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रजाई भराई के धंधे पर पड़ी कोरोना की मार

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Published : Dec 1, 2020, 6:14 PM IST

यूपी के प्रयागराज कोरोना ने जीवन और कारोबार को अस्त-व्यस्त किया हुआ है. कोरोना की मार रूई धुनने वाले कारोबारियों पर भी पड़ी है. रूई धुनकरों का कहना है कि हर साल सर्दी शुरू होने से पहले ही रजाई भरने का काम शुरू हो जाता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. लोग घरों से रूई धुनाई के लिए नहीं निकल रहे हैं.

रजाई भराई के धंधे पर पड़ी कोरोना की मार
रजाई भराई के धंधे पर पड़ी कोरोना की मार

प्रयागराजः सर्दी के मौसम शुरू होते ही ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबारियों ने रूई की धुनाई की मशीनें लगाकर रजाई गद्दा की भराई का काम शुरू कर दिया है. इस बार पिछले साल की अपेक्षा काम में नरमी दिखाई पड़ रही है. कारोबारी इसकी वजह से लॉकडाउन में बढ़ी बेरोजगारी को मान रहे हैं.

कोरोना के चलते रजाई की भराई नहीं करा रहे लोग.

चार वर्षों से नहीं बढ़े रूई के रेट
करछना के रूई कारोबारी इरफान का कहना है कि उनका यह पुश्तैनी काम है. उनसे पहले उनके पिता भी रूई धुनाई और रजाई गद्दा भराई का कारोबार करते थे. नवरात्र पर्व के बाद काम शुरू हो जाता है. पिछले 4 वर्षों से रूई के रेट लगभग बराबर हैं.

रूई में होती हैं कई वैरायटी
इरफान ने बताया कि वह प्रयागराज से गांठे मंगवाते हैं. इनमें कई वैरायटी होती हैं, काम्बर 70, फाइबर 100 और दोयम 120 रुपये प्रति किलो मिलती है. वहीं अच्छी किस्म की रूई का मूल्य 150 रुपये प्रति किलो है. पिछले कई वर्षों से यही रेट चला आ रहा है. सिर्फ कारीगरों की मजदूरी बड़ी है. कोरोना काल में रोजाना 10 से 15 रजाई गद्दे की भराई के लिए आ रहे हैं जबकि पिछले साल नवंबर माह में 30 से 40 रजाइयों की प्रतिदिन भराई होती थी.

कोरोना काल में नहीं आ रहा काम
लॉकडाउन से ज्यादातर ग्रामीण और मध्यम वर्ग के लोगों से काम छिन गया है. कोहरे में रूई धुनाई बिल्कुल नहीं हो पाती है. इरफान ने बताया कि काम बहुत धीमा चल रहा है. दो से चार रजाई गद्दे ही भरने के लिए आते हैं. इनमें धागा डालने वाले लेबर को भी रोजाना 250-300 रुपये की मजदूरी देने पड़ती है.

प्रयागराजः सर्दी के मौसम शुरू होते ही ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबारियों ने रूई की धुनाई की मशीनें लगाकर रजाई गद्दा की भराई का काम शुरू कर दिया है. इस बार पिछले साल की अपेक्षा काम में नरमी दिखाई पड़ रही है. कारोबारी इसकी वजह से लॉकडाउन में बढ़ी बेरोजगारी को मान रहे हैं.

कोरोना के चलते रजाई की भराई नहीं करा रहे लोग.

चार वर्षों से नहीं बढ़े रूई के रेट
करछना के रूई कारोबारी इरफान का कहना है कि उनका यह पुश्तैनी काम है. उनसे पहले उनके पिता भी रूई धुनाई और रजाई गद्दा भराई का कारोबार करते थे. नवरात्र पर्व के बाद काम शुरू हो जाता है. पिछले 4 वर्षों से रूई के रेट लगभग बराबर हैं.

रूई में होती हैं कई वैरायटी
इरफान ने बताया कि वह प्रयागराज से गांठे मंगवाते हैं. इनमें कई वैरायटी होती हैं, काम्बर 70, फाइबर 100 और दोयम 120 रुपये प्रति किलो मिलती है. वहीं अच्छी किस्म की रूई का मूल्य 150 रुपये प्रति किलो है. पिछले कई वर्षों से यही रेट चला आ रहा है. सिर्फ कारीगरों की मजदूरी बड़ी है. कोरोना काल में रोजाना 10 से 15 रजाई गद्दे की भराई के लिए आ रहे हैं जबकि पिछले साल नवंबर माह में 30 से 40 रजाइयों की प्रतिदिन भराई होती थी.

कोरोना काल में नहीं आ रहा काम
लॉकडाउन से ज्यादातर ग्रामीण और मध्यम वर्ग के लोगों से काम छिन गया है. कोहरे में रूई धुनाई बिल्कुल नहीं हो पाती है. इरफान ने बताया कि काम बहुत धीमा चल रहा है. दो से चार रजाई गद्दे ही भरने के लिए आते हैं. इनमें धागा डालने वाले लेबर को भी रोजाना 250-300 रुपये की मजदूरी देने पड़ती है.

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