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सरकारी अस्पतालों में एआरवी उपलब्ध, रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन में कमी

प्रयागराज के सरकारी अस्पतालों में एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने वालों की भीड़ उमड़ रही है. बढ़ते मामलों की वजह से कभी-कभी वैक्सीन भी कम पड़ जाती है. जिले में अब एआरवी सहजता से लोगों को मिल रही है. वहीं रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन की उपलब्धता नहीं है.

एंटी रेबीज
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Published : Mar 1, 2021, 11:20 AM IST

प्रयागराज: जिले में इन दिनों कुत्तों के काटने के मामले बढ़ रहे हैं, जिसकी वजह से सरकारी अस्पतालों में एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने वालों की भीड़ उमड़ रही है. बढ़ते मामलों की वजह से कभी-कभी वैक्सीन भी कम पड़ जाती है. जिले में वैक्सीन की इतनी किल्लत नहीं हुई कि किसी मरीज को बिना वैक्सीन काम चलाना पड़ा हो. हालांकि पिछले दिनों एक अस्पताल में वैक्सीन खत्म होने पर मरीजों को दूसरे हॉस्पिटल भेजा गया था. प्रयागराज में अब एआरवी जहां सहजता से लोगों को मिल रही है वहीं रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन की उपलब्धता नहीं है.

डॉ. सुषमा श्रीवास्तव ने दी जानकारी
इन दो अस्पतालों में सबसे ज्यादा लोगों को लगाई जाती है वैक्सीनप्रयागराज के तेज बहादुर सप्रू बेली हॉस्पिटल और मोतीलाल नेहरु मंडलीय चिकित्सालय में कुत्ते काटने के सबसे ज्यादा मरीज पहुंचते हैं. इन दिनों दोनों ही अस्पताल में लगातार नि:शुल्क एंटी रैबीज वैक्सीन लगाई जाती है. दोनों अस्पताल में लोगों की भीड़ एआरवी की डोज लगवाने के लिए पहुंचती है. लोग अस्पताल में पहुंचकर निशुल्क इंजेक्शन लगवाते हैं.
कुछ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी एआरवी लगाने का है इंतजामजिले के अलग-अलग तहसीलों में बनी कुछ सीएचसी में भी एंटी रैबीज वैक्सीन लगाई जाती है, लेकिन इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अक्सर वैक्सीन की उपलब्धता नहीं होती है, जिस वजह से जिले भर के ज्यादातर मरीज शहर के टीबी सप्रू बेली अथवा मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय में ही रैबीज का इंजेक्शन लगवाने पहुंचते हैं. यही वजह है कि जिले भर से मरीजों के पहुंचने के कारण इन दोनों अस्पतालों में मरीजों की लाइन लगी रहती है.

सड़कों पर लगातार बढ़ रही हैं कुत्तों की संख्या


जिले भर में सड़कों पर इन दिनों आवारा कुत्तों का आतंक देखने को मिल रहा है. सड़कों पर बेखौफ घूमते इन आवारा कुत्तों की वजह से उधर से गुजरने वाले राहगीर दहशत में रहते हैं. क्योंकि सड़कों पर निकलने वाले लोगों को कब ये जानवर अपना शिकार बना लें. इसका कोई ठिकाना नहीं है. लोग सड़क छाप कुत्तों की बढ़ती हुई आबादी से परेशान हैं. सिर्फ सड़कें ही नहीं सभी सार्वजनिक जगहों को भी कुत्तों ने अपना आशियाना बना लिया है.



