प्रयागराज: हाईकोर्ट के दो जजों की विशेष अपील बेंच ने निर्णय दिया है कि सक्षम अधिकारी किसी कर्मचारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश उसके सेवा रिकॉर्ड पर विचार कर दे सकता है. कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश पारित करने से पहले उस कर्मचारी को सुनवाई का अवसर देना जरुरी नहीं है. दो जजों की बेंच ने एकल जज के आदेश के खिलाफ यूपी राज्य विद्युत परिषद की अपील को मंजूर करते हुए आदेश को रद्द कर दिया. कोर्ट ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश के खिलाफ याची की याचिका भी खारिज कर दी.
यह निर्णय जस्टिस विश्वनाथ सोमद्दर व जस्टिस डॉ. वाईके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यूपी राज्य विद्युत परिषद की विशेष अपील स्वीकार करते हुए दिया है. याची रघुराज सिंह के खिलाफ स्क्रीनिंग कमेटी की संस्तुति पर बोर्ड के आदेश से 23 फरवरी 1994 अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश पारित किया गया था. इस आदेश को याची ने याचिका दायर कर चुनौती दी थी. एकल जज ने याचिका को याची के पक्ष में निर्णय देकर रिटायरमेन्ट आदेश को गलत माना था. इसमें कहा गया था कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई तथ्य नहीं थे, जिससे यह कहा जा सके याची की जनहित में सेवा की आवश्यकता नहीं है.
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विशेष अपील में विभाग का कहना था कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश स्क्रीनिंग कमेटी की संस्तुति पर और बोर्ड के आदेश के बाद पारित किया गया है. कहा गया था कि याची के खिलाफ कार्य में शिथिलता, घोर लापरवाही, अनुशासनहीनता आदि की रिपोर्ट है. इन सभी रिपोर्ट पर विचार कर संतुष्ट होने पर ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश पारित किया गया है. कहा यह भी गया था कि सारे तथ्य जवाब में लगाए गए थे, लेकिन एकल जज ने इस पर विचार किए वगैर अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश को गलत करार दिया था.
विशेष अपील बेंच ने एकल जज के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि रेगुलेशन 1975 के 2 (बी) के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश पारित किया गया है. यह प्रावधान फन्डामेन्टल रूल 56 (जे) व 56 (सी) मिलता-जुलता है. कोर्ट ने कहा कि सक्षम अधिकारी कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड से संतुष्ट हो जनहित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश दे सकता. हाईकोर्ट ने अपने इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट की तमाम नजीरों का उल्लेख भी किया है.