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पीपा पुल पर माला बांधकर संकल्प पूरा कर रहे श्रद्धालु, जानिए क्या है रहस्य - तीर्थराज प्रयागराज

तीर्थराज प्रयागराज में इन दिनों माघ मेला चल रहा है. यह माघ मेला प्रयागराज में प्रतिवर्ष संगम तट पर लगता है. इस बीच भारी संख्या में स्नानार्थी पवित्र संगम में डुबकी लगा रहे हैं. वहीं इस बीच कई श्रद्धालु पीपा पुल पर एक छोर से दूसरी छोर तक माला बांधकर संकल्प पूरा कर रहे हैं.

पीपा पुल पर माला
पीपा पुल पर माला
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Published : Feb 25, 2021, 1:40 PM IST

प्रयागराजः धर्म और आस्था की नगरी तीर्थराज प्रयागराज में इन दिनों माघ मेला चल रहा है. यह माघ मेला प्रयागराज में प्रतिवर्ष संगम के तट पर लगता है. इस बीच भारी संख्या में स्नानार्थी पवित्र संगम में डुबकी लगा रहे हैं. इसी बीच कई श्रद्धालु पीपा पुल पर एक छोर से दूसरी छोर तक माला बांधते दिख जाते हैं. इन श्रद्धालुओं का कहना है कि जब मां से मांगी मुराद पूरी हो जाती है, तो दूसरे वर्ष माघ मास में गंगा मैया को इस पार से उस पार तक पीपे के पुल के माध्यम से पूजन अर्चन करते हैं.

पीपा पुल पर माला बांधकर संकल्प पूरा कर रहे श्रद्धालु.

माला बांधकर संकल्प पूरा करते हैं पूरा
सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ प्रयागराज को माना गया है. हर कोई धर्म और आस्था की नगरी में पुण्य की डुबकी लगाना चाहता है. शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से शिव की जटा में पहुंची थी. गंगा सप्तमी के अवसर पर मां गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. मध्य प्रदेश से आई सुधा शुक्ला का कहना है कि हमें जरूरत किसी चीज की होती है तो मां गंगा से मांग लेते हैं और हमें मिल भी जाता है इसीलिए आज यहां पर गंगा की आराधना करने आए हैं और मान्यताओं के अनुसार फूलों की इस पार से उस पार तक 1 किलोमीटर लंबी माला गंगा मईया का गीत गाते बांध कर संकल्प पूरा कर रहे हैं.

यह भी पढ़ेंः-माघ मेले में दंडी सन्यासियों की भक्तों के साथ पदयात्रा

चित्रकूट से आए श्रद्धालु ने क्या कहा
चित्रकूट से आए गिरिराज गौतम का कहना है कि ऐसा कई बार हुआ है जब गंगा मैया ने हमारी मन्नत पूरी की है और जब हम यहां पर इनकी आराधना करते पुल को फूल की माला को बांधते हुए पार करते हैं तो जैसे लगता है मोक्ष मिल गया. सभ्यताओं का विकास तो नदियों के किनारे हुआ ही है क्योंकि नदी जीवनदायिनी हुआ करती है इसलिए नदियों को मां कहा जाता है. गंगा को हमारे यहां सबसे पवित्र नदियों में माना जाता है. इसलिए गंगा को पृथ्वी पर अवतरण को उत्सव की तरह मनाया जाता है. हर साल जेठ माह की शुक्ल पक्ष दशमी गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाया जाता है. माघ मास होने से इस स्थान पर स्नान करने का और भी महत्व बढ़ जाता है.

प्रयागराजः धर्म और आस्था की नगरी तीर्थराज प्रयागराज में इन दिनों माघ मेला चल रहा है. यह माघ मेला प्रयागराज में प्रतिवर्ष संगम के तट पर लगता है. इस बीच भारी संख्या में स्नानार्थी पवित्र संगम में डुबकी लगा रहे हैं. इसी बीच कई श्रद्धालु पीपा पुल पर एक छोर से दूसरी छोर तक माला बांधते दिख जाते हैं. इन श्रद्धालुओं का कहना है कि जब मां से मांगी मुराद पूरी हो जाती है, तो दूसरे वर्ष माघ मास में गंगा मैया को इस पार से उस पार तक पीपे के पुल के माध्यम से पूजन अर्चन करते हैं.

पीपा पुल पर माला बांधकर संकल्प पूरा कर रहे श्रद्धालु.

माला बांधकर संकल्प पूरा करते हैं पूरा
सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ प्रयागराज को माना गया है. हर कोई धर्म और आस्था की नगरी में पुण्य की डुबकी लगाना चाहता है. शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्ग लोक से शिव की जटा में पहुंची थी. गंगा सप्तमी के अवसर पर मां गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. मध्य प्रदेश से आई सुधा शुक्ला का कहना है कि हमें जरूरत किसी चीज की होती है तो मां गंगा से मांग लेते हैं और हमें मिल भी जाता है इसीलिए आज यहां पर गंगा की आराधना करने आए हैं और मान्यताओं के अनुसार फूलों की इस पार से उस पार तक 1 किलोमीटर लंबी माला गंगा मईया का गीत गाते बांध कर संकल्प पूरा कर रहे हैं.

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चित्रकूट से आए श्रद्धालु ने क्या कहा
चित्रकूट से आए गिरिराज गौतम का कहना है कि ऐसा कई बार हुआ है जब गंगा मैया ने हमारी मन्नत पूरी की है और जब हम यहां पर इनकी आराधना करते पुल को फूल की माला को बांधते हुए पार करते हैं तो जैसे लगता है मोक्ष मिल गया. सभ्यताओं का विकास तो नदियों के किनारे हुआ ही है क्योंकि नदी जीवनदायिनी हुआ करती है इसलिए नदियों को मां कहा जाता है. गंगा को हमारे यहां सबसे पवित्र नदियों में माना जाता है. इसलिए गंगा को पृथ्वी पर अवतरण को उत्सव की तरह मनाया जाता है. हर साल जेठ माह की शुक्ल पक्ष दशमी गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाया जाता है. माघ मास होने से इस स्थान पर स्नान करने का और भी महत्व बढ़ जाता है.

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