2020 में एमएलएन मंडलीय अस्पताल में आये थे लगभग 11 हजार केस


बीते साल मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में कुत्ते काटने के वजह से 10 हजार 816 मरीज पहुंचें थे, जिसमे अप्रैल से लेकर सितंबर तक मरीजों की संख्या कम हो गई थी, लेकिन उसके बावजूद मरीजों की संख्या 11 हजार के करीब पहुंच गई थी. इसकी एक वजह यह भी है कि कोरोना काल के दौरान टीबी सप्रू हॉस्पिटल को कोविड एल2 हॉस्पिटल बना दिया गया था, जिस वजह से वहां ओपीडी के साथ ही एआरवी टिकाकरण भी बंद कर दिया गया था. इस वजह से ज्यादातर केस मोती लाल नेहरू मंडलीय हॉस्पिटल में ही जाने लगे थे. इस वजह से वहां केस की संख्या बढ़ गई.

2021 में तेजी से बढ़ रहे हैं केस

कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल जहां कुत्तों के काटने के मामले कम हुए थे.वहीं साल 2021 की शुरुआत के महीनों में ही केस में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है. मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में जहां जनवरी में 1245 मामले आये थे वहीं फरवरी में ये संख्या बढ़कर 13 सौ के पार हो गयी है.इसके अलावा बात टीबी सप्रू बेली हॉस्पिटल की करें तो वहां 3 फरवरी से एआरवी का टीकाकरण शुरू हुआ तो महज 25 दिनों में 17 सौ से ज्यादा लोगों को एंटी रेबीज वैक्सीन लगायी जा चुकी है.


रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीनसरकारी अस्पतालों में नहीं मिलती है

सरकारी अस्पतालों में रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीन उपलब्ध नहीं रहती है. मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल की सीएमएस डॉ. सुषमा श्रीवास्तव का कहना है कि "एआरवी वैक्सीन अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में मौजूद है, लेकिन रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं रहती है. इसकी जरूरत भी बहुत कम ही पड़ती है. क्योंकि आरआईजी वैक्सीन की जरूरत उन्हीं मरीजों को होगी, जिसे कुत्ते ने बुरी तरह से सर या दिमाग के पास काट लिया हो. ऐसे मामले बहुत ही कम आते हैं. अगर कोई ऐसा मरीज आता है तो उसके लिए टीबी सप्रू अस्पताल से आरआईजी वैक्सीन का इंतजाम करने का प्रयास किया जाता है. बीमारी की गंभीरता को देखते हुए सरकार की तरफ से हर वक्त एआरवी की उपलब्धता सुनिश्चित करवाई जाती है. बीच मे कभी केस बढ़ने पर एआरवी एक अस्पताल में कम हुई तो दूसरे अस्पताल में जाकर मरीज इंजेक्शन लगवा लेते हैं. इससे मरीजो का दवा का कोर्स समय पर पूरा हो जाता है."


गर्मियों के दिन में बढ़ते है कुत्तों के काटने के मामले

दोनों हॉस्पिटल में काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही केस की संख्या भी बढ़ जाती है.उनका यह भी कहना है जब भी कुत्तों के बच्चे होते है तो वो ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं उस वक्त उनके नजदीक से कोई गुजरता भी है तो वो काटने दौड़ते हैं.इसके अलावा गर्मी बढ़ने के साथ ही केसों की संख्या में इजाफा होता है.

कोरोना काल मे कम हुई थी केसों की संख्या

2020 में मार्च महीने के आखिरी में लॉक डाउन लगने के बाद कई महीनों तक लोगों के घरों से बिना वजह निकलने पर पाबंदी लगी थी, जिस वजह से पिछले साल केस की संख्या में कमी हो गयी थीस, लेकिन इस साल अभी सिर्फ दो महीने में ही 4 हजार से ज्यादा केस इन दोनों अस्पतालों में पहुंच चुके हैं.

एक मरीज को पांच बार लगायी जाती है एआरवी

कुत्ते के काटने के बाद एंटी रैबीज वैक्सीन की पांच डोज मरीजों को दी जाती है, जिसके लिए मरीजों के पर्चे पर डेट लिख दी जाती है, जिससे की अगली बार आकर मरीज सही समय पर इंजेक्शन लगाकर उसके कोर्स को पूरा करें. इस तरह से इन अस्पतालों में कुल केस की संख्या और कुल इंजेक्शन लगवाने वाले मरीजों की संख्या में पांच गुना का अंतर हो जाता है.

