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एक आपराधिक केस पर भी दर्ज हो सकती है गिरोहबंद कानून की FIR: इलाहाबाद हाईकोर्ट - गिरोहबंद कानून

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक केस पर भी गिरोहबंद कानून की एफआईआर (FIR) दर्ज हो सकती है. इसमें कोई अवैधानिकता या दोष नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Aug 7, 2021, 2:23 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आपराधिक केस पर भी गिरोहबंद कानून की एफआई दर्ज करने की वैधता चुनौती में दाखिल एक दर्जन याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि एक केस पर भी गिरोहबंद कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. इसमें कोई अवैधानिकता या दोष नहीं है.

कोर्ट ने कहा है कि यदि दर्ज प्राथमिकी से संज्ञेय अपराध बन रहा है तो उसकी विवेचना अवश्य होनी चाहिए. इसे रद्द नहीं किया जा सकता है और न ही आरोपियों को संरक्षण दिया जा सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिकर दिवाकर और न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने रितेश कुमार उर्फ रिक्की व कई अन्य याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है. याचिका पर राज्य सरकार के अपर शासकीय अधिवक्ता जे के उपाध्याय व अमित सिन्हा ने प्रतिवाद किया.

याचियों का कहना था कि उनके खिलाफ केवल एक एफआईआर दर्ज है. जिसमें उन्हें फंसाया गया है. कोई विश्वसनीय स्वतंत्र गवाह वह साक्ष्य मौजूद नहीं है. कोर्ट से सभी को जमानत मिल चुकी है या गिरफ्तारी पर रोक लगी है. जमानत पर छोड़ने के आदेश के कारण गैंग चार्ट तैयार कर गिरोहबंद कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है. इसमें न तो किसी गैंग का पता है और न ही अपराध करने के लिए गैंग की मीटिंग का कोई साक्ष्य है. पुलिस ने जमानत पर रिहाई रोकने के लिए बिना ठोस सबूत के फंसाया गया है. सरकारी वकील का कहना था कि दर्ज प्राथमिकी से संज्ञेय अपराध बनता है.जिसकी विवेचना होनी चाहिए.

इसे भी पढें- बिजनौर गोशाला विवाद: आरोपी पत्रकारों की गिरफ्तारी पर लगी रोक को हाईकोर्ट ने बढ़ाया

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आपराधिक केस पर भी गिरोहबंद कानून की एफआई दर्ज करने की वैधता चुनौती में दाखिल एक दर्जन याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि एक केस पर भी गिरोहबंद कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है. इसमें कोई अवैधानिकता या दोष नहीं है.

कोर्ट ने कहा है कि यदि दर्ज प्राथमिकी से संज्ञेय अपराध बन रहा है तो उसकी विवेचना अवश्य होनी चाहिए. इसे रद्द नहीं किया जा सकता है और न ही आरोपियों को संरक्षण दिया जा सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिकर दिवाकर और न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने रितेश कुमार उर्फ रिक्की व कई अन्य याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है. याचिका पर राज्य सरकार के अपर शासकीय अधिवक्ता जे के उपाध्याय व अमित सिन्हा ने प्रतिवाद किया.

याचियों का कहना था कि उनके खिलाफ केवल एक एफआईआर दर्ज है. जिसमें उन्हें फंसाया गया है. कोई विश्वसनीय स्वतंत्र गवाह वह साक्ष्य मौजूद नहीं है. कोर्ट से सभी को जमानत मिल चुकी है या गिरफ्तारी पर रोक लगी है. जमानत पर छोड़ने के आदेश के कारण गैंग चार्ट तैयार कर गिरोहबंद कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है. इसमें न तो किसी गैंग का पता है और न ही अपराध करने के लिए गैंग की मीटिंग का कोई साक्ष्य है. पुलिस ने जमानत पर रिहाई रोकने के लिए बिना ठोस सबूत के फंसाया गया है. सरकारी वकील का कहना था कि दर्ज प्राथमिकी से संज्ञेय अपराध बनता है.जिसकी विवेचना होनी चाहिए.

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