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हाईकोर्ट का फैसला! तलाकशुदा महिला को पूर्व शौहर से आजीवन गुजारा भत्ता पाने का अधिकार - गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को इद्दत काल तक अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है.

तलाकशुदा महिला
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Published : Jan 4, 2023, 8:24 PM IST

Updated : Jan 4, 2023, 9:10 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को इद्दत काल ही नहीं, दूसरी शादी करने तक या जीवन भर अपने पूर्व शौहर से गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है. गुजारा भत्ता इस तरह का हो कि वह तलाक से पहले जैसा जीवन बिता रही थी. उसी तरह जीवन जी सकें.

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी एवं न्यायमूर्ति एमएएच इदरीशी की खंडपीठ ने जाहिद खातून की अपील को मंजूर करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को दूसरी शादी करने तक या जीवन भर अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. तलाकशुदा मुस्लिम महिला को इसके लिए मुस्लिम महिला संरक्षण कानून के तहत मजिस्ट्रेट को अर्जी देने का अधिकार है. वह मजिस्ट्रेट की अदालत में मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) कानून 1986 की धारा 3(2) के तहत पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता दिलाने की अर्जी दाखिल कर सकती है.

इसी के साथ कोर्ट ने परिवार न्यायालय गाजीपुर के प्रधान न्यायाधीश द्वारा केवल इद्दत अवधि तक ही गुजारा भत्ता दिलाने के आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अदालत ने वैधानिक प्रावधानों और साक्ष्यों का सही परिशीलन किए बगैर यह आदेश दिया है. साथ ही सक्षम मजिस्ट्रेट को नियमानुसार गुजारा भत्ता और मेहर की रकम की वापसी पर तीन माह में आदेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने तब तक विपक्षी शौहर को अपनी तलाकशुदा बीवी को पांच हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम गुजारा भत्ता भुगतान करने का निर्देश दिया है.

मामले के अनुसार जाहिदा खातून का नूर उल हक खान से 21 मई 1989 को निकाह मुस्लिम रीति रिवाज के साथ हुआ था. निकाह के समय नूर उल हक बेरोजगार था. बाद में उसे डाक विभाग में नौकरी मिल गई. वर्ष 2000 में उसने जाहिद खातून को तलाक दे दिया. वर्ष 2002 में उसने किसी अन्य महिला से शादी कर ली थी. जाहिदा खातून ने मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक अपील प्रस्तुत करते हुए गुजारा भत्ता, मेहर की रकम और शादी में दिए गए समान लौटाने की गुजारिश की थी. उसका प्रकरण प्रधान परिवार न्यायधीश काजीपुर के समक्ष पहुंचा और प्रधान परिवार न्यायाधीश ने 15 सितंबर 2022 को आदेश पारित करते हुए उसे सिर्फ इद्दत अवधि तक 1500 रुपया और मेहर के तौर पर 1001 रुपये और कुछ अन्य सामान दिए जाने का आदेश पारित किया था. जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को इद्दत काल ही नहीं, दूसरी शादी करने तक या जीवन भर अपने पूर्व शौहर से गुजाराभत्ता पाने का अधिकार है. गुजारा भत्ता इस तरह का हो कि वह तलाक से पहले जैसा जीवन बिता रही थी. उसी तरह जीवन जी सकें.

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी एवं न्यायमूर्ति एमएएच इदरीशी की खंडपीठ ने जाहिद खातून की अपील को मंजूर करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को दूसरी शादी करने तक या जीवन भर अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है. तलाकशुदा मुस्लिम महिला को इसके लिए मुस्लिम महिला संरक्षण कानून के तहत मजिस्ट्रेट को अर्जी देने का अधिकार है. वह मजिस्ट्रेट की अदालत में मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) कानून 1986 की धारा 3(2) के तहत पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता दिलाने की अर्जी दाखिल कर सकती है.

इसी के साथ कोर्ट ने परिवार न्यायालय गाजीपुर के प्रधान न्यायाधीश द्वारा केवल इद्दत अवधि तक ही गुजारा भत्ता दिलाने के आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अदालत ने वैधानिक प्रावधानों और साक्ष्यों का सही परिशीलन किए बगैर यह आदेश दिया है. साथ ही सक्षम मजिस्ट्रेट को नियमानुसार गुजारा भत्ता और मेहर की रकम की वापसी पर तीन माह में आदेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने तब तक विपक्षी शौहर को अपनी तलाकशुदा बीवी को पांच हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम गुजारा भत्ता भुगतान करने का निर्देश दिया है.

मामले के अनुसार जाहिदा खातून का नूर उल हक खान से 21 मई 1989 को निकाह मुस्लिम रीति रिवाज के साथ हुआ था. निकाह के समय नूर उल हक बेरोजगार था. बाद में उसे डाक विभाग में नौकरी मिल गई. वर्ष 2000 में उसने जाहिद खातून को तलाक दे दिया. वर्ष 2002 में उसने किसी अन्य महिला से शादी कर ली थी. जाहिदा खातून ने मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक अपील प्रस्तुत करते हुए गुजारा भत्ता, मेहर की रकम और शादी में दिए गए समान लौटाने की गुजारिश की थी. उसका प्रकरण प्रधान परिवार न्यायधीश काजीपुर के समक्ष पहुंचा और प्रधान परिवार न्यायाधीश ने 15 सितंबर 2022 को आदेश पारित करते हुए उसे सिर्फ इद्दत अवधि तक 1500 रुपया और मेहर के तौर पर 1001 रुपये और कुछ अन्य सामान दिए जाने का आदेश पारित किया था. जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.

Last Updated : Jan 4, 2023, 9:10 PM IST
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