसी कमाई से अपने बच्चों का पेट पालने के साथ ही उन्हें पढ़ा-लिखा भी रही है.
शहर की पहली ऑटो चालक है मंजू
मंजू शहर की अकेली महिला ऑटो चालक है, जो पिछले सात सालों से प्रयागराज में ऑटो चलाकर अपना परिवार पाल रही है. शहर की सड़कों पर फर्राटे से ऑटो चलाने वाली मंजू अब दूसरों के लिए मिसाल बन गई हैं. मंजू के जैसी कई और महिलाएं भी अब सामने आई हैं जो ई-रिक्शा चलाकर अपना परिवार पाल रही हैं. मंजू अकेली महिला ऑटो ड्राइवर हैं, जो इन दिनों प्रयागराज की सड़कों पर टैक्सी से सवारी ढोने का काम कर रही हैं.
दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं मंजू
जिस तरह से मंजू ने हालात से परेशान होकर अपने पति का साथ छोड़ा. ऐसे हालात में बहुत सी महिलाएं निराश होकर मायके वालों पर आश्रित हो जाती हैं. जबकि कई महिलाएं घर में बैठकर हालात से समझौता कर जिंदगी भर अपनी किस्मत को कोसती हैं. मंजू ने ऐसा नहीं किया और उसने अपने हौसले के दम पर अपनी योग्यता के मुताबिक काम को चुना. जिले में ऑटो चलाने का काम मुख्य रूप से पुरुष ही करते हैं, लेकिन मंजू ने हिम्मत नहीं हारी और उसने ऑटो चलाने का काम शुरू कर दिया. पिछले सात सालों से ऑटो चलाकर वह अपने बच्चों का भरण-पोषण कर रही है. आज मंजू के ऑटो में बैठने वाली सवारियां भी उसकी जमकर सराहना करती हैं.
निश्चित रूट की जगह बुकिंग में चलाती है टैक्सी
मंजू का कहना है कि वह शहर में अलग-अलग रूटों पर ऑटो चलती है. वह जिस ऑटो को चलाती है वह शहर से गंगापार और यमुनापार के रूट पर अधिक चलते हैं. लेकिन मंजू इन रूटों पर ऑटो चलाने के बजाय बुकिंग पर ऑटो चलाने को वरीयता देती है. इसके अलावा संगम तक श्रद्धालुओं को पहुंचाने का काम भी करती है, जिससे श्रद्धालुओं की सेवा के साथ ही अच्छा किराया भी मिलता है. साथ ही मंजू को मां गंगा के दर्शन करने का अवसर भी मिल जाता है और वह जल्दी घर जाकर बच्चों को भी समय दे पाती है.