प्रयागराज: शरदीय नवरात्र का आरंभ हो गया है. 51 शिद्धपीठों में से एक मां अलोप शंकरी के दरबार में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा है. कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए भक्त माता के दर्शन कर रहे हैं. मंदिर के अंदर बिना मास्क के प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. इसके साथ ही मंदिर परिसर में सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं.
प्रयागराज: यहां मां अलोप शंकरी के पालने की होती है पूजा, जानिये क्यों
यूपी के प्रयागराज में मां अलोप शंकरी के दरबार में शरदीय नवरात्र के अवसर पर सुबह से ही भक्तों का तांता लगा है. 51 शिद्धपीठों में से एक मां अलोप शंकरी के दरबार में कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए भक्त माता के दर्शन कर रहे हैं. मंदिर के अंदर बिना मास्क के प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.
मां अलोप शंकरी मंदिर में मूर्ति की नहीं पालने की होती है पूजा
प्रयागराज: शरदीय नवरात्र का आरंभ हो गया है. 51 शिद्धपीठों में से एक मां अलोप शंकरी के दरबार में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा है. कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए भक्त माता के दर्शन कर रहे हैं. मंदिर के अंदर बिना मास्क के प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. इसके साथ ही मंदिर परिसर में सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं.
मंदिर के महंत राधे श्याम गिरी महाराज जी ने बताया कि नवरात्र को लेकर मंदिर में पूरी तैयारी की गई है. मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को मास्क लगाना जरूरी है, नहीं तो मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे. सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से श्रद्धालुओं को दर्शन कराने की प्रक्रिया जारी है. नवरात्र में नौ दिनों तक मां अलोप शंकरी माता के दरबार में सुबह से लेकर शाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है. इसके साथ ही हर दिन मंदिर के अंदर माता की पूजा-अर्चना विशेष रूप से की जाती है.
माता का है निराकार रूप, इसलिए होती है पालने की पूजा
मंदिर के महंत राधे श्याम गिरी ने मंदिर की मान्यता के बारे में बताया कि इस मंदिर में माता सती की दाहिने हाथ की उंगली कटकर गिरी और इसी जगह अलोप हो गई. इसलिए तभी से मंदिर का नाम मां ललिता देवी अलोप शंकरी रखा गया. मंदिर में माता का निराकार रूप है और यहां पर मूर्ति की नहीं, बल्कि पालने की पूजा की जाती है.
शारीरिक कष्टों से मिलती है मुक्ति
मंदिर के महंत ने बताया कि मां अलोप शंकरी के दर्शन करने और स्पर्श करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. नवरात्र के पूरे नौ दिन मंदिर में माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
शारदीय नवरात्र का है विशेष महत्व
महंत राधे श्याम गिरी ने बताया कि शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है. इन नौ दिन माता की भक्ति और सम्पूर्ण मन से पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. इसके साथ ही मां अलोप शंकरी की पूरे नौ दिन विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना की जाती है.
मंदिर के महंत राधे श्याम गिरी महाराज जी ने बताया कि नवरात्र को लेकर मंदिर में पूरी तैयारी की गई है. मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को मास्क लगाना जरूरी है, नहीं तो मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे. सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से श्रद्धालुओं को दर्शन कराने की प्रक्रिया जारी है. नवरात्र में नौ दिनों तक मां अलोप शंकरी माता के दरबार में सुबह से लेकर शाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है. इसके साथ ही हर दिन मंदिर के अंदर माता की पूजा-अर्चना विशेष रूप से की जाती है.
माता का है निराकार रूप, इसलिए होती है पालने की पूजा
मंदिर के महंत राधे श्याम गिरी ने मंदिर की मान्यता के बारे में बताया कि इस मंदिर में माता सती की दाहिने हाथ की उंगली कटकर गिरी और इसी जगह अलोप हो गई. इसलिए तभी से मंदिर का नाम मां ललिता देवी अलोप शंकरी रखा गया. मंदिर में माता का निराकार रूप है और यहां पर मूर्ति की नहीं, बल्कि पालने की पूजा की जाती है.
शारीरिक कष्टों से मिलती है मुक्ति
मंदिर के महंत ने बताया कि मां अलोप शंकरी के दर्शन करने और स्पर्श करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. नवरात्र के पूरे नौ दिन मंदिर में माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
शारदीय नवरात्र का है विशेष महत्व
महंत राधे श्याम गिरी ने बताया कि शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है. इन नौ दिन माता की भक्ति और सम्पूर्ण मन से पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. इसके साथ ही मां अलोप शंकरी की पूरे नौ दिन विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना की जाती है.