प्रयागराज: जिले में इन दिनों कुत्तों के काटने के मामले बढ़ रहे हैं, जिसकी वजह से सरकारी अस्पतालों में एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने वालों की भीड़ उमड़ रही है. बढ़ते मामलों की वजह से कभी-कभी वैक्सीन भी कम पड़ जाती है. जिले में वैक्सीन की इतनी किल्लत नहीं हुई कि किसी मरीज को बिना वैक्सीन काम चलाना पड़ा हो. हालांकि पिछले दिनों एक अस्पताल में वैक्सीन खत्म होने पर मरीजों को दूसरे हॉस्पिटल भेजा गया था. प्रयागराज में अब एआरवी जहां सहजता से लोगों को मिल रही है वहीं रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन की उपलब्धता नहीं है.

डॉ. सुषमा श्रीवास्तव ने दी जानकारी
इन दो अस्पतालों में सबसे ज्यादा लोगों को लगाई जाती है वैक्सीनप्रयागराज के तेज बहादुर सप्रू बेली हॉस्पिटल और मोतीलाल नेहरु मंडलीय चिकित्सालय में कुत्ते काटने के सबसे ज्यादा मरीज पहुंचते हैं. इन दिनों दोनों ही अस्पताल में लगातार नि:शुल्क एंटी रैबीज वैक्सीन लगाई जाती है. दोनों अस्पताल में लोगों की भीड़ एआरवी की डोज लगवाने के लिए पहुंचती है. लोग अस्पताल में पहुंचकर निशुल्क इंजेक्शन लगवाते हैं.कुछ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी एआरवी लगाने का है इंतजामजिले के अलग-अलग तहसीलों में बनी कुछ सीएचसी में भी एंटी रैबीज वैक्सीन लगाई जाती है, लेकिन इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर अक्सर वैक्सीन की उपलब्धता नहीं होती है, जिस वजह से जिले भर के ज्यादातर मरीज शहर के टीबी सप्रू बेली अथवा मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय में ही रैबीज का इंजेक्शन लगवाने पहुंचते हैं. यही वजह है कि जिले भर से मरीजों के पहुंचने के कारण इन दोनों अस्पतालों में मरीजों की लाइन लगी रहती है.

सड़कों पर लगातार बढ़ रही हैं कुत्तों की संख्या


जिले भर में सड़कों पर इन दिनों आवारा कुत्तों का आतंक देखने को मिल रहा है. सड़कों पर बेखौफ घूमते इन आवारा कुत्तों की वजह से उधर से गुजरने वाले राहगीर दहशत में रहते हैं. क्योंकि सड़कों पर निकलने वाले लोगों को कब ये जानवर अपना शिकार बना लें. इसका कोई ठिकाना नहीं है. लोग सड़क छाप कुत्तों की बढ़ती हुई आबादी से परेशान हैं. सिर्फ सड़कें ही नहीं सभी सार्वजनिक जगहों को भी कुत्तों ने अपना आशियाना बना लिया है.



2020 में एमएलएन मंडलीय अस्पताल में आये थे लगभग 11 हजार केस


बीते साल मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में कुत्ते काटने के वजह से 10 हजार 816 मरीज पहुंचें थे, जिसमे अप्रैल से लेकर सितंबर तक मरीजों की संख्या कम हो गई थी, लेकिन उसके बावजूद मरीजों की संख्या 11 हजार के करीब पहुंच गई थी. इसकी एक वजह यह भी है कि कोरोना काल के दौरान टीबी सप्रू हॉस्पिटल को कोविड एल2 हॉस्पिटल बना दिया गया था, जिस वजह से वहां ओपीडी के साथ ही एआरवी टिकाकरण भी बंद कर दिया गया था. इस वजह से ज्यादातर केस मोती लाल नेहरू मंडलीय हॉस्पिटल में ही जाने लगे थे. इस वजह से वहां केस की संख्या बढ़ गई.

2021 में तेजी से बढ़ रहे हैं केस

कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल जहां कुत्तों के काटने के मामले कम हुए थे.वहीं साल 2021 की शुरुआत के महीनों में ही केस में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है. मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में जहां जनवरी में 1245 मामले आये थे वहीं फरवरी में ये संख्या बढ़कर 13 सौ के पार हो गयी है.इसके अलावा बात टीबी सप्रू बेली हॉस्पिटल की करें तो वहां 3 फरवरी से एआरवी का टीकाकरण शुरू हुआ तो महज 25 दिनों में 17 सौ से ज्यादा लोगों को एंटी रेबीज वैक्सीन लगायी जा चुकी है.


रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीनसरकारी अस्पतालों में नहीं मिलती है

सरकारी अस्पतालों में रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीन उपलब्ध नहीं रहती है. मोती लाल नेहरू मंडलीय अस्पताल की सीएमएस डॉ. सुषमा श्रीवास्तव का कहना है कि "एआरवी वैक्सीन अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में मौजूद है, लेकिन रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं रहती है. इसकी जरूरत भी बहुत कम ही पड़ती है. क्योंकि आरआईजी वैक्सीन की जरूरत उन्हीं मरीजों को होगी, जिसे कुत्ते ने बुरी तरह से सर या दिमाग के पास काट लिया हो. ऐसे मामले बहुत ही कम आते हैं. अगर कोई ऐसा मरीज आता है तो उसके लिए टीबी सप्रू अस्पताल से आरआईजी वैक्सीन का इंतजाम करने का प्रयास किया जाता है. बीमारी की गंभीरता को देखते हुए सरकार की तरफ से हर वक्त एआरवी की उपलब्धता सुनिश्चित करवाई जाती है. बीच मे कभी केस बढ़ने पर एआरवी एक अस्पताल में कम हुई तो दूसरे अस्पताल में जाकर मरीज इंजेक्शन लगवा लेते हैं. इससे मरीजो का दवा का कोर्स समय पर पूरा हो जाता है."


गर्मियों के दिन में बढ़ते है कुत्तों के काटने के मामले

दोनों हॉस्पिटल में काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही केस की संख्या भी बढ़ जाती है.उनका यह भी कहना है जब भी कुत्तों के बच्चे होते है तो वो ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं उस वक्त उनके नजदीक से कोई गुजरता भी है तो वो काटने दौड़ते हैं.इसके अलावा गर्मी बढ़ने के साथ ही केसों की संख्या में इजाफा होता है.

कोरोना काल मे कम हुई थी केसों की संख्या

2020 में मार्च महीने के आखिरी में लॉक डाउन लगने के बाद कई महीनों तक लोगों के घरों से बिना वजह निकलने पर पाबंदी लगी थी, जिस वजह से पिछले साल केस की संख्या में कमी हो गयी थीस, लेकिन इस साल अभी सिर्फ दो महीने में ही 4 हजार से ज्यादा केस इन दोनों अस्पतालों में पहुंच चुके हैं.

एक मरीज को पांच बार लगायी जाती है एआरवी

कुत्ते के काटने के बाद एंटी रैबीज वैक्सीन की पांच डोज मरीजों को दी जाती है, जिसके लिए मरीजों के पर्चे पर डेट लिख दी जाती है, जिससे की अगली बार आकर मरीज सही समय पर इंजेक्शन लगाकर उसके कोर्स को पूरा करें. इस तरह से इन अस्पतालों में कुल केस की संख्या और कुल इंजेक्शन लगवाने वाले मरीजों की संख्या में पांच गुना का अंतर हो जाता है.